बड़ी जनसंख्या वरदान है या बोझ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केंद्रीय मंत्री की तरफ से जनसंख्या नियंत्रण कानून का जिक्र होते ही यह चर्चा फिर जोर पकड़ने लगी है कि भारत की बड़ी आबादी यहां के लिए संसाधन है या बोझ। आबादी के आर्थिक पहलू पर भी विचार हो रहा है। इस मसले पर निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले हमें जान लेना चाहिए कि भारत की 65 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कामकाजी उम्र यानी 15 से 59 साल के बीच की है। इसमें भी 27-28 प्रतिशत 15 से 29 साल के हैं। कामकाजी आबादी का प्रतिशत बढ़ने से अन्य पर निर्भर लोगों यानी 14 से कम और 60 से अधिक की उम्र की आबादी का प्रतिशत कम हो जाता है। भारत आज उस स्थिति में है, जहां कामकाजी आबादी बहुत ज्यादा और निर्भर आबादी बहुत कम है। अर्थव्यवस्था की दृष्टि से यह बहुत अच्छा समय है।
कनाड़ा में भारत से उलट हैं हालात
कई कदमों के माध्यम से भारत की जनसांख्यिकीय विविधता का इस्तेमाल आर्थिक विकास को गति देने में किया जा सकता है। यही नहीं, अपनी युवा आबादी के दम पर भारत दुनियाभर के लिए प्रतिभाओं की फैक्ट्री बना हुआ है। हम शिक्षक से लेकर सीईओ और साफ्टवेयर इंजीनियर तक दे रहे हैं। साथ ही हमारे पास कुशल कार्यबल है। दूसरी ओर, कनाडा जैसे देशों की स्थिति चिंताजनक हो रही है। एक तरफ जीवन प्रत्याशा बढ़ने से लोग ज्यादा उम्र तक जीने में सक्षम हुए हैं, तो दूसरी तरफ जन्मदर कम होने से आबादी बहुत धीरे-धीरे बढ़ रही है। इसका परिणाम यह हुआ कि वहां आबादी में बुजुर्गों का प्रतिशत बढ़ गया है। समय के साथ कनाडा को कामकाजी आबादी की कमी का सामना करना पड़ेगा और इसका सीधा प्रभाव आर्थिक विकास दर पर होगा। साथ ही बुजुर्ग आबादी की सेहत एवं सुरक्षा पर देश का खर्च भी बढ़ेगा।
भारत के पास कामकाजी आबादी का लाभ उठाने का समय
यूनाइटेड नेशंस पापुलेशन फंड के अध्ययन के मुताबिक, भारत के पास बड़ी कामकाजी आबादी का लाभ उठाने के लिए 2005-06 से 2055-56 का कालखंड है, जो किसी भी अन्य देश से ज्यादा है। राज्यों की अलग-अलग जनसांख्यिकी के कारण इसमें थोड़ा अंतर रह सकता है। हालांकि, आबादी के लाभ गिनाते समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि कामकाजी आबादी अपने आप फायदा नहीं पहुंचा सकती है। इसके लिए श्रम बाजार का विश्लेषण करने और नीतियों पर ध्यान देने की जरूरत है। इस आबादी का लाभ लेने के लिए सरकार को शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में खर्च बढ़ाना होगा।
LFPR भी ज्यादा बनी रहे
यह भी जरूरी है कि देश में रोजगार कर रहे या रोजगार की तलाश कर रहे लोगों की संख्या ज्यादा बनी रहे। इसे एलएफपीआर कहते हैं। महामारी के दौरान बहुत लोगों की नौकरी छूटी। इनमें से बहुत से लोगों ने निराश होकर नौकरी तलाशना भी छोड़ दिया। यह अच्छी स्थिति नहीं है। एलएफपीआर ज्यादा रहे, इसके साथ ही जरूरी है कि देश में अच्छी नौकरियों की उपलब्धता बनी रहे। हाल ही में आई विश्वव्यापी कोविड-19 महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र में काम कर रही देश की बड़ी आबादी को संगठित करने की दिशा में कुछ अहम कदम उठाए गए। ऐसी पहल को बढ़ावा देने की जरूरत है। कौशल विकास और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश से देश को अपनी बड़ी आबादी का पूरा लाभ लेने में मदद मिलेगी।
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