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क्या कम वोटिंग के बाद हार रहे हैं मोदी?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

लोकसभा चुनाव के दो चरणों का समापन हो चुका है और अब तक कुल 190 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। सेकेंड फेज की वोटिंग के बाद चर्चाएं तेज हो गई हैं। वैसे तो 4 जून को ही सही नतीजों का पता चलेगा। इसको लेकर कोई भविष्वाणी कर पाना फिलहाल संभव नहीं है। लेकिन इंडी गठबंधन काउंटिंग से पहले ही वोटिंग से जुड़ी भविष्यवाणी करने लगा है। लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव जिनका पिछले लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुला था वो दावा करते हुए कहते नजर आए कि बीजेपी का 400 पार का नारा अब मोदी जी भूल गए हैं।

पहले फेज में ही 400 पार वाली फिल्म फ्लॉप हो गई। वहीं  2019 के चुनाव में 421 सीटों पर उम्मीदवार उतारकर 52 सीट जीतने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भविष्यवाणी करते नजर आए कि मुझे लग रहा था कि बीजेपी 180 तक जाएगी। लेकिन अब 150 सीट तक जाएंगे। हर राज्य में हमें रिपोर्ट मिल रही है कि हमारा चुनाव इंप्रुव कर रहा है और हम अंडरकरंट है। अब तक दो चरण की वोटिंग हो चुकी है। सभी पार्टियों के अपने अपने दावे हैं। अपने अपने गणित हैं। कम वोटिंग पर्सेंटेज को लेकर भी गुणा-भाग हो रहा है।

इस गुणा-भाग को लेकर हर दलों के अपने अपने फॉर्मूले हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए को 400 पार सीटें मिलने का लक्ष्य रखा है। वोटर टर्नाउट कम हुआ है और इसका असर बीजेपी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है और मोदी हार सकते हैं। इस तरह के नैरेटिव सोशल मीडिया ट्रोलर और मीडिया के कुछ वर्गों द्वारा गढ़ने की कोशिश की जा रह है। लेकिन हकीकत क्या है? ये आप भी जानना चाह रहे होंगे।

क्या बीजेपी के वोटर्स नहीं आ रहे  बाहर?

18वीं लोकसभा चुनाव के लिए सेकेंड फेज में 26 अप्रैल को 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 88 सीटों पर 68.49% वोटिंग हुई। पिछले लोकसभा चुनाव में दूसरे चरण में 13 राज्यों की 95 लोकसभा सीटों पर 67 फीसदी वोटिंग हुई थी। केरल की सभी 20 सीट, कर्नाटक की 28 में से 14 सीट, राजस्थान की 13 सीट, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की आठ-आठ सीट, मध्य प्रदेश की छह सीट, असम और बिहार की पांच-पांच सीट, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल की तीन-तीन सीट तथा मणिपुर, त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर में एक-एक सीट पर 26 अप्रैल को वोट डाले गए।

कहा जा रहा है कि सेकेंड फेज में कम हुई वोटिंग का असर बीजेपी पर ही पड़ेगा और उसके वोटर्स नहीं बाहर आ रहे हैं। लेकिन कोई ये नहीं बता रहा कि इन 88 सीटों के ऊपर कांग्रेस पार्टी को कितने में जीत मिली थी। इस बार उसकी स्थिति क्या है? एक नैरेटिव मीडिया के वर्ग की तरफ से भी गढ़ने की कोशिश की जा रही है कि बीजेपी की सीटें कम हो रही है और वो हार रही है।

लेकिन ये नहीं बता रही कि फिर जीत कौन रहा है? किस किस सीट पर कांग्रेस जीत ला रही है। इसलिए हमने पहले फेज के चुनाव के बाद भी फेक नैरेटिव को ध्वस्त करने के लिए एक विश्लेषण किया था और ऐसे खोखले दावों का एमआरआई स्कैन करके आपको सही तस्वीर बताई थी। एक बार फिर से हम सेकेंड फेज की वोटिंग के बाद प्रोपगैंडा को डिकोड करने के लिए आपके सामने ये विश्लेषण लेकर आए हैं।

सबसे पहले तो सेंकेंड फेज में जिन 88 सीटों पर वोटिंग हुई थी उसमें साल 2019 में किस पार्टी के पास कितनी सीटें थी ये आपको बता देते हैं। पिछली बार बीजेपी ने 52 सीटें हासिल की थी। जबकि कांग्रेस पार्टी के हिस्से में केवल 19 सीटें मिली थी। ये तो हमें नहीं पता कि इस बार के परिणाम क्या होंगे और क्या बीजेपी घटकर 40 पर आ जाएगी या फिर कांग्रेस 10 सीटें भी हासिल करने की स्थिति में रहेगी या नहीं ये तो 4 जून के नतीजों पर ही पता चलेगा। लेकिन पुराने आंकड़ों से मेल कर पूरे खेल को समझने की कोशिश तो हम कर ही सकते हैं। फिर सारी तस्वीर कुछ हद तक साफ हो जाएगी।

ऐसे में इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वोटिंग अगर कम हो रही है तो ये चुनाव एकतरफा होता जा रहा है। इसलिए लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं। जहां कहीं भी मार्जिन दो से ढाई लाख हो उसे कवर करना बहुत मुश्किल है। एक बात और गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता और उसके नेता क्या आपको पूरा दम लगाते और सड़क पर संघर्ष करते नजर आ रहे हैं।

उदाहरण के लिए दिल्ली ही लेकर देखें तो आपस में ही मतभेद और गुत्थम गुत्थी करती नजर आ रही है। जय, विजय, फतह चुनाव हो, पक्ष हो विपक्ष हो, देश हो या विदेश मोदी का लोहा हर कोई मानता है। पिच कोई भी हो मोदी विरोधियों पर हावी रहते हैं। मोदी ने दिखाया कैसे चुनाव जीता जाता है। मोदी ने दिखाया कैसे विरोधियों को हराया जाता है।

मोदी ने दिखाया जीत का जश्न कैसे मनाया जाता है। दिल्ली में पार्टी हेडक्वार्टर हो। बनारस की चौक या गलियां हो। गुजरात हो, राजस्थान हो, मध्य प्रदेश या बिहार, या फिर बंगाल ही क्यों न हो। मोदी चुनाव के मैदान में उतरते ही जीत की गारंटी देते हैं। चुनाव में जनता को जर्रादन मानने वाले नरेंद्र मोदी हर बार जीत को जनता, कार्यकर्ता और पार्टी के नाम कर देते हैं।

 

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