लेटरल एंट्री क्या आरक्षण पर खतरा है या ब्यूरोक्रेसी में ‘निजीकरण’ की एक
कोशिश?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रशासनिक सुधार की दिशा में उठाया गया महत्वकांक्षी कदम लेटरल एंट्री से आरक्षण को खतरा है? क्या सीनियर अधिकारियों के पद पर सीधी नियुक्ति की इस प्रक्रिया से मौजूदा व्यवस्था प्रभावित होगी? क्या इस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रहेगी? क्या लेटरल एंट्री ब्यूरोक्रेसी में निजीकरण की एक कोशिश है? ये तमाम सवाल हैं जो केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव और निदेशक जैसे प्रमुख पदों पर निजी क्षेत्र के 30 और विशेषज्ञों को सीधे नियुक्त करने के फैसले के बाद फिर से चर्चा में हैं। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने विभिन्न सरकारी विभागों में तीन संयुक्त सचिव तथा 27 निदेशक स्तर के कुल 30 पदों के लिए प्रतिभाशाली और भारतीय नागरिकों से आवेदन मांगे हैं। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOP&T), भारत सरकार से प्राप्त आवश्यकताओं के अनुसार राष्ट्र निर्माण की दिशा में योगदान करने के इच्छुक प्रतिभाशाली और प्रेरित भारतीय नागरिकों से संविदा के आधार (Contract Basis) पर सरकार में शामिल होने के लिए आवेदन मांगे हैं।
संयुक्त सचिव को जानिए
संयुक्त सचिव किसी भी विभाग के एक विंग का हेड होता है। एक विभाग में कई संयुक्त सचिव हो सकते हैं। संयुक्त सचिव अपने विभाग के सचिव या अतिरिक्त सचिव को रिपोर्ट करता है। किसी विभाग में संयुक्त सचिव के ऊपर अतिरिक्त सचिव और सचिव होता है। आम तौर पर यूपीएससी के जरिये संयुक्त सचिव का चयन होता है। देश में ज्वाइंट सेक्रेटरी के कुल 341 पद होते हैं, जिनमें से 249 पदों पर आईएएस अधिकारी ही होते हैं।
क्या है लेटरल एंट्री सिस्टम
लेटरल एंट्री सिस्टम के अंतर्गत सरकारी विभागों में बिना परीक्षा दिए अधिकारियों की भर्ती की जा सकती है। हालांकि इसके लिए कुछ वांछित योग्यताओँ का होना जरूरी है। जैसे उम्र सीमा, कार्यकुशलता, कार्यानुभव, शैक्षणिक योग्यता आदि। लेटरल एंट्री सिस्टम के तहत उम्मीदवारों को चयन इंटरव्यू के आधार पर किया जाता है। नौकरशाही में लेटरल एंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में लाया गया था लेकिन तब इसे माना नहीं गया। इसके बाद 2010 में भी इसकी अनुशंसा की गई लेकिन काम नहीं बन सका। इस दिशा में पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद की गई है। मोदी सरकार ने 2016 में इसकी संभावना तलाशने के लिए एक कमेटी बनाई। जिसके मूल प्रस्ताव में आंशिक बदलाव कर इस सिस्टम को लागू कर दिया गया। अब इसके पहले प्रस्ताव के अुसार सचिव स्तर के पदों की भर्ती निकाली गई है।
लेटरल एंट्री का इतिहास
इसे विस्तार से समझने के लिए साल 70 के दशक में जाना होगा। जब 1966में देश में पहली बार प्रशासनिक सुधार आयोग की स्थापना हुई। 5 जनवरी 1966 को देश की प्रशासनिक सेवा में सुधार लाने के लिए एक सुधार आयोग बना और मोरारजी देसाई जिसके अध्यक्ष बनाए गए। हालांकि 1967 को जब देश में इंदिरा गांधी की सरकार आई तब मोरारजी देसाई को उपप्रधानमंत्री बनाया गया और फिर इस समिति के अध्यक्ष बने कांग्रेस नेता के हनुमंथैया। इस समीति ने प्रशासनिक सुधारों के लिए 20 रिपोर्ट्स तैयार की जिनमें कुल 537 सुझाव थे। वर्तमान दौर में ब्यूरोक्रेसी उन्हीं नियमों और सुधारों पर चल रही है। 5 अगस्त 2005 में यूपीए सरकार ने फिर से प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया और इसके अध्यक्ष हुए उस वक्त के यूपीए सरकार में मंत्री वीरप्पा मोईली।
इसी समिति की देन थी। प्रशासनिक सेवा में लैट्रल एंट्री इस समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा कि ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर पर होने वाली भर्तियों में हमें विशेषज्ञों को लेना चाहिए। इसमें कहा गया था कि इनकी भर्ती बिना किसी परीक्षा के सिर्फ इंटरव्यू के आधार पर हो सकती है। हालांकि यहां भी चयन का मानदंड वही था जो अब है यानि उम्र कम से कम 40 वर्ष और15 साल का अनुभव होना ही चाहिए। लेकिन उस वक्त की यूपीए सरकार ने इन सिफारिशों को सिरे से खारिज कर दिया था।
इसके बाद साल 2010 में रामचंद्रन की अध्यक्षता वाली समिति ने सरकार के सामने फिर से प्रशासनिक सुधारों की एक रिपोर्ट रखी जिसमें यूपीएससी परीक्षा के तरीकों और उम्र सीमा पर विशेष जोर दिया गया साथ ही इसमें 2005 की सिफारिशों को भी जोड़ा गया। लेकिन उस वक्त की मनमोहन सरकारने इसे फिर से खारिज कर दिया। साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से ही प्रधानमंत्री मोदी ने इन सिफारिशों पर ध्यान दिया और इसे लागू करने में लग गए।
लेटरल एंट्री के लिए सरकार का तर्क क्या है
4 जुलाई, 2019 को, राज्य मंत्री, डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग जितेन्द्र सिंह ने राज्यसभा को बताया कि समय-समय पर सरकार ने विशेष ज्ञान और विशेषज्ञता को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट कार्यों के लिए कुछ प्रमुख व्यक्तियों की नियुक्ती की है। राज्यसभा में ही इसी प्रश्न के एक उत्तर में उन्होंने कहा कि लेटरल भर्ती को दोहरे उद्देशय के तहत लाया जा रहा है कि जिसके तहत मैनपॉवर बढ़ाने के साथ ही नई प्रतिभाओं का भी शामिल होना है।
क्या सरकार ने अब तक कोई लेटरल एंट्री ’नियुक्तियां की हैं?
नया विज्ञापन ऐसी भर्तियों के दूसरे दौर के लिए है। इससे पहले, सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों / विभागों में संयुक्त सचिव के 10 पदों और उप सचिव / निदेशक के स्तर पर 40 पदों के लिए सरकार के बाहर के विशेषज्ञों को नियुक्त करने का निर्णय लिया था। 2018 की शुरुआत में जारी संयुक्त सचिव स्तर की नियुक्तियों के लिए विज्ञापन के बाद 6,077 आए जिनमें यूपीएससी द्वारा चयन प्रक्रिया के बाद, नौ अलग-अलग मंत्रालयों / विभागों में 2019 में नियुक्ति के लिए नौ व्यक्तियों की सिफारिश की गई थी। इनमें से एक काकोली घोष ने ज्वाइन नहीं किया बाकी – अंबर दुबे, राजीव सक्सेना, सुजीत कुमार बाजपेयी, दिनेश दयानंद जगदाले, भूषण कुमार, अरुण गोयल, सौरभ मिश्रा और सुमन प्रसाद सिंह – को तीन साल के अनुबंध पर नियुक्त किया गया। अरुण गोयल ने प्राइवेट सेक्टर में लौटने के लिए पिछले साल दिसंबर में इस्तीफा दे दिया था।
लेटरल एंट्री की आलोचना क्यों?
इन नियुक्तियों में कोई आरक्षण नहीं होने की वजह से SC, ST और OBC का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने इसका विरोध किया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 फरवरी को सरकार की अधिसूचना के लिए एक ट्वीट करते हुए कहा संयुक्त सचिव स्तर और निदेशक स्तर के पदों के लिए लेटरल भर्ती कान्ट्रैक्ट लेवल पर होगी। इच्छुक उम्मीदवार 6 फरवरी 2021 से 22 मार्च 2021 तक आवेदन कर सकते हैं। बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने निशाना साधते हुए कहा कि क्या यूपीएससी की चयन प्रक्रिया राष्ट्र निर्माण के लिए इच्छुक, प्रेरित और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित करने में विफल हो रही है या चुनिंदा लोग ज्यादा हैं?
क्या यह वंचित वर्गों के लिए दिए गए आरक्षण को दरकिनार और कम करने की एक और चाल नहीं है? यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, भाजपा खुले आम अपनों को लाने के लिए पिछला दरवाजा खोल रही है और जो अभ्यर्थी सालों-साल मेहनत करते हैं उनका क्या? भाजपा सरकार अब खुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए वैसे भी उनसे देश नहीं संभल रहा है।
तो क्या ये संविदा नियुक्तियां कोटा के लिए नहीं हैं?
15 मई, 2018 के सर्कुलर में डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ट्रेनिंग की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकार के पदों और सेवाओं के लिए नियुक्तियों के संबंध में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति / अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों के लिए 45 दिनों या उससे अधिक समय तक चलने वाले अस्थायी नियुक्तियों में आरक्षण होगा। हालाँकि, इन पदों को “अनारक्षित” होने का दावा किया जाता है। वर्तमान में लागू “13-पॉइंट रोस्टर” के अनुसार, तीन पदों तक कोई आरक्षण नहीं है। आरटीआई अधिनियम राज्य के तहत द इंडियन एक्सप्रेस (14 जून, 2019 को रिपोर्ट) को डीओपीटी द्वारा दी गई फाइल नोटिंग किसी विभाग में पेशेवरों की जरूरत के मुताबिक एक या दो पदों पर भर्ती की मांग आयोग के समक्ष पेश की जाती है। इसीलिये इसे ‘सिंगल काडर’ पद कहा जाता है।
ऐसे में आरक्षण दे पाना व्यवहारिक नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सिंगल काडर पद के लिए सृजित पद, सिविल सेवा के पदों से बिल्कुल भिन्न होते है। इसलिए सिविल सेवा के आरक्षित पदों पर सिंगल काडर पद से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। चूंकि इस योजना के तहत भरा जाने वाला प्रत्येक पद एक ही पद है, इसलिए आरक्षण लागू होगा। 2019 में नियुक्त नौ व्यक्तियों में से प्रत्येक को एक अलग नियुक्ति के रूप में भर्ती किया गया था।
ओबीसी के लिए कम से कम दो सीटें थीं और एक सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए केंद्र के आरक्षण नियमों के अनुसार थी। इसी तरह, नवीनतम विज्ञापन में, यदि 27 निदेशकों को एक ही समूह के रूप में माना जाता है, तो सात पदों को ओबीसी के लिए चार, एससी के लिए चार, एसटी के लिए एक और ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लिए दो के लिए 13 अंक रोस्टर के अनुसार आरक्षित करना होगा। लेकिन जैसा कि उन्हें प्रत्येक विभाग के लिए अलग से विज्ञापित / माना गया है, उन सभी को “अनारक्षित” घोषित किया गया है।