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क्या पाकिस्तान अपनी परमाणु ताकत को बढ़ा रहा है ? - श्रीनारद मीडिया
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क्या पाकिस्तान अपनी परमाणु ताकत को बढ़ा रहा है ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत और पाकिस्तान द्वारा मई 1998 के परमाणु परीक्षणों ने दक्षिण एशिया के लिए एक युगांतकारी मोड़ ला दिया। परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन द्वारा संचालित प्रलय का दिन घड़ी 11:43 से 11:51 तक यानी मध्यरात्रि से केवल 9 मिनट पहले हो गई। भारत में शक्ति परीक्षणों का जश्न मनाया जाता है, जबकि पाकिस्तान परमाणु परीक्षणों की श्रृंखला को एक राष्ट्रीय दिवस “योम-ए-तकबीर” के रूप में मनाता है। इस आयोजन की 25वीं वर्षगांठ पर लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई (सेवानिवृत्त), जो वर्तमान में पाकिस्तान के राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण (एनसीए) के सलाहकार हैं। उन्होंने इस्लामाबाद के सामरिक अध्ययन संस्थान के शस्त्र नियंत्रण और निरस्त्रीकरण केंद्र में एक भाषण दिया।

जीरो रेंज के परमाणु बम का खुलासा

पाकिस्तान के परमाणु बम अब भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गए हैं। यही नहीं पाकिस्तान ने अब जीरो रेंज के परमाणु बम का खुलासा किया है। पाकिस्तान ने अपने हथियारों के इस्तेमाल के नियम भी बदल दिए हैं। अब वो टैक्टिकल वेपन यानी छोटे परमाणु बम और परमाणु हम वाली बारूदी सुंरगे बना रहा है। इसके अलावा वो अपना न्यूक्लियर ट्रायड भी मजबूत कर रहा है।  पाकिस्तान ने अपने पहले परमाणु परीक्षण की 25वीं वर्षगांठ मनाई, वह अपने वर्तमान परमाणु रुख के बारे में सामान्य से अधिक विवरण साझा करता दिखाई दिया।

इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज इस्लामाबाद द्वारा आयोजित एक सेमिनार में बोलते हुए सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई ने पाकिस्तान के अन्यथा अस्पष्ट परमाणु सिद्धांत के नए विवरण प्रदान किए। किदवई जो कहते हैं वह मायने रखता है क्योंकि वह वर्तमान में देश के राष्ट्रीय कमान प्राधिकरण (एनसीए) के सलाहकार हैं, जो परमाणु हथियारों से संबंधित अनुसंधान और विकास और अन्य सभी नीतिगत मामलों को नियंत्रित करता है। वह रणनीतिक योजना प्रभाग (एसपीडी) के पूर्व महानिदेशक भी हैं, जो परमाणु नीति और रणनीति तैयार करने के साथ-साथ परमाणु संपत्तियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है।

कौन हैं जनरल किदवई

पूरी बातों का विश्लेषण करने से पहे सिद्धांतकार के बारे में जानना तो बनता है। आर्टिलरी अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) खालिद किदवई ने 2000 में महानिदेशक रणनीतिक योजना प्रभाग का पदभार संभाला और विस्तार के माध्यम से वहीं रहे। वास्तव में वाशिंगटन के निरस्त्रीकरण विशेषज्ञ माइकल क्रेपोन ने उनकी तुलना एक अमेरिकी दिग्गज से की थी। 1971 की जंग में खालिद किदवई को भारतीय सेना ने पकड़ लिया था और 2 साल तक इलाहाबाद जेल में युद्ध बंदी के तौर पर रखा गया।

इसके बाद वापस पाकिस्तान को सौंप दिया गया। किदवई का पाकिस्तान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के साथ गहरा जुड़ाव है। उन्होंने ही स्ट्रैटजिक प्लान्स डिवीजन यानी SPD बनाई थी। 14 साल तक वो इसके प्रमुख थे। पिछले 25 सालों से पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार के विकास और विस्तार की देखरेख करने वाले केंद्रीय व्यक्ति रहे हैं। खालिद किदवई ने 2000 में स्ट्रैटजिक प्लांस डिवीजन डायरेक्टर जनरल बने और सेवा विस्तार के जरिए इस पद पर लगातार बने हुए हैं।

परमाणु रणनीति में खतरनाक बदलाव

अपने संबोधन के दौरान उन्होंने पाकिस्तान की परमाणु नीति के कुछ लंबे समय से चले आ रहे रुख को दोहराया। जैसे कि भारत को रोकने के लिए भूमि, वायु और समुद्र-आधारित क्षमताओं पर आधारित इसके परमाणु त्रय की ताकत, विशेष रूप से भारतीय सेना की तथाकथित कोल्ड स्टार्ट सिद्धांत, जो इस्लामाबाद की परमाणु सीमा को पार किए बिना पाकिस्तानी क्षेत्र के अंदर संचालन करने के लिए एकीकृत युद्ध समूहों की त्वरित लामबंदी के माध्यम से एक सीमित युद्ध की परिकल्पना करता है। अपने भाषण के दौरान यह दोहराया कि पाकिस्‍तान भारत की कथित कोल्‍ड स्‍टार्ट नीति के खिलाफ जमीन, हवा और पानी के जरिए परमाणु हमला करने की ताकत यानि न्‍यूक्लियर ट्रायड को मजबूत करेगा।

क्या होते हैं टैक्टिकल वेपन

ये कम वजन के होते हैं और कम दूरी में तबाही मचाते हैं। सैन्य ठिकानों, अंडरग्राउंड बंकरों, कमांड एंड कंट्रोल ठिकानों को तबाह करने में इनका इस्तेमाल किया जा सकता है। ये आमतौर पर 0.1 किलोटन से 100 किलोटन धमाके की क्षमता वाले होते हैं। अमेरिका ने हिरोशिमा पर 15 किलोटन और नागासाकी पर 21 किलोटन क्षमता वाला परमाणु बम गिराया था। हिरोशिमा में गिराए परमाणु बम से 1.46 लाख लोगों और नागासाकी पर गिराए परमाणु बम से 70 हजार लोगों की मौत हुई थी।

टैक्टिकल परमाणु हथियारों को प्लेन और जहाज में भी लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए पनडुब्बियों को टारगेट करने वाले टारपीडो कोल्ड वॉर के दौरान अमेरिका और सोवियत संघ ने हजारों की संख्या में टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन तैनात किए थे। हालांकि युद्ध के मैदान में अभी तक कभी इनका इस्तेमाल नहीं किया गया है।

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