क्या इंटरनेट शटडाउन इलेक्ट्रॉनिक संचार में जानबूझकर किया गया व्यवधान है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
इंटरनेट शटडाउन इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक संचार में जानबूझकर किया गया व्यवधान है, जो उन्हें किसी विशिष्ट आबादी के लिये या किसी स्थान विशेष के भीतर पहुँच से वंचित या प्रभावी रूप से अनुपयोगी बना देता है। ऐसा प्रायः सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है। इससे मोबाइल इंटरनेट, ब्रॉडबैंड इंटरनेट या दोनों ही प्रभावित हो सकते हैं।
23 सितंबर, 2023 को मणिपुर सरकार ने पूर्ण इंटरनेट पहुँच की पुनर्बहाली की घोषणा की और कहा कि बेहतर होती विधि-व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है। इस निर्णय से भारत के दूसरा सबसे दीर्घकालिक ‘इंटरनेट ब्लैकआउट’ की समाप्ति हुई जो 3 मई से 143 दिनों से अधिक समय तक जारी रही थी। इस ख़बर का सभी नागरिकों ने—मणिपुर लौटने की योजना बना रहे छात्रों से लेकर आवश्यक आपूर्ति के लिये संघर्ष कर रहे सहायता-कर्मियों तक— राहत के साथ स्वागत किया।
इंटरनेट शटडाउन से संबंधित प्रावधान:
- भारतीय तार अधिनियम 1885 की धारा 5(2) जो दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 के साथ पठित है:
- ये नियम संघ या राज्य के गृह सचिव को सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में किसी भी टेलीग्राफ या तार सेवा (इंटरनेट सहित) को निलंबित करने का आदेश देने की अनुमति देते हैं।
- ऐसे आदेश की एक समिति द्वारा पाँच दिनों के भीतर समीक्षा की जानी चाहिये और यह एक बार में 15 दिनों से अधिक अवधि तक जारी नहीं रह सकता। किसी अत्यावश्यक स्थिति में, संघ या राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत संयुक्त सचिव स्तर या उससे ऊपर का अधिकारी आदेश जारी कर सकता है।
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144:
- यह धारा एक ज़िला मजिस्ट्रेट, एक उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट को विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा सार्वजनिक शांति में किसी भी उपद्रव या व्यवधान को निषिद्ध करने या रोकने के लिये आदेश जारी करने का अधिकार देती है।
- ऐसे आदेशों में किसी विशेष क्षेत्र में एक निर्दिष्ट अवधि के लिये इंटरनेट सेवाओं का निलंबन किया जाना शामिल हो सकता है।
इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव :
- इंटरनेट शटडाउन अनुच्छेद 19(1) (a) और अनुच्छेद 19(1) (g) के तहत प्रदत्त मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है ।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020) मामले में माना कि इंटरनेट के माध्यम से वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी भी वृत्ति का अभ्यास करने की स्वतंत्रता को अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।
- इंटरनेट शटडाउन सूचना के अधिकार (Right to Information) का भी उल्लंघन करता है जिसे राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1975) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 19 के अंतर्गत एक मूल अधिकार घोषित किया है।
- यह इंटरनेट के अधिकार (Right to Internet) का भी उल्लंघन करता है जिसे फाहीमा शीरीं बनाम केरल राज्य मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत एक मूल अधिकार घोषित किया गया था।
- आर्थिक परिणाम: इंटरनेट शटडाउन के गंभीर आर्थिक परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं। ऐसे व्यवसाय वित्तीय हानि के शिकार हो सकते हैं जो संचालन, बिक्री और संचार के लिये इंटरनेट पर निर्भर होते हैं। इससे स्टार्टअप और छोटे व्यवसाय विशेष रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
- ‘Top10VPN’ के अनुसार भारत को इंटरनेट शटडाउन के कारण वर्ष 2023 की पहली छमाही में 2,091 करोड़ रुपए (255.2 मिलियन डॉलर) की हानि हुई।
- शिक्षा में व्यवधान: कई शैक्षणिक संस्थान शिक्षण और अधिगम (लर्निंग) के लिये ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करते हैं। इंटरनेट शटडाउन शैक्षिक संसाधनों तक पहुँच को बाधित करते हैं, जिससे छात्रों के लिये अध्ययन जारी रखना कठिन हो जाता है।
- भरोसा और सेंसरशिप संबंधी चिंताएँ: इंटरनेट शटडाउन से सरकार और प्राधिकारों के प्रति भरोसे की कमी की स्थिति बन सकती है। वे सेंसरशिप और पारदर्शिता की कमी के बारे में भी चिंताएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- आपदा प्रतिक्रिया में बाधा: वे लोगों के संचार और समन्वय को, विशेष रूप से आपात स्थिति और संकट के दौरान, प्रभावित कर सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र (UN) समर्थित एक रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इंटरनेट शटडाउन से लोगों की सुरक्षा और भलाई प्रभावित होती है, सूचना प्रवाह और मानवीय सहायता में बाधा उत्पन्न होती है।
- स्वास्थ्य देखभाल में व्यवधान: विभिन्न अध्ययनों से उजागर होता है कि इंटरनेट शटडाउन का तत्काल चिकित्सा देखभाल प्रदान करने, आवश्यक दवाओं की आपूर्ति एवं उपकरणों के रखरखाव में बाधा, चिकित्साकर्मियों के बीच स्वास्थ्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को सीमित करने और आवश्यक मानसिक स्वास्थ्य सहायता को बाधित करने के रूप में स्वास्थ्य प्रणालियों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ता है।
- अंतर्राष्ट्रीय परिणाम: इंटरनेट शटडाउन अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित कर सकता है और इसकी निंदा की जा सकती है। इससे किसी देश की प्रतिष्ठा और अन्य देशों के साथ उसके संबंधों को नुकसान पहुँच सकता है।
- उल्लेखनीय है भारत विश्व में इंटरनेट शटडाउन के मामले में कुख्यात देश है। इंटरनेट शटडाउन के मामले में वर्ष 2023 की पहली छमाही में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर रहा।
- अमेरिका के डिजिटल अधिकार पक्षसमर्थक समूह ‘एक्सेस नाउ’ (Access Now) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सभी दर्ज शटडाउन में से 58% भारत में घटित हुए।
- पत्रकारिता और रिपोर्टिंग पर प्रभाव: पत्रकार घटनाओं की रिपोर्टिंग करने और आम लोगों के साथ समाचार साझा करने के लिये इंटरनेट पर निर्भर होते हैं। इंटरनेट शटडाउन सूचना संग्रहण और प्रसारण की उनकी क्षमता में बाधा डाल सकता है, जिससे आम लोगों के जानने के अधिकार (right to know) को धक्का पहुँच सकता है।
- इंडियन एक्सप्रेस बनाम भारत संघ (1986) और बेनेट कोलमैन बनाम भारत संघ (1972) मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार को मूल अधिकार घोषित किया गया था।
इंटरनेट शटडाउन के संबंध में कौन-से तर्क दिये जाते हैं?
पक्ष में तर्क:
- इंटरनेट शटडाउन से ‘हेट स्पीच’ और ‘फेक न्यूज़’ के प्रसार को रोकने में मदद मिल सकती है जो हिंसा और दंगे भड़का सकते हैं। उदाहरण के लिये, भारत सरकार ने भ्रामक सूचनाओं से निपटने और विधि-व्यवस्था बनाए रखने के लिये गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए दिल्ली एनसीआर में इंटरनेट बंद करने की घोषणा की थी।
- इंटरनेट शटडाउन से लोक व्यवस्था और सुरक्षा को बाधित करने वाले विरोध प्रदर्शनों के आयोजन एवं लामबंदी पर अंकुश लगाने में मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिये, सरकार ने किसी भी राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों और अलगाववादी आंदोलनों को रोकने के लिये अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद कश्मीर और देश के अन्य कुछ हिस्सों में इंटरनेट शटडाउन लागू किया था।
- इंटरनेट शटडाउन राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता को बाह्य खतरों और साइबर हमलों से बचाने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिये, सरकार ने चीन के साथ गतिरोध के दौरान जासूसी या किसी गड़बड़ी को रोकने के लिये कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया था।
- इंटरनेट शटडाउन से उस तरह की सामग्री के वितरण और उपभोग को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है जो कुछ समूहों या व्यक्तियों के लिये हानिकारक या आपत्तिजनक हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, सरकार आपत्तिजनक छवियों या वीडियो के प्रसार को रोकने के लिये कुछ क्षेत्रों में इंटरनेट का उपयोग अवरुद्ध करती रही है।
विपक्ष में तर्क:
- इंटरनेट शटडाउन लोकतंत्र और जवाबदेही को कमज़ोर करते हैं, क्योंकि वे नागरिकों को सूचनाओं तक पहुँच बनाने, विचार व्यक्त करने, सार्वजनिक विमर्श में भाग लेने और अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये जिम्मेदार ठहराने से अवरुद्ध करते हैं।
- इंटरनेट शटडाउन सत्तावादी सरकारों को आलोचकों को चुप कराने और विकृत सूचना प्रतिध्वनि कक्ष (distorted information echo chambers) का निर्माण करने में भी सक्षम बना सकते हैं।
- कई आलोचकों ने तर्क दिया है कि इंटरनेट शटडाउन अप्रभावी और प्रतिकूल उपाय है, क्योंकि वह उन समस्याओं के मूल कारणों का समाधान नहीं करता है जिनके समाधान की इससे अपेक्षा की जाती है।
- उदाहरण के लिये, इंटरनेट शटडाउन से हिंसा या आतंकवाद पर रोक नहीं लगती, बल्कि प्रभावित आबादी में आक्रोश और असंतोष की वृद्धि ही होती है।
- इंटरनेट शटडाउन फेक न्यूज़ या हेट स्पीच पर भी रोक नहीं लगा पाता, बल्कि सूचना शून्यता की स्थिति उत्पन्न करता है जिसका दुर्भावना रखने वाले अभिकर्ता लाभ ही उठा सकते हैं।
- इंटरनेट शटडाउन मनमाना उपाय है और इसके दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है, क्योंकि इन्हें प्रायः उचित प्रक्रिया, पारदर्शिता या न्यायिक निरीक्षण का पालन किये बिना लागू किया जाता है। कई बार इंटरनेट शटडाउन का आदेश स्थानीय अधिकारियों द्वारा दिया जाता है जिनके पास ऐसा करने की कानूनी शक्ति नहीं होती है।
- इंटरनेट शटडाउन में स्पष्ट एवं वस्तुनिष्ठ मानदंड, अवधि और दायरे का भी अभाव देखा जाता है, जिससे वे राजनीतिक हस्तक्षेप और मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
इंटरनेट शटडाउन से निपटने के लिये उठाये जाने वाले कदम:
- मौजूदा ढाँचे को सुदृढ़ करना: इंटरनेट शटडाउन को नियंत्रित करने वाले कानूनी एवं नियामक ढाँचे को सुदृढ़ किया जाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उनका उपयोग केवल अंतिम उपाय के रूप में ही और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुसार किया जाना चाहिये।
- सरकार को तार अधिनियम और उसके नियमों में संशोधन करना चाहिये, जो पुराने पड़ चुके हैं और अस्पष्ट हैं। ये संवैधानिक और मानवाधिकार मानकों का पालन नहीं करते हैं।
- अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करना: इंटरनेट शटडाउन का आदेश देने और लागू करने वाले अधिकारियों की पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाना तथा इनसे प्रभावित लोगों के लिये प्रभावी उपचार प्रदान करना।
- वैकल्पिक विकल्पों की तलाश करना: सरकार को विधि-व्यवस्था की गड़बड़ी, सांप्रदायिक हिंसा, आतंकवादी हमलों, राजनीतिक अस्थिरता आदि से निपटने के लिये अन्य कम हस्तक्षेपकारी उपायों पर विचार करना चाहिये। इसमें विशिष्ट वेबसाइटों या कंटेंट को अवरुद्ध करना, चेतावनी या सलाह जारी करना, नागरिक समाज एवं मीडिया को संलग्न करना, अधिक सुरक्षा बलों की तैनाती करना आदि शामिल हो सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का पालन करना: प्राधिकारों को अनुराधा भसीन मामले (2020) में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिये। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित दिशानिर्देश जारी किये हैं:
- इंटरनेट निलंबन का उपयोग केवल अस्थायी अवधि के लिये किया जा सकता है।
- निलंबन नियमों के तहत जारी किये गए इंटरनेट निलंबन के किसी भी आदेश को आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिये और इसका विस्तार आवश्यक अवधि से आगे नहीं होना चाहिये।
- निलंबन नियमों के तहत इंटरनेट को निलंबित करने वाला कोई भी आदेश न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
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