आईपीएस आशीष ने छठ की गूंज 54 फ्रेंच भाषी देशों तक पहुंचाया,कैसे?

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कुमार आशीष ने JNU से फ्रेंच भाषा में पीएचडी किया था

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संसार के कोने-कोने में भारत के लोगों द्वारा मनाए जा रहे महापर्व छठ की गूंज फ्रेंच बोलने और समझने वाले 54 देशों के नागरिकों के बीच है। यह संभव हुआ बिहार के जमुई जिले के रहने वाले आईपीएस अफसर कुमार आशीष की एक छोटी सी कोशिश से जिन्होंने छठ के महत्व और पूजा के बारे में फ्रेंच भाषा में विस्तार से एक लेख लिखा। दूसरे देशों से सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने का काम करने वाली भारत सरकार की संस्था भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) ने फ्रेंच भाषा में “rencontre avec l’Inde” नामक किताब में इसे 2013 में प्रकाशित किया था। इस किताब के जरिए फ्रेंच भाषा में दुनिया को देख और समझ रहे लोगों को भारत के महापर्व छठ की महत्ता समझने में सहूलियत हो रही है।

बिहार कैडर के आईपीएस कुमार आशीष इस समय सारण के एसपी हैं। जमुई निवासी आशीष के अनुसार 15 साल पहले जब वो स्टडी टूर पर फ्रांस गए थे, तब वहां एक संगोष्ठी में कुछ फ्रेंच भाषी लोगों ने उनसे बिहार के बारे में कुछ रोचक और अनूठा बताने को कहा था। उन्होंने छठ के बारे में उन लोगों को तब विस्तार से समझाया। फ्रेंच इससे प्रभावित हुए।

उन्होंने आशीष को सलाह दी कि फ्रेंच बोलने-समझने वाले 54 देशों तक इस पर्व की महत्ता और संदेश को पहुंचाना चाहिए। भारत लौटने के बाद आशीष ने छठ के बारे में गहन अध्ययन और शोध कर महापर्व छठ को पूरी तरह से परिभाषित करने वाला एक लेख “Chhath Pouja: l’adoration du Dieu Soleil” लिखा। यही लेख फ्रेंच किताब में छपी थी।

लेख में कुमार अशीष ने क्या लिखा है?

आशीष ने छठ पर्व के सभी पहलुओं का बारीकी से फ्रांसीसी भाषा में वर्णन किया है। वे बताते हैं कि छठ मूलत: सूर्य भगवान् की उपासना का पर्व है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व में धार्मिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक एवं आचारिक-व्यावहरिक कठोर शुद्धता रखी जाती है। छठ बस दिवाली के छठे दिन का ही द्योतक नहीं है बल्कि ये बताता है कि भगवान सूर्य की प्रखर किरणों की सकारात्मक ऊर्जा को हठ योग के छह अभ्यासों से आम आदमी कैसे आत्मसात कर सभी रोगों से मुक्त हो सकता है। लेख में आशीष ने पर्व के छोटे से छोटे विधान की योगिक और वैज्ञानिक महत्ता है को बताया है। मसलन- सूर्य की उपासना के समय जल में खड़े रहने का आधार है? डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के पीछे का क्या विचार है? सूप और दौरे का पूजा में क्या महत्व है?

छठ पूजा ऋग्वेद काल से शुरू हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि महाभारत काल में धौम्य ऋषि के कहने पर द्रौपदी ने पांडव भाइयों के साथ छठ पर्व कर सूर्य की कृपा से खोया राज्य वापस प्राप्त किया था। बिहार में छठ पूजा का प्रचलन सूर्य पुत्र अंगराज कर्ण से शुरू होना माना जाता है। छठ पर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई में मनाया जाता रहा है। लेकिन अब यह वैश्विक हो गया है। मॉरिशस, कनाडा, अमेरिका, इंग्लैंड समेत कई देशों से छठ मनाने की खबरें आती हैं। शुरुआत में छठ में कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं थी लेकिन कालांतर में सूर्यदेव और छठी मैय्या की मूर्तियों का प्रचलन शुरू हो चुका है।

छठ महापर्व में औरत और पुरुष दोनों परवैतिन होते हैं

छठ के अनुष्ठान कठोर हैं। चार दिनों की अवधि में पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना और अर्घ्य देना शामिल है। परवैतिन मुख्य उपासक होती हैं। बड़ी संख्या में पुरुष भी इस व्रत का पालन करते हैं क्योंकि छठ में ना जातीय, ना सामाजिक और ना ही लैंगिक भेदभाव है। कुछ भक्त घर से तालाब-नदी के किनारों के लिए आपादमस्तक लेटकर “दंड देते” हुए भी घाट जाते हैं।

छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी वाले पर्व को चैती छठ और कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी वाले को कार्तिकी छठ कहते हैं। सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल के लिए यह पर्व मनाया जाता है। लोक परंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।

नहाय खाय

पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। घर की सफाई कर उसे पवित्र किया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रति के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है। भोजन बनाने के लिए प्राय: सेंधा नमक और अन्य सात्विक चीजों का प्रयोग किया जाता है.

लोहंडा और खरना

दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस भोजन के उपरांत व्रती का 36 घंटों का निर्जला उपवास शुरू हो जाता है.

संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ का प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में ठेकुआ, पीसे हुए चावल के लड़ुआ, कचमनिया इत्यादि बनाते हैं। चढ़ावा के रूप में चीनी का बना सांचा और फल भी शामिल होता है। शाम को बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजता है। व्रति संग परिवार तथा दूसरे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।

प्रात:कालीन अर्घ्य

चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। व्रति फिर वहीं जमा होते हैं जहां संध्या को अर्घ्य दिया था। शाम की ही तरह पूजा को दोहराया जाता है। पूजा के पश्चात व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं।

छठ के केंद्र में व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। छठ व्रत अधिकतर महिलाओं द्वारा किया जाता है। चार दिनों के व्रत में व्रति को उपवास करना होता है। भोजन के साथ शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाये गये कमरे में व्रति फर्श पर कंबल या चादर पर रात बिताती हैं। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। एक व्रती द्वारा छठ पर्व शुरू करने के बाद इसे तब तक करना होता है, जब तक अगली पीढ़ी की कोई विवाहित महिला इसे करने के लिए न तैयार हो जाए।

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