Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या चौथी पीढ़ी के युद्ध के लिए तैयार है भारत? - श्रीनारद मीडिया

क्या चौथी पीढ़ी के युद्ध के लिए तैयार है भारत?

क्या चौथी पीढ़ी के युद्ध के लिए तैयार है भारत?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जब सोवियत रूस खंड-खंड होकर टूटा, एक मोटे अनुमान के अनुसार, उसके पास दुनिया के सबसे अधिक परमाणु बम थे। सभी धरे रह गए और उसके गणतंत्र एक-एक कर रूस से अलग होते गए। इसके बाद एक शब्द दुनिया भर के सैन्य इतिहासकारों में बहुत लोकप्रिय हो गया- हाइब्रिड वार। माना गया कि अगर मनोवैज्ञानिक दबावों से किसी राष्ट्र के औचित्य को ही संदिग्ध बना दिया जाए और वहां की जनता का एक बड़ा तबका प्रभावी नैरेटिव को चुनौती देने लगे, तो फिर शक्तिशाली सेना भी उस राष्ट्र राज्य को बचा नहीं सकेगी।

पिछले एक हफ्ते से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के एक भाषण की खूब चर्चा हो रही है। अजीत डोभाल ने अपनी स्पीच के अंदर सिविल सोसाइटी को लेकर काफी बड़ी बात की है। उनका कहना है कि सिविलि सोसायटी फोर्थ जनरेशन ऑफ वॉरफेयर के बारे में बात करते हुए सिविल सोसाइटी का जिक्र किया है। आज के विश्लेषण में हम सिविल सोसायटी और सिविल सोसाइटी कैसे चौथी पीढ़ी के युद्ध का औजार बनने के तात्पर्य का मतलब बताएंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ये कैसे हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

अजीत डोभाल ने क्या कहा?

सिविल सर्विसेज की परीक्षा देने के बाद चयनित होने पर जितने भी आईपीएस, आईएफएस, आईएस जैसे शीर्ष के पद हैं सभी का एक कॉमन ट्रेनिंग होता है। मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री अकादमी के अंदर छह महीने के लिए एक कॉमन ट्रेनिंग होती है। जिसके बाद पुलिस ऑफिसर्स सरदार वल्लभ भाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी, हैदराबाद चले जाते हैं। फॉरेस्ट वाले दूसरी तरफ चले जाते हैं।

कुल मिलाकर कहा जाए तो कॉमन प्रोग्राम के बाद सभी अलग-अलग अपने एकेडमी चले जाते हैं।  वहां पर फिर उनकी स्पेशलाइज ट्रेनिंग होती है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ट्रेनी आईपीएस अधिकारियों के 73वें बैच के दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में आए थे। मालदीव, भूटान, नेपाल जैसे हमारे पड़ोसी देश के भी 17 ऑफिसर्स थे। सभी को भविष्य के लिए शुभकामनाएं देते हुए एनएसए ने अपने भाषण में कहा कि लड़ाई का मैदान बदल रहा है, लड़ाई की सीमाएं बदल रही है। अब सिविल सोसाइटी के माध्यम से लड़ाइयां लड़ी जाएंगी।

NSA के बयान के क्या हैं मायने? 

आप समय-समय पर देखते हैं कि जो वॉर फेयर है, जब किसी भी दो देश के बीच में वर्ल्ड वॉर-1 या  वर्ल्ड वॉर-2 हुआ तो वो उसमें बदलाव देखने को मिलेगा। आज जिस न्यू फ्रंटियर वॉर की चर्चा हो रही है, जहां पर सिविल सोसाइटी एक बहुत ही महत्वपूर्ण रोल प्ले करेगी। जहां सिविल सोसाइटी शामिल है उसे चौथी पीढ़ी का युद्ध बोला जा रहा है। एनएसए के कहने का मतलब था कि सिविल सोसाइटी का विरोधी देश गलत इस्तेमाल कर देश के अंदर अराजकता फैलाने की कोशिश कर सकते हैं।

वर्तमान दौर में हम देखें तो सीधा युद्ध बहुत ज्यादा खर्चीला हो गया है। एनएसए डोभाल का इशारा इस तरफ था कि दुश्मन देश हमारे राष्ट्रीय हितों, सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के लिए परंपरागत युद्ध के बजाय सिविल सोसाइटी को औजार बना सकते हैं। वह संवेदनशील मसलों पर सिविल सोसाइटी में सेंध लगाकर, विकृत करके लोगों के बीच दरार चौड़ी कर राष्ट्रीय सुरक्षा को चोट पहुंचाने की कोशिश कर सकता है।

वॉर फेयर के जेनरेशन

पहली पीढ़ी का युद्ध एक व्यक्ति की दूसरे व्यक्ति से लड़ाई थी जो मुख्य तौर पर शारीरिक शक्ति, कौशल और संख्या पर निर्भर थी।

उदाहरण: अंग्रेजी गृहयुद्ध, एंग्लो-स्पेनिश युद्ध, सात साल का युद्ध, अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध, 1812 का युद्ध War, मैक्सिकन स्वतंत्रता संग्राम

दूसरी पीढ़ी का युद्ध गोलाबारी के ज़रिए होता था। इसमें योद्धा असंतुलित बल या शक्ति के साथ अपनी इच्छा परंपरागत तौर पर ज़्यादा ताक़तवर दुश्मन पर थोपने में सक्षम होते थे।

उदाहरण: अमरीकी गृह युद्ध, दक्षिण अफ्रीका के किसानों की लड़ाई, प्रथम विश्व युद्ध, स्पेन का गृह युद्ध, ईरान-इराक युद्ध

तीसरी पीढ़ी के युद्ध में दुश्मन की सीमा रेखा में घुसपैठ करने के बाद युद्धाभ्यास को प्राथमिकता दी जाती थी।

उदाहरण: द्वितीय विश्व युद्ध, कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध, फारस की खाड़ी युद्ध, अफगानिस्तान का आक्रमण, इराक युद्ध

सिविल सोसाइटी के जरिये कैसे फैलाया जा सकता है प्रॉपेगेंडा

सिविल सोसाइटी का मतलब नागरिक समाज से है जिसके दायरे में ऐक्टिविस्ट्स, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, एनजीओ वगैरह आते हैं।  सांप्रदायिक मामलों या दंगे जैसी स्थिति में सिविल सोसाइटी के जरिये इन मुद्दों को लेकर प्रॉपेगेंडा फैलाया जाता है। जो सीधे तौर पर लोगों के बीच न भरने वाली दरार पैदा करता है। सिविस सोसाइटी यानी नागरिक समाज में एक्टिविस्ट्स, सामाजिक संगठन, बुद्धिजीवी, एनजीओ वगैरह आते हैं।

क्या आज के समय में कोई इस बात की गारंटी दे सकता है कि फलां एक्टिविस्ट या बुद्धिजीवी या कोई भी शख्स निष्पक्ष होकर किसी घटना के बारे में जानकारियां दे रहा है। हाल के दिनों में कुछ बड़े आंदोलनों में बाहरी तत्वों के दखल के संकेत भी मिले हैं। आज के समय में सोशल मीडिया एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है।

फर्जी ज्ञान वाली वॉट्सएप यूनिवर्सिटी से लेकर फेक खबरों से भरे ट्विटर तक जहां हर ओर सूचनाओं का इस्तेमाल अपनी विचारधारा, जाति, धर्म, राजनीतिक प्रतिबद्धताओं जैसी चीजों के लिए खुलेआम किया जा रहा हो, वहां भ्रम फैलाने में ज्यादा समय नहीं लगता है। ऐसी घटनाओं पर कोई एक आम शख्स से लेकर देश के बुद्धिजीवी, एक्टिविस्ट्स वर्ग के कुछ लोग बड़ी आसानी से माहौल को बिगाड़ने में जुट जाते हैं।

चीन की थ्री वॉर फेयर स्ट्रेटेजी

चीन की थ्री वॉर फेयर स्ट्रेटेजी है।  जिसका प्रयोग वो साल में दो बार करता है। पहला- साइकोलाॅजिकल वॉर फेयर, दूसरा मीडिया वॉर फेयर और तीसरा-लीगल वॉर फेयर। ये तीन तरह की लड़ाई चीन के द्वारा टैंक, सोल्जर और आर्टलर्री के अलावा लड़ी जाती है।

 सिविल सोसाइटी और नया वॉर फ्रंटियर

आज के डिजिटल युग में युद्ध का क्षितिज असीमित हो चुका है। आज युद्ध सिर्फ बॉर्डर पर ही नहीं लड़ा जाता, बल्कि यह आम जनता के घरों यानी समाज के मूल तक पहुंच चुका है। भारत विरोधी तत्व देश की सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने का हरसंभव प्रयास करते हैं। ऐसे प्रयासों के लिए कई तरह के एनजीओ बनाए जाते हैं, जिससे समाज में उथल-पुथल मचाया जा सके। जिसे देखते हुए देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी भी कई गुना बढ़ चुकी है। इसी तरह की सुरक्षा खतरा पर अब अजीत डोभाल ने सबका ध्यान आकर्षित किया हैं।

विश्व के सबसे विवादित चेहरों में से एक-जॉर्ज सोरोस। कुछ के लिए इतिहासपुरूष, फाइनेंसियल गुरु और एक सफल निवेशक, एक अरबपति जो बाजारों को स्थानांतरित करने में सक्षम हैं। एक आदमी जो राजनीति और राय को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। गैर सरकारी संगठनों के अपने नेटवर्क के माध्यम से जॉर्ज सोरोस ने बुद्धिजीवियों के एक वर्ग को विकसित किया है जो भारत खासकर राष्ट्रवादी सरकार का विरोध करने की दिशा में काम करते हैं। CAA के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान हमने देखा कि कैसे झूठ के आडंबर पर सामाजिक तानेबाने को जड़ से झकझोरा जा सकता है।

दिल्ली दंगों से पहले हर्ष मंदर का भाषण तो वायरल भी हुआ था। अफजल गुरु को बचाने के लिए दया याचिका दायर करने वाले हर्ष मंदर के जॉर्ज सोरोस से गहरे रिश्ते रहे हैं।  मंदर ने जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय अनुदान देने वाले नेटवर्क के सलाहकार बोर्ड के सदस्य के रूप में कार्य किया। हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों को भड़काने में उनकी भूमिका, विशेष रूप से दिसंबर 2019 में जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर के आसपास की हिंसा, पिछले कुछ समय से जांच के दायरे में है।

शाहीन बाग के दौरान सबसे आगे रहने वाली संस्था Karwana-e-Mohabbat भी हर्ष मंदर का ही NGO है। ऐसे न जाने कई एनजीओ हैं, जो विदेशों से फंडिंग पा कर समाज को किसी भी प्रकार से अस्थिर करना चाहते हैं, चाहे वो भारत द्वारा चीन के साथ लगे बॉर्डर पर रोड बनाने को लेकर विरोध प्रदर्शन कर के ही क्यों न करना पड़े।

Leave a Reply

error: Content is protected !!