क्या मीडिया की स्वतंत्रता रामराज्य की अवधारणा है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
प्रेस किसी भी समाज का आईना होता है। 1991 में यूनेस्को की जनरल असेंबली के 26वें सत्र में अपनाई गई सिफारिश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने दिसंबर 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। प्रसिद्ध शायर नज़मी ने कहा है कि अपनी खिड़कियों के कांच न बदलो नज़मी, अभी लोगों ने अपने हाथों से पत्थर नहीं फेंके हैं।” प्रेस ने समय-समय पर ऐसी स्थितियों के प्रति सावधान किया गया है, ‘डर पत्थर से नहीं, डर उस हाथ से है जिसने पत्थर पकड़ रखा है।’ महावीर, बुद्ध एवं गांधी का उदाहरण देते हुए बहुत सफाई के साथ प्रेस ने समाज को सजग किया है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रेस की स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का जश्न मनाने के साथ-साथ दुनिया भर में प्रेस की आजादी का मूल्यांकन करने का अवसर है। यह दिवस मीडिया की आजादी पर हमलों से मीडिया की रक्षा करने तथा मरने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का कार्य करता है। इस दिन के मनाने का उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार के उल्लंघनों की गंभीरता के बारे में जानकारी देना भी है। यह दिन प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और इसके लिए सार्थक पहल करने तथा दुनिया भर में प्रेस की आजादी की स्थिति का आकलन करने का भी दिन है। प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है। यह दिवस प्रेस के सम्मुख उपस्थित विभिन्न झंझावातों एवं संकटों के बीच अपने प्रयासों के दीप जलाये रखने का आह्वान हैं।
भारत में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना गया है। अकबर इलाहाबादी ने इसकी ताकत एवं महत्व को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है कि ‘न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल तब अखबार निकालो। उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए प्रेस को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली बता कर इनके इस्तेमाल की बात कह गए हैं। अर्थात कलम को हथियार से भी ताकतवर बताया गया है। पर खबरनवीसों की कलम को तोड़ने, उन्हें कमजोर करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को निस्तेज करने के लिए बुरी एवं स्वार्थी ताकतें तलवार और तोप का इस्तेमाल कर रही हैं। दुनियाभर में पत्रकारों को सच की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है और पड़ रही है।
तलवार से भी धारदार कलम इतनी प्रभावी है कि इसकी वजह से बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपतियों और सितारों को अर्श से फर्श पर आना पड़ा। इसी कलम की धार ने 70 के दशक में अमेरिका के मशहूर वाटरगेट कांड का फंडाफोड़ कर राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को व्हाइट हाउस से बाहर का रास्ता दिखाया था। इस तरह मशहूर पत्रकार एन. राम और चित्रा सुब्रमण्यम की पत्रकारिता ने जब बोफोर्स तोपों की आड़ में हुए घोटाले को जनता के समक्ष पेश किया तो भारतीय राजनीति में हंगामा मच गया। इसीलिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा भी है कि ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस एक आजाद एवं जीवंत प्रेस के प्रति हमारे अविश्वसनीय समर्थन को दोहराने का दिन है जो लोकतंत्र के लिए बेहद जरूरी है। आजकल के दौर में सोशल मीडिया संपर्क के एक सक्रिय माध्यम के रूप में उभरी है और इससे प्रेस की आजादी को और बल मिला है।’
यह दिवस पत्रकारों के लिये भी आत्म-मंथन का दिवस है। आज हमारा मीडिया अपना दायित्व ठीक तरीके से नहीं निभा रहा है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया टी आर पी बढ़ाने के लिये खबरों में तड़का लगाने से परहेज नहीं करता। प्रेस के जिन माध्यमों से नैतिकता मुखर हो रही है, वे बहुत सीमित हैं या दायित्वविमुख हैं। प्रभावक्षीण तथा चेतना पैदा करने में काफी असमर्थ हैं। हम देख रहे हैं कि माध्यमों की अभिव्यक्ति एवं भाषा में एक हल्कापन आया है।
ऐसे में एक गम्भीर पत्रकारिता के साथ आगे आना ही एक साहस है। आज यह समझना भी जरूरी है कि क्यों मीडिया की आजादी बहुत कमजोर है? यह भी जानना जरूरी है कि अभी यह सभी की पहुंच से क्यों बाहर है? हालांकि मीडिया की सच्ची आजादी के लिए माहौल बन रहा है, लेकिन यह भी ठोस वास्तविकता है कि दुनिया में कई लोग ऐसे हैं, जिनकी पहुंच बुनियादी संचार प्रौद्योगिकी तक नहीं है।
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