क्या मीडिया की आजादी के नाम पर दुरुपयोग हो रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वर्ष 2014 में भाजपा की लोकसभा-विजय के उपरांत अनेक समाचार-वेबसाइटें उग आई हैं। इनमें से अनेक को विदेशों से पैसा दिया जाता है। कुछ को तो भारत की सम्मानित संस्थाओं से भी फंडिंग मिलती है जैसे कि आईपीएसएमएफ।

इस फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित संस्थाएं मिक्स्ड-बैग की तरह हैं। वह लेफ्ट इकोसिस्टम कहलाने वाली साइटों को पैसा देता है तो दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाली साइट को भी। लेकिन याद रहे कि आईपीएसएमएफ ने न्यूजक्लिक की फंडिंग नहीं की थी।

इस साइट की स्थापना 2009 में यूपीए सरकार के स्वर्णयुग में की गई थी। तब उसे आईपीएसएमएफ के पैसों की जरूरत ही नहीं थी। उसकी मदद करने के लिए दूसरे दानवीर तत्पर थे। अनेक खबरों के मुताबिक न्यूजक्लिक के समर्थकों में नेवील रॉय सिंघम सरीखे अमेरिकी अरबपति भी शामिल थे।

सिंघम के चीन से गहरे ताल्लुकात हैं। वे चीन की हुआवेई के लिए काम कर चुके हैं और शंघाई में रहते हैं। द न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक वे चुनिंदा समाचार-संस्थाओं के माध्यम से चीन के प्रोपगंडा को आगे बढ़ाते हैं। इनमें न्यूजक्लिक भी शामिल है।

वैश्विक मीडिया प्रोपगंडा कोई नई कहानी नहीं है। पश्चिमी मीडिया संस्थाएं एक अरसे से पश्चिम के हितों को आगे बढ़ाती आ रही हैं। उनके रक्षा और विदेश नीति के लॉबीइस्ट यही काम ऑफलाइन करते हैं। लेकिन चीन और सिंघम का मामला जरा संगीन है। न्यूजक्लिक पर मनी लॉिन्ड्रंग का आरोप भी लगा है।

2021 में उस पर ईडी के द्वारा छापा मारा गया था और यह मामला अभी अदालत में है। यह यकीनन हमारे लिए एक सुरक्षागत चुनौती है, क्योंकि बीजिंग बड़ी ढिठाई से पाकिस्तानी आतंकवादियों का बचाव करता है और खुद एलएसी पर शत्रुतापूर्ण हरकतें करता रहता है।

द न्यूयॉर्क टाइम्स के ताजा खुलासे के बाद न्यूजक्लिक पर चलाया जा रहा मुकदमा और गति पकड़ेगा। सम्भवतया इस महीने के समापन से पूर्व इस मामले में एक और सुनवाई होगी। लेकिन यह तथ्य भारत के कानून प्रवर्तन की लचर हालत के बारे में बताने के लिए काफी है कि दो साल में भी ईडी न्यूजक्लिक पर चलाए जा रहे केस को आगे नहीं बढ़ा पाया है। यह निष्क्रियता उनके लिए तो वरदान ही है, जो चीन और पाकिस्तान के वरदहस्त से भारतीय-राज्य को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

सिंघम एक अरसे से अमेरिकी सुरक्षा तंत्र के निशाने पर हैं। बिजनेस टुडे के मुताबिक, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उसने सिंघम से जुड़े समूहों को करोड़ों डॉलर की फंडिंग के सुराग पाए हैं। शंघाई में उनके नेटवर्क का एक आउटलेट एक यूट्यूब शो का सहनिर्माता है, जिसे इस शहर के प्रचार विभाग द्वारा पैसा दिया जाता है।

दो अन्य आउटलेट चाइनीज़ यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर दुनिया में चीन की आवाज पहुंचाने का काम कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक सिंघम कम्युनिस्ट पार्टी की एक कार्यशाला में भी सम्मिलित हुए थे, जिसका मकसद पार्टी के एजेंडे का दुनिया में प्रचार करना था। वे एक ऐसी कम्पनी के साथ ऑफिस-स्पेस शेयर करते हैं, जिसका लक्ष्य दुनिया को चीन के द्वारा किए गए ‘चमत्कारों’ से अवगत कराना है।

चीन की शह पर की जाने वाली प्रोपगंडा-पत्रकारिता- जिसका कि न्यूजक्लिक पर आरोप लगाया गया है- वह कीमत है जिसको मुक्त-मीडिया के नाम पर लोकतंत्र में हमें चुकाना होता है। आज मीडिया की स्वतंत्रता को निर्विवाद मान लिया गया है, फिर भले ही उससे फर्जी न्यूज़ साइटों की भरमार हो जाए। लेकिन जब इस तरह की स्वच्छंद पत्रकारिता अपनी लक्ष्मणरेखा को पार करके राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चुनौती बन जाती है या मनी लॉिन्ड्रंग जैसी आपराधिक गतिविधियों के आरोप लगते हैं तो सरकार को त्वरित और प्रभावी कानूनी कार्रवाई करना ही चाहिए।

न्यूजक्लिक का मामला एक बार फिर यह रेखांकित करता है कि कैसे आपराधिक-मानसिकता वाले कुछ पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता की आड़ में निगरानी से बचने की कोशिश करते हैं। खरे और खोटे की परख करना हमेशा ही सरल नहीं होता। कुछ पुरस्कृत न्यूज़ साइटें अपने खुफिया मकसद को छुपाए रखती हैं।

प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा वित्तपोषित अनेक मीडिया फर्में भी ऐसे ग्रे-ज़ोन में आती हैं, जो वैध मानकों पर सरकार की आलोचना करने और जानबूझकर किसी एजेंडे को सामने रखने वाली खबरें प्रस्तुत करने के बीच की संधिरेखा को जब-तब लांघती रहती हैं। इसे तो मीडिया की आजादी के बजाय मीडिया की आजादी का दुरुपयोग ही कहा जाएगा।

चीन की शह पर की जाने वाली प्रोपगंडा-पत्रकारिता वह कीमत है, जो मुक्त-मीडिया के नाम पर लोकतंत्र में चुकाना होती है। मीडिया की स्वतंत्रता को निर्विवाद मान लिया गया है, फिर भले ही फर्जी न्यूज़ साइटों की भरमार हो जाए।

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