क्या हमास के बिछाए जाल में फंस गया है इजराइल?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यहूदी-राष्ट्र को नेस्तनाबूद कर देने के हमास के इरादों को लेकर तो मेरे दिमाग में कभी कोई खुशफहमी नहीं थी, लेकिन उन्होंने आईएसआईएस-शैली में जिस तरह से यह खून-खराबा किया, उसके बाद मैं सोच में डूब गया हूं कि आखिर यह उनका मकसद कब से बन गया? जमीन पर कब्जा नहीं, बल्कि बेरहमी से कत्लेआम!

चूंकि मैं हमास नेतृत्व का इंटरव्यू लेकर यह तो नहीं जान सकता कि उनके दिमाग में क्या चल रहा है, लेकिन इस क्षेत्र को लेकर मेरा जो तजुर्बा है उसके आधार पर मैं कुछ नतीजे जरूर निकाल सकता हूं। इसमें कोई शक नहीं कि हमास के नेताओं ने हमले की योजना कई महीनों पूर्व बना ली थी, लेकिन भावनात्मक रूप से इसे ट्रिगर 3 अक्टूबर को इजराइली प्रेस में प्रकाशित एक फोटो से मिला।

इजराइली सरकार के कुछ मंत्री हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में शिरकत करने के लिए रियाद गए थे। यह इजराइली सरकार की इस तरह की पहली अधिकृत यात्रा थी। इसे प्रेस में भरपूर कवरेज दिया गया। लेकिन मैं बैरूत और यरूशलम में बहुत समय रह चुका हूं और जिस फोटो की मैं बात कर रहा हूं, उसको देखते ही मैं समझ गया था कि यह भावनाओं को भड़काने वाला है।

यह चित्र इजराइल के संचार मंत्री श्लोमो करही ने रियाद में यूएन कॉन्फ्रेंस के दौरान खींचा था। उनके साथी प्रतिनिधि यहूदी पर्व सुक्कोत के अवसर पर अपनी होटल में प्रार्थना कर रहे थे। उनमें से एक ने परम्परागत यहूदी शॉल और यर्मुलके पहनी थी और वे पवित्र तोरा पुस्तक हाथों में थामे थे, जिसके पीछे खिड़की से सऊदी अरब का आकाश दिखाई दे रहा था।

इजराइली यहूदियों के लिए यह चित्र किसी सपने के सच होने जैसा था। एक सदी तक चले प्रयासों के बाद आखिरकार उन्हें मध्य-पूर्व में स्वीकार लिया गया था। इस्लाम के जन्मस्थान सऊदी अरब में किसी यहूदी के द्वारा हाथ में तोरा लेकर प्रार्थना कर पाना एक ऐसा क्षण था, जिसने हर इजराइली यहूदी के दिलों को छुआ था। लेकिन इसने अनेक फिलिस्तीनियों और खासतौर पर हमास से जुड़े उग्रपंथियों में आक्रोश की चिनगारियां भी भड़का दीं। उनके मुताबिक इस चित्र के माध्यम से इजराइल ने यह घोषणा कर दी थी कि वह फिलिस्तीनियों को एक इंच जगह दिए बिना अरबों से- यहां तक कि सऊदी अरब तक के साथ- शांति कायम कर सकता है।

मुझे पता नहीं हमास नेतृत्व ने वह चित्र देखा था या नहीं, लेकिन वे इस बात से बखूबी वाकिफ थे कि इजराइल और अरबों के बीच क्या खिचड़ी पक रही है। यही कारण था कि हमास ने न केवल हमला बोलने का निर्णय लिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि इसे नृशंस तरीके से अंजाम दिया जाए।

हमास चाहता था कि इजराइल इस पर तीखी प्रतिक्रिया करे और गाजापट्टी पर धावा बोल दे। इससे बड़ी तादाद में फिलिस्तीनियों की मौत होगी और सऊदी अरब बिदक जाएगा। इसके साथ ही अमेरिका के द्वारा रियाद और यहूदी-राष्ट्र के बीच सामान्य रिश्ते बहाल करने की जितनी कोशिशें की जा रही हैं, वो भी नाकाम हो जाएंगी। इतना ही नहीं, इसके बाद यूएई, बहरीन और मोरक्को भी अपने कदम पीछे खींच लेंगे।

हमास ने नेतन्याहू और उनकी यहूदी-प्रभुत्ववादी दक्षिणपंथी सरकार को यह संदेश दिया है कि हमारे अरब-बिरादर तुम्हें हमारी चाहे जितनी जमीनें बेच दें, लेकिन यह कभी तुम्हारा घर नहीं बनेगा। हम तुम्हें अपना आपा खोकर ऐसी चीजें करने को मजबूर कर देंगे कि अरब लोग तुमसे चुपचाप किनारा कर लेंगे।

यहां इस बात पर गौर करें कि हमास ने इजराइल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों पर हमला करने के लिए अपने लड़ाके नहीं भेजे, उसने इसके अलावा दूसरी इजराइली बस्तियों पर निशाना साधा। ये 1967 से पहले वाले लोकतांत्रिक-उदारवादी इजराइल के लोगों के रहवासी इलाके थे, जो शांतिपूर्ण माहौल में रह रहे थे और डिस्को पार्टी में जाकर जीवन का मजा उठा रहे थे। लेकिन हमास ने इन्हीं लोगों पर गोलियां बरसा दीं और बच्चों तक को नहीं बख्शा।

मैं आशा करता हूं कि इन हालात में प्रेसिडेंट बाइडेन इजराइल से कहेंगे कि वह खुद ही निर्णय करे गाजा में उसे इसके बाद क्या करना है। नेतन्याहू को सोचना होगा कि उनके दुश्मन इस स्थिति में उनसे क्या करवाना चाहते हैं और उन्हें उससे विपरीत क्या करना चाहिए। इजराइल के दुश्मन नम्बर एक कौन हैं? हमास और ईरान। और ये दोनों ही क्या चाहते हैं? यह कि इजराइल गाजा पर धावा बोलकर खुद को एक कूटनीतिक जाल में उलझा ले।

लेकिन पिछले सप्ताहांत जो हुआ, वो इससे पहले कभी नहीं देखा था। हमास के हमलावरों ने इजराइली पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को गोलियों से उड़ा दिया। एक महिला को तो नग्न करके गाजा में घुमाया गया और साम्प्रदायिक नारे लगाए जाते रहे। इससे पहले इस तरह की बर्बरता1982 में बैरूत में देखी थी, जब सबरा और शतीला रिफ्यूजी कैम्प में ईसाई सशस्त्र लड़ाकों ने फिलिस्तीनी लोगों का बेरहमी से कत्लेआम किया था।

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