डिजिटल दुनिया में क्या हमारा डाटा सुरक्षित है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

डिजिटल दुनिया में व्यक्तिगत सूचनाओं की सुरक्षा और निजता के अधिकार को सुनिश्चित करने की कोशिशों को फिर एक बड़ा झटका लगा है. फेसबुक इस्तेमाल करनेवाले 106 देशों के 53 करोड़ से अधिक लोगों की जानकारियां इंटरनेट पर साझा कर दी गयी हैं. माना जा रहा है कि इनमें 60 लाख भारतीय खाते हैं. उल्लेखनीय है कि भारत उन देशों में शुमार है, जहां फेसबुक समेत सोशल मीडिया के उपयोगकर्ता सबसे अधिक संख्या में हैं.

इस डाटा लीक में अमेरिका और ब्रिटेन के भी लाखों लोग प्रभावित हुए हैं. सोशल मीडिया कंपनियां लगातार यह भरोसा दिलाती रहती हैं कि वे निजी सूचनाओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन लगातार ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिनमें हैकर आसानी से ऐसे डेटा चुरा लेते हैं. ऐसी घटनाओं को लेकर शोर तभी मचता है, जब बड़ी संख्या में डेटा की चोरी होती है. इस घटना के हवाले से हमें कैंब्रिज एनालाइटिका के मसले को भी याद करना चाहिए, जिसमें लाखों लोगों के डेटा को हासिल कर मतदान और चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश हुई थी.

उस घटना में यह बात कमोबेश साबित हुई थी कि डेटा उपलब्ध कराने में फेसबुक की भी भूमिका थी. तब अमेरिका और ब्रिटेन में उसके खिलाफ जांच और कार्रवाई भी हुई थी. कुछ साल पहले व्हाट्सएप के संवादों के लीक होने की घटना हो चुकी है, जबकि फेसबुक के स्वामित्व वाली इस सोशल मीडिया सेवा का दावा है कि दो लोगों के संवाद को किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा हैक कर पढ़ना संभव नहीं है. यह दावा बार-बार गलत साबित होता रहा है.

चोरी हुए डेटा का राजनीतिक इस्तेमाल के साथ लोगों को ब्लैकमेल करने, उनके बैंक या अन्य खातों में सेंध लगाने तथा उनकी सार्वजनिक छवि को धूमिल करने के लिए हो सकता है. ऐसे मामले भारत समेत कई देशों में होते रहे हैं. सूचना तकनीक के विस्तार के साथ इंटरनेट पर विभिन्न सेवाएं मुहैया करानेवाली सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और संचार कंपनियों की अहमियत बढ़ती जा रही है. इससे उनके प्रभाव में भी बढ़ोतरी हो रही है.

दुनिया की सबसे बड़ी पांच कंपनियां इन्हीं श्रेणियों में हैं. ये कंपनियां लोगों के डेटा का इस्तेमाल अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए करती रही हैं और अक्सर ऐसा खाताधारक की सहमति के बिना होता है. इसके अलावा वे डेटा की खरीद-बिक्री में भी शामिल हैं. सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स कंपनियां अपनी अकूत कमाई का मामूली हिस्सा डेटा सुरक्षा पर खर्च करती हैं.

चूंकि इनका दायरा वैश्विक है, इसलिए ये विभिन्न देशों के कमजोर कानूनों का फायदा उठा कर डेटा का संग्रहण ऐसी जगहों पर करती हैं, जहां उनका मनमाना उपयोग संभव होता है. डेटा सुरक्षा के लिए यह जरूरी है कि खाताधारकों का डेटा देश के भीतर ही संग्रहित हो तथा कंपनियां नीतिगत पारदर्शिता बरतें. हालिया घटना को देखते हुए सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करते हुए कंपनियों पर दबाव बढ़ाना चाहिए.

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