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क्या नशीले पदार्थों की तस्करी से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है? - श्रीनारद मीडिया

क्या नशीले पदार्थों की तस्करी से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है?

क्या नशीले पदार्थों की तस्करी से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैश्विक ड्रग व्यापार एक बड़ी समस्या है जिस कारण भारत सहित विश्व भर की सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ/अभिकरण हाई अलर्ट पर हैं।

  • परंपरागत रूप से ही भारत डेथ (गोल्डन) क्रीसेंट और डेथ (गोल्डन) ट्रायंगल के बीच स्थित है। इन दो क्षेत्रों से ड्रग माफियाओं द्वारा यहाँ हेरोइन तथा मेथामफेटामाइन जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी की जा रही है, जिन्हें खुफिया एजेंसियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से सहायता प्रदान की जाती है।

नशीले पदार्थों की तस्करी से उत्पन्न समस्याएँ:

  • यह एक सामाजिक समस्या है जिसके कारण युवाओं और परिवारों को नुकसान पहुँचता है और इससे अर्जित किया गया धन विघटनकारी गतिविधियों एवं उद्देश्यों के लिये उपयोग किया जाता है जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है।
  • आपराधिक नेटवर्क के तहत कैनबिस, कोकीन, हेरोइन और मेथामफेटामाइन सहित कई प्रकार की नशीली दवाओं का व्यापार किया जाता है।
    • मेथमफेटामाइन (मेथ) एक नशीली दवा है जिसकी लत लग सकती है और यह स्वास्थ्य के लिये काफी प्रतिकूल है जो कभी-कभी मौत का कारण बन सकती है।
    • हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका को नई ज़ोंबी दवा (फेंटानिल/fentanyl) के विषय में पता चला है जो वहाँ देश की आबादी के बीच तेज़ी से प्रचलित हो रही है।
      • इस दवा का सेवन करने वालों की त्वचा पर घाव हो सकते हैं जो निरंतर संपर्क में आने से तेज़ी से फैल सकते हैं।
      • इसकी शुरुआत अल्सर से होती है, इसके कारण मृत त्वचा (एस्कर/eschar) जैसी स्थिति हो जाती है और यदि इसे अनुपचारित छोड़ दिया जाए तो संबद्ध अंग को काट कर हटाने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं रहता है।
  • नशीली दवाओं की तस्करी अक्सर अपराध के अन्य रूपों से जुड़ी होती है, जैसे-आतंकवादमनी लॉन्ड्रिंग अथवा भ्रष्टाचार
  • अन्य अवैध उत्पादों के परिवहन के लिये आपराधिक नेटवर्क द्वारा तस्करी जैसे मार्गों का भी उपयोग किया जा सकता है।

भारत में नशीले पदार्थों की लत की स्थिति:

  • वर्ष 2018 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने एम्स, नई दिल्ली के सहयोग से “भारत में पदार्थों के उपयोग की सीमा और पैटर्न पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण” आयोजित किया था। इस सर्वेक्षण के निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
Name of the substance Prevalence of use  

(Age Group 10-75 years) 

Alcohol14.6%
Cannabis2.83%
Opiates/ Opioids2.1%
  • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में वर्ष 2020 में 5.2 टन अफीम की चौथी सबसे बड़ी मात्रा ज़ब्त की गई और तीसरी सबसे बड़ी मात्रा में मॉर्फिन (0.7 टन) भी उसी वर्ष ज़ब्त की गई ।

भारत में अवैध ड्रग्स की तस्करी के स्रोत:

  • थ्रेट्स फ्रॉम डेथ (गोल्डन) क्रीसेंट: इसमें अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं।
    • अफगानिस्तान से सटे पाकिस्तान के कुछ हिस्सों का भी पाकिस्तानी ड्रग तस्करों द्वारा अफगान अफीम को हेरोइन में परिवर्तित करने और फिर भारत भेजने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • थ्रेट्स फ्रॉम डेथ (गोल्डन) ट्रायंगल: इसमें वियतनाम, थाईलैंड, लाओस और म्याँमार शामिल हैं।
    • चीन की सीमा से सटे म्याँमार के शान और काचिन प्रांत भी चुनौती पेश करते हैं।
  • चीनी कारक: इन हेरोइन और मेथामफेटामाइन उत्पादक क्षेत्रों में खुली सीमाएँ (Porous Borders) हैं, ये कथित तौर पर विद्रोही समूहों के नियंत्रण में हैं, जो अप्रत्यक्ष रूप से चीनियों द्वारा समर्थित हैं।
    • यहाँ अवैध हथियारों का निर्माण किया जाता है और भारत में सक्रिय भूमिगत समूहों को इसकी आपूर्ति की जाती है।
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री मार्गों के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी, भारत में तस्करी की जाने वाली कुल अवैध नशीली दवाओं का लगभग 70% हिस्सा होने का अनुमान है।

ड्रग के खतरे को रोकने हेतु भारत द्वारा की गई पहल:

  • नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, (NDPS) 1985: यह किसी व्यक्ति को किसी भी मादक पदार्थ या साइकोट्रोपिक पदार्थ के उत्पादन, स्वामित्त्व, बिक्री, खरीद, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से रोकता है।
  • ड्रग डिमांड रिडक्शन हेतु नेशनल एक्शन प्लान: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 2018-25 की अवधि हेतु ड्रग डिमांड रिडक्शन के लिये एक योजना तैयार की है। यह योजना निम्नलिखित पर केंद्रित है:
    • निवारक शिक्षा
    • जागरूक पीढ़ी
    • नशीली दवाओं पर निर्भर व्यक्तियों की पहचान, परामर्श, उपचार और पुनर्वास
    • सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से सेवा प्रदाताओं का प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कोष: इसे एनडीपीएस, 1985 के प्रावधान के अनुसार उपायों हेतु किये गए व्यय को पूरा करने के लिये बनाया गया था:
    • अवैध तस्करी का मुकाबला
    • नशीली दवाओं और पदार्थों के दुरुपयोग को नियंत्रित करना
    • व्यसनियों की पहचान, उपचार और पुनर्वास
    • नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकना
    • जनता को नशे के खिलाफ शिक्षित करना
  • नशा मुक्त भारत अभियान: नशा मुक्त भारत अभियान (NMBA) 2020 में मादक द्रव्यों के सेवन के मुद्दे से निपटने और भारत को नशा मुक्त बनाने के दृष्टिकोण से शुरू किया गया था। इसमें निम्नलिखित तीन बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है:
    • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा आपूर्ति पर अंकुश
    • सामाजिक न्याय और अधिकारिता द्वारा आउटरीच और जागरूकता बढ़ाने एवं मांग में कमी का प्रयास
    • स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से उपचार
  • भारतीय तटरक्षकों की पहल: भारतीय तटरक्षक बल (ICG) ने ऐसी दवाओं की ज़ब्ती के लिये  सुरक्षा एजेंसियों और श्रीलंका, मालदीव तथा बांग्लादेश के तटरक्षकों के साथ उचित तालमेल स्थापित किया है।
    • इसने हाल ही में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास दो अलग-अलग मामलों में 2,160 किलोग्राम मेथमफेटामाइन (मेथ) ज़ब्त किया।
  • नशीली दवाओं के खतरे से निपटने हेतु अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन: भारत निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और सम्मेलनों का हस्ताक्षरकर्त्ता है:
    • नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) कन्वेंशन (1961)।
    • साइकोट्रोपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)।
    • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों के अवैध यातायात के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)।
    • ट्रांसनेशनल क्राइम के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) 2000।

भारत में नशीले पदार्थों की तस्करी से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • डार्कनेट: डार्कनेट मार्केट्स को उनकी गुमनामी और कम जोखिम के कारण ट्रेस करना मुश्किल है। उन्होंने पारंपरिक दवा बाज़ारों पर कब्ज़ा कर लिया है। अध्ययनों से पता चलता है कि 62 प्रतिशत डार्कनेट का उपयोग अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के लिये किया जा रहा है।
    • विश्व भर में डार्कनेट का उपयोग कर अवैध व्यापार करने वालों को पकड़ने की सफलता दर बहुत कम रही है।
  • क्रिप्टोरेंसी में लेन-देन: कुरियर सेवाओं के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी भुगतान और डोरस्टेप डिलीवरी ने डार्कनेट लेन-देन को सरल बना दिया है।
  • तस्कर रचनात्मक और तकनीक प्रेमी बन गए हैं: तस्करों ने पंजाब में ड्रोन के माध्यम से नशीली दवाओं और बंदूकों की आपूर्ति करने जैसी नई तकनीकों को अपनाया है, जिसने सुरक्षा बलों के सामने नई चुनौतियाँ खड़ी कर दी हैं।
  • अधिक सुरक्षित और गुमनाम तरीकों का उपयोग करना: कोविड-19 महामारी के दौरान वाहनों/जहाज़/एयरलाइन आवाजाही पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद मादक पदार्थों के तस्करों ने कूरियर/पार्सल/डाक पर अधिक विश्वास करना शुरू कर दिया है।
    • वर्ष 2022 में एक व्यक्ति को ई-कॉमर्स डमी वेबसाइट बनाकर ड्रग्स का कारोबार करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
    • एक और उदाहरण में कुछ लोगों को वेबसाइट पर नकली उत्पादों को सूचीबद्ध करके अमेज़न जैसी ई-कॉमर्स वेबसाइटों के माध्यम से ड्रग्स बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
  • ड्रग लॉर्ड्स और NRIs के बीच गठजोड़: हाल की जाँच में कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग एवं कई यूरोपीय देशों में स्थित NRIs के साथ भारत में स्थानीय ड्रग लॉर्ड्स तथा गैंगस्टर्स के साथ ड्रग कार्टेल के संबंध का पता चला है, जिनके खालिस्तानी आतंकवादियों और पाकिस्तान में ISI के साथ संबंध हैं।
  • स्थानीय गिरोहों के माध्यम से तस्करी: एक नया चलन सामने आया है जिसमें स्थानीय गिरोह का उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी के लिये किया जा रहा है जो मुख्य रूप से अपने क्षेत्रों में ज़बरन वसूली की गतिविधियों को अंजाम देते थे क्योंकि वह ऐसी गतिविधियों को करने के लिये सरल विकल्प के रूप में मौजूद हैं।

 आगे की राह

  • ड्रग्स को देश में प्रवेश करने से रोकने के लिये सीमा पार तस्करी को नियंत्रित करने और ड्रग प्रवर्तन में सुधार जैसे उपाय किये जाने चाहिये। हालाँकि समस्या को पूरी तरह से हल करने के लिये भारत को NDPS अधिनियम, 1985 के तहत कठोर दंड लगाने जैसे उपायों के माध्यम से दवाओं की मांग को कम करने पर भी काम करना चाहिये।
  • अभियानों और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से नशे की लत को कम करने के लिये लोगों में जागरूकता फैलाई जानी चाहिये। ड्रग लेने के कारण लगे लांछन को दूर करने की ज़रूरत है। समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि नशा करने वाले पीड़ित होते हैं, न कि अपराधी।
  • कुछ फसलों की दवाएँ जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड होते हैं उन पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं के खतरे को रोकने के लिये पुलिस अधिकारियों एवं आबकारी तथा नारकोटिक्स विभाग से सख्त कार्यवाही की आवश्यकता है।
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। इसके आलावा उचित परामर्श एक अन्य विकल्प है।
  • इस बढ़ते खतरे से निपटने हेतु सभी एजेंसियों के सम्मिलित और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होगी।
  • रोज़गार के अधिक अवसर सृजित करने से समस्या का कुछ हद तक समाधान हो सकता है क्योंकि त्वरित तथा अधिक पैसा बेरोज़गार युवाओं को ऐसी गतिविधियों की ओर आकर्षित करता है।
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