क्या कांग्रेस संविधान के नाम पर दोहरा रवैया अपना रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कांग्रेस एक बार फिर संविधान को लेकर विवादों से घिर गयी है। संविधान के संबंध में कांग्रेस का दोहरा रवैया एवं चरित्र एक बार फिर देश के सामने आया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर हाथ में संविधान की प्रति लेकर भाजपा पर इसे बदलने का आरोप लगाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव के समय अपनी हर सभा में इस आरोप को दोहराते रहे कि अगर भाजपा फिर से सत्ता में आई तो संविधान बदल कर आरक्षण खत्म कर देगी,
इसका भाजपा को नुकसान भी उठाना पड़ा है, लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भाजपा पर संविधान बदलने का आरोप लगाने वाली कांग्रेस आज खुद संविधान बदलने की बात कर रही हैं। दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार ओबीसी कोटा के तहत पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने जा रही है, सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों में मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण के संदर्भ में जब उप- मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार को यह याद दिलाया गया कि संविधान के तहत मजहब के आधार पर आरक्षण देना मुमकिन नहीं है,
तब उन्होंने इशारा किया कि आरक्षण देने के लिए जरूरी बदलाव किए जाएंगे। शिवकुमार के इस बयान के बाद कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक फिर संविधान बचाने का सियासी अभियान हावी हो गया है। इस बार भाजपा आक्रामक है और उसने फिलहाल इसे एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। इस वर्ष बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव का यह अहम मुद्दा बन जाये तो कोई आश्चर्य नहीं है।
मुस्लिम तुष्टिकरण के लिये कांग्रेस सरकारें अपने-अपने राज्यों में अतिश्योक्तिपूर्ण घोषणाएं एवं योजनाएं लागू करती रही हैं, कर्नाटक में भी वहां के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया ने सरकार का बजट पेश करते हुए मुस्लिमों के लिए कई घोषणाएं की। सीएम ने ऐलान किया कि सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों में से 4 प्रतिशत अब श्रेणी-प्प् बी के तहत मुसलमानों के लिए आरक्षित होंगे।
सरकार ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए 15 महिला कॉलेज खोले जाएंगे। इसका निर्माण वक्फ बोर्ड की ही जमीन पर किया जाएगा, लेकिन सरकार इस पर पैसा खर्च करेगी। मौलवियों को 6000 मासिक भत्ता देने की भी व्यवस्था इस बजट में की गई है। कर्नाटक सरकार के बजट में दलितों और पिछड़ों के कल्याण के लिए समुचित बजट आवंटित नहीं हुआ लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते मुस्लिमों के लिये लुभावना बजट आवंटित किया गया है।
जबकि सरकारों का काम किसी धर्म एवं समुदाय विशेष का तुष्टिकरण न होकर सभी समुदायों का पुष्टीकरण होना चाहिए। जब संविधान में धर्म आधारित आरक्षण का निषेध किया गया है तो फिर जानबूझकर कर्नाटक में कांग्रेस सरकार द्वारा इसे सूचीबद्ध करके विधि सम्मत क्यों बनाया जा रहा है?
दरअसल, भाजपा और कांग्रेस, दोनों देश की प्रमुख पार्टियों को यह एहसास हो चला है कि संविधान इस देश में बहुत संवेदनशील विषय है और इस पर लोग कतई समझौता नहीं करेंगे। संविधान केवल न्यायिक या वैधानिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि वह भारत की जनता की आशाओं एवं आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। इस अर्थ में यह देश के जन-जन के मन का दस्तावेज है।
संविधान भारत में सभी नागरिकों के लिए दिग्दर्शक तत्व है। इसलिए, प्रश्न यह उठता है कि जब संविधान इतना स्पष्ट है तो क्या संविधान की मूल भावना पर केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए आघात करना स्वस्थ लोकतंत्र का लक्षण है? दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस पवित्र ग्रंथ पर भी विपक्षी दल एवं कांग्रेस अत्यंत निकृष्ट राजनीति करती जा रही है। जो कांग्रेस शासन में रहते हुए कभी संविधान का सम्मान नहीं कर सकी, वह आज विपक्ष में बैठकर यह भ्रम फैलाने में लगी है कि मोदी सरकार संविधान को खत्म कर देगी।
संविधान सभा में एकमत के साथ यह तय हुआ था कि धर्म के आधार पर कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। अब अगर ऐसे आरक्षण की जरूरत पड़ने लगी है, या कांग्रेस मुसलमानों के वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिये आरक्षण का हथियार चलाती है तो संविधान में संशोधन तो करना ही होगा। अपने आजाद देश में जरूरतमंदों को आरक्षण देने के लिए करीब 12 बार संविधान में संशोधन किए गए है और मुस्लिमों को महज मजहबी बुनियाद पर आरक्षण देने के लिए भी ऐसी जरूरत पड़ेगी।’
कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण के लिये देश को दांव पर लगाती रही है। एक बार फिर उसकी इस कोशिश से उसका असली चेहरा देश के सामने आया है। कांग्रेस भारत के संविधान के साथ खिलवाड़ कर रही हैं, मुस्लिम आरक्षण को संविधान में जगह देकर संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर के खिलाफत की जा रही है। मुस्लिमों को आरक्षण असंवैधानिक हैं। कांग्रेस बार-बार मुस्लिम आरक्षण की वकालत कर संविधान की मूल भावना को चुनौती दे रही है। मुस्लिम वोटबैंक के लिए ऐसा किया जाना संविधान की मूल भावना से खिलवाड है।
राहुल गांधी एवं कांग्रेस पार्टी का रवैया आरक्षण को लेकर समय-समय पर बदलता रहा है। कभी उसने संविधान संशोधन की बात की, तो कभी आरक्षण का विरोध किया, तो कभी धर्म के आधार पर आरक्षण देने के प्रयास भी किए। आपातकाल के काले दौर में कांग्रेस द्वारा ऐसा भी किया गया, जब इंदिरा गांधी सरकार ने संविधान की मूल प्रस्तावना ही बदल डाली। कांग्रेस नेता संविधान की किताब जेब में रखते हैं, लेकिन इसे कमजोर करने के लिए हरसंभव कोशिश भी करते हैं। अब कांग्रेस अध्यक्ष को पार्टी की स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए और देश को बताना चाहिए कि कांग्रेस मुसलमानों को आरक्षण देने के लिए संविधान में बदलाव क्यों करना चाहती है?
कांग्रेस का रवैया हर प्रकार से संविधान विरोधी ही रहा है। संविधान को कमजोर करने वाले अनेक प्रयास कांग्रेस समय-समय पर करती आई है। कांग्रेस द्वारा अपने शासनकाल में इस पर संशोधन लाने का प्रयास किया गया कि सरकार संविधान में क्या-क्या परिवर्तन कर सकती है? स्पष्ट है कि कांग्रेस के लिए हमारा संविधान केवल सत्ता को साधने का एक उपकरण मात्र रहा है,
संविधान के प्रति सम्मान की भावना कांग्रेस के चरित्र में नहीं है। जबकि वर्ष 2014 में सत्तारूढ़ होने के बाद से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार संविधान के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की संकल्पना को पूरा करने के लिए प्रयासरत है। भारतीय संविधान और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने की मंशा से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा अनेक कदम उठाए गए हैं।
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