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क्या भारत में तेल और प्राकृतिक गैस पर निर्भरता बढ़ रही है? - श्रीनारद मीडिया

क्या भारत में तेल और प्राकृतिक गैस पर निर्भरता बढ़ रही है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक गैर-लाभकारी संगठन क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (CAT) की नई रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन उत्पादक देशों ने न तो तेल और गैस उत्पादन को काफी हद तक सीमित और नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता जताई है तथा न ही उन्होंने नवीकरणीय ऊर्जा के लिये वैश्विक लक्ष्य निर्धारित किया है।

  • आगामी UNFCCC COP 28 तेल और गैस उत्पादन को सीमित और नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:

  • वैश्विक सहमति का अभाव:
    • नए तेल और गैस निवेश को अब तक समाप्त हो जाना चाहिये था, कोयले को चरणबद्ध तरीके से हटाने पर विश्व स्तर पर स्वीकृत सहमति है लेकिन तेल और गैस पर ऐसा कोई समझौता नहीं है।
    • हालाँकि भारत ने मिस्र में COP27 में सभी जीवाश्म ईंधनों को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का आह्वान किया था, लेकिन इस बारे में एक ठोस निर्णय को अंतिम रूप नहीं दिया जा सका।
  • विकसित देशों का प्रदर्शन:
    • अब तक केवल स्वीडन, डेनमार्क, फ्राँस और स्पेन ने अंतिम तिथि निर्धारित की है, जबकि फ्राँस, स्वीडन, कोलंबिया, आयरलैंड, पुर्तगाल, न्यूज़ीलैंड और स्पेन ने नए तेल और गैस की खोज एवं उत्पादन को रोक दिया है।
    • इसके विपरीत अमेरिका जो कि दुनिया का सबसे बड़ा तेल और गैस उत्पादक है, 2010 से तेल उत्पादन को दोगुना से अधिक कर चुका है।
      • विश्व के सबसे बड़े LNG निर्यातक, ऑस्ट्रेलिया ने वर्ष 2020 और 2030 के बीच अपने LNG उत्पादन में 11% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।
  • एक विकल्प के रूप में CSS और इससे संबंधित चुनौतियाँ: 
    • विश्व के 7वें सबसे बड़े तेल उत्पादक और 15वें सबसे बड़े जीवाश्म गैस उत्पादक के रूप में प्रतिष्ठित संयुक्त अरब अमीरात  तेल एवं गैस को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बजाय ऊर्जा क्षेत्र में कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (CCS) के उपयोग पर ज़ोर दे रहा है।
    • CCS के तहत वातावरण में उत्सर्जित करने के बजाय विद्युत संयंत्रों और अन्य औद्योगिक प्रक्रियाओं से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषण करना शामिल है।
    • वर्तमान में CCS के तहत 0.1% से भी कम वैश्विक उत्सर्जन का अवशोषण किया जाता है जिससे तकनीकी, आर्थिक, संस्थागत, पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
    • CCS वहनीय नहीं है और इसमें निवेश करने से अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के वित्तीयन पर प्रभाव पड़ सकता है, अंतत: यह एक व्यर्थ परिसंपत्ति के रूप में परिणत हो सकती है।
    • CSS (Climate Safeguards System) तकनीकों में निवेश करने वाले अन्य देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा शामिल हैं। सऊदी अरब अपने शुद्ध शून्य जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये CCS का उपयोग करना चाहता है।

तेल और गैस उत्पादन/खपत परिदृश्य:

  • वैश्विक परिदृश्य:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वैश्विक उत्पादन, परिवहन और तेल तथा गैस के प्रसंस्करण के कारण वर्ष 2022 में 5.1 बिलियन टन CO2 का उत्सर्जन हुआ जो कि ऊर्जा से संबंधित कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 15% है।
    • मीथेन, एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस और वायु प्रदूषण उत्सर्जन में प्रमुख योगदानकर्त्ता है, तेल तथा गैस उद्योग द्वारा उत्सर्जित सबसे आम गैसों में से एक है।
    • वर्ष 2050 तक अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के शुद्ध शून्य उत्सर्जन परिदृश्य के तहत इस दशक के अंत तक तेल और गैस के संचालन को अपनी उत्सर्जन तीव्रता को लगभग आधा करना होगा, जिसके परिणामस्वरूप उनके सभी उत्सर्जन में 60% की कमी आएगी।
  • प्रमुख निर्माता और उपभोक्ता: 
    • वर्ष 2022 में तेल उत्पादन करने वाले शीर्ष देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब, रूस, कनाडा और चीन शामिल थे, जबकि OPEC तेल उत्पादकों का सबसे शक्तिशाली समूह रहा है।
      • अमेरिका वर्ष 2022 में विश्व के 20% उत्पादन के लिये विश्व का शीर्ष पेट्रोलियम तरल पदार्थ उत्पादक बन गया।
    • वर्ष 2022 के शीर्ष तेल खपत वाले देश अमेरिका <चीन <भारत <रूस <जापान <सऊदी अरब <ब्राज़ील <दक्षिण कोरिया <कनाडा <जर्मनी थे।
  • भारतीय परिदृश्य: 
    • भारत अभी भी जीवाश्म ईंधन से संबंधित औद्योगिक गतिविधियों के संपर्क में है, यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है जो लगभग 5 मिलियन बैरल प्रतिदिन है जिसमें तेल की मांग की वार्षिक वृद्धि दर 3-4% है।
    • तेल और प्राकृतिक गैस में भारत की आयात निर्भरता भी बढ़ी है प्राकृतिक गैस के मामले में शुद्ध आयात निर्भरता केवल 30% (वर्ष 2012-13) से बढ़कर लगभग 48% (वर्ष 2021-22) हो गई है।
      • कच्चे तेल के आयात में भी इतनी ही बढ़ोतरी हुई है।

देशों द्वारा तेल और गैस उत्पादन को प्रतिबंधित न करने का कारण:

  • आर्थिक विचार: तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन प्राय: देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा सरकारी राजस्व, रोज़गार एवं समग्र आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
  • ऊर्जा सुरक्षा: ऊर्जा सुरक्षा के लिये तेल और प्राकृतिक गैस अनिवार्य हैं; देश घरेलू मांग को पूरा करने तथा आयात पर निर्भरता कम करने हेतु उत्पादन बढ़ाने के लिये ऊर्जा की स्थिर और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देते हैं।
  • भू-राजनीतिक विचार: कुछ देशों द्वारा ऊर्जा उत्पादन का उपयोग अन्य देशों पर राजनीतिक प्रभाव या प्रभाव के साधन के रूप में किया जा सकता है, जो उत्पादन नियंत्रण प्रयासों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • घरेलू राजनीतिक कारक: घरेलू दबाव और प्रतिस्पर्द्धी हितों सहित राजनीतिक विचार, उत्पादन निर्णयों को प्रभावित कर सकते हैं। सरकारों को उद्योग समूहों, स्थानीय समुदायों या राजनीतिक गुटों सहित हितधारकों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है, जो उत्पादन को नियंत्रित करने के प्रयासों को जटिल बना सकता है।

तेल और गैस की निर्भरता में कमी: 

  • ठोस लक्ष्य निर्धारित करना: विकसित राष्ट्रों के पास कोई औचित्य नहीं है उनका नया तेल और गैस निवेश पहले ही समाप्त हो जाना चाहिये था। सभी देशों, विशेष रूप से अमीर देशों को इस पर नेतृत्त्व करने की ज़रूरत है और सभी जीवाश्म ईंधन उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करना चाहिये।
  • नवीकरणीय ऊर्जा नवाचार को अपनाना: नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की उन्नति में तेज़ी लाने हेतु देश अनुसंधान और विकास में निवेश करेंगे।
    • इसमें अगली पीढ़ी के सौर पैनल, उन्नत पवन टर्बाइन और ऊर्जा भंडारण समाधान जैसी सफल तकनीकों हेतु वित्तपोषण शामिल है।
  • फोस्टर इंटरनेशनल सहयोग: देश तेल और प्राकृतिक गैस की खपत को कम करने हेतु अभिनव समाधान विकसित करने के लिये अनुसंधान, ज्ञान साझा करने के साथ ही संयुक्त पहल पर सहयोग कर सकते हैं।
    • सर्वोत्तम प्रथाओं और जानकारियों को साझा करने से विश्व स्तर पर प्रगति को गति मिल सकती है।
  • क्षमता निर्माण हेतु सहायता: विकसित देश तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और ज्ञान साझा करने के माध्यम से विकासशील देशों को सतत् ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने हेतु उनकी क्षमता निर्माण में सहायता करेंगे।
  • हरित औद्योगीकरण: स्थानीय रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने, ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ाने और जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करने हेतु देश अक्षय ऊर्जा निर्माण जैसे हरित उद्योगों के विकास को बढ़ावा देंगे।
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