Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या जम्मू-कश्मीर में सिमट रहा है आतंकवाद? - श्रीनारद मीडिया

क्या जम्मू-कश्मीर में सिमट रहा है आतंकवाद?

क्या जम्मू-कश्मीर में सिमट रहा है आतंकवाद?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अनुच्छेद 370 निरस्त होने के डेढ़ वर्ष की यात्रा में जम्मू-कश्मीर में शांति, अमन-चैन एवं विकास की सुबह हुई है। भले ही वहां स्वार्थी एवं सत्तालोलुप राजनीतिक दलों के लिये यह सफर एक ऊहापोह का सफर रहा हो। ऐसे बड़े एवं कठोर निर्णयों से अच्छा-बुरा घटता ही है। कुछ को वह घायल करता है तो बहुतों को खुशी देता है, किसी का इससे सिर शर्म से झुक जाता है, तो अधिकांश के गर्व से ऊपर उठ जाते हैं। जम्मू-कश्मीर ही नहीं समूचे देश के लिये नरेन्द्र मोदी सरकार का यह साहसिक निर्णय एक नए युग की शुरुआत साबित हुआ है, नई आशाओं को आकार देने का प्रस्थान बना है। विशेषतः यह आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने अभियान है। यह सशक्त राष्ट्र-निर्माण का प्रतीक है।

जम्मू-कश्मीर में चारों तरफ खुशियाँ, उत्साह, बधाइयाँ, खाना-पीना, विकास, जीने की संभावनाओं के पंख लगना- जैसी मनोरम नई सुबह देखी जा सकती है। सुरम्य और मनमोहक कश्मीर में पूरी तरह शांति की बयार बहने लगी है, ट्यूलिप गार्डन में खिले फूल यही संकेत दे रहे हैं। केन्द्र सरकार के संकल्प एवं सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ मुश्किल हो गई है। पाकिस्तान ने सीमा के आर-पार सुरंगें खोदकर आतंकियों की घुसपैठ की चाल चली, वह भी नाकाम की गई। सुरक्षा बलों ने एक के बाद एक चार सुरंगों का पता लगाकर उन्हें बंद कर दिया।

आतंकवादियों के गिरते मनोबल का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि 2019 में जहां कुल 555 आतंकी घटनाएं हुई थीं, वहीं पिछले वर्ष केवल 142 घटनाएं ही दर्ज की गईं। सुरक्षा बलों की लगातार सर्चिंग के चलते आतंकवाद की कमर टूट गई है। आतंकवादी संगठन सोशल मीडिया के जरिये नई भर्तियों की कोशिश कर रहे हैं और अब दहशतगर्दों एवं आतंकवादी संगठनों ने नाबालिगों, मासूम बच्चों एवं किशोरों को आतंक के जाल में फंसाना शुरू किया है, यह एक चिन्ताजनक स्थिति है। स्कूली बच्चों के हाथों में बंदूकें थमा देना और उन्हें मौत के मुँह में धकेल देना क्रूरता की हदें पार करना है,

अमानवीयता की चरम पराकाष्ठा है। ऐसे क्रूर, हिंसक एवं वहशी दिमाग नयी-नयी लुभावनी स्थितियां गढ़कर आतंकवाद के आधार पर अशांति, हिंसा एवं जीवन नहीं बल्कि मौत का तांडव चला रहे हैं। इनके घातक एवं जीवन विनाशक मंसूबों को न स्थानीय नेता छोड़ पाये हैं, न आम जनता समझ पायी है। एक मजबूत राष्ट्र-निर्माण की ओर बढ़ते कदमों को रोकने में आतंकवाद ने बड़ी बाधा डाली है। वायरन ने तो कहा भी है कि हजारों वर्षों में एक राष्ट्र का निर्माण होता है, किन्तु एक घंटे मात्र में वह धराशायी हो सकता है।’

इसलिये अब आम जनता को इन अराष्ट्रीय एवं अशांति के मंसूबों को समझना होगा, क्योंकि अब उनके षड्यंत्रों के शिकार युवा नहीं बल्कि किशोर पीढ़ी है, मासूम बच्चें निशाने पर हैं। कश्मीर में कैडर की कमी से जूझ रहे आतंकी संगठनों को युवा ठेंगा दिखा रहे हैं तो दहशतगर्दों ने नाबालिगों को आतंक के जाल में फंसाना शुरू कर दिया है। बच्चे राष्ट्रीय सम्पदा हैं, दुनिया के सभी राष्ट्रों की तरह वे हमारी उम्मीदें भी हैं, उनको निशाना बनाना राष्ट्रीयता पर हमला है। सभी राजनीतिक दलों को ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। यह कश्मीरी अवाम की भी जिम्मेदारी है कि वे अपनी नई पीढ़ी पर बढ़ते आतंक के साए के बीच आंखें बंद करके नहीं बैठें। उन्हें नई पीढ़ी को आतंक के पोषण और मासूमों के मन-मस्तिष्क में जहर भरने की साजिशों को रोकना ही होगा।

जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने कहा है कि अभिभावकों को अपने बच्चों से आतंकवादी घटनाओं में शामिल न होने की लगातार अपील करनी चाहिए। वे एक बार अपील करके न ठहर जाएं बल्कि लगातार प्रयास करते रहें। पूर्व में भी सुरक्षा बलों ने एक अभियान चलाया था जिसमें माताओं ने अपने बच्चों को हथियार छोड़कर लौट आने को कहा था तो काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए थे। कई युवा लौट आए थे। जो युवा आतंकवादी घटनाओं में लिप्त हैं उन्हें तो मुक्ति दिलानी ही है, उससे भी बड़ा काम है किशोरों को आतंकवादी बनने से रोकना। यह बड़ी चुनौती है, अन्यथा एक बार फिर चारों तरफ वे ही डरावने चेहरे, वे ही पुराने विस्फोटक मकान, वे ही अशांत गलियां, वे ही खून से सनी सड़कें, टूटी सड़कें, गन्दगी से भरे रास्ते, वाहनों से निकलकर थमा हुआ धुआं- साईकिल पर बिकता पानी मिला दूध, बासी ‘डबल रोटी’ को ताजी कहकर बेचने वालों की पुकार। बिना किसी उत्साह के अशांत, डरा, सहमा एवं हिंसाग्रस्त चलता जन-जीवन दिखाई देगा।

आतंकवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान तेजी से चल रहा है और हाल ही में तीन दिनों के अंदर सुरक्षा बलों ने 12 आतंकवादियों का सफाया कर दिया। जिन आतंकवादियों ने भारतीय सेना की टेरिटोरियल आर्मी के जवान की हत्या की थी उनका भी खात्मा कर दिया गया। दुखद बात तो यह है कि मारे गए आतंकवादियों में एक 14 साल का नाबालिग भी था। सुरक्षा बलों ने उसका आत्मसमर्पण कराने की काफी कोशिश की। वह दसवीं कक्षा का छात्र था और शोपियां जिले के ही जैतापुरा के एक निजी स्कूल में पढ़ता था। 6 अप्रैल को ही वह लापता हुआ था।

जैसे ही सुरक्षा बलों को पता चला कि आतंकियों के साथ स्कूली बच्चा भी है तो सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ स्थल पर मां-बाप को लाकर उनसे अपील भी करवाई। मां की गुहार सुनकर बच्चा पिघल भी गया था और वह आत्मसमर्पण को तैयार था लेकिन उसके साथ मौजूद अलबदर कमांडर आसिफ शेख ने उसे बहकाना शुरू कर दिया। ऐसे बच्चों की संख्या आतंकवादी संगठनों में बढ़ रही है, इन अमानवीय चेहरों एवं आतंकवादियों ने सभी इंसानियत की सीमाओं का उल्लंघन करते हुए अब बच्चों को निशाना बनाया है, केन्द्र सरकार एवं सुरक्षा बलों की मुस्तैदी से उनका यह क्रूर इरादा सफल नहीं होगा।

लेकिन इसके लिये सरकार के साथ-साथ आम जनता को भी जागरूक होना होगा। जैसा कि रस्किन ने कहा था कि जिस राष्ट्र ने अपने स्वरूप को पहचान लिया वही सच्चे साम्राज्य को पाने का अधिकारी है।’ जम्मू-कश्मीर को अपनी स्व की पहचान एवं अस्तित्व एवं अस्मिता के स्वरूप को पहचानना ही होगा, तभी वह वास्तविक विकास की ओर अग्रसर हो सकेगा।

यह सच्चाई है कि आतंकवादी संगठनों ने जम्मू-कश्मीर के भीतरी इलाकों में अपनी पहुंच बनाए रखी हुई है और मौका पाते ही वह अपनी साजिश को अंजाम देने की कोशिश करते हैं या फिर सुरक्षा बलों पर हमला कर देते हैं। जो संकेत मिल रहे हैं वे शुभ के परिचायक नहीं हैं, अभी भी भय एवं आतंक कायम है। बच्चों को आतंकवादी बनाने की घटनाओं से जुड़ी भयंकर त्रासदी तनाव और पीड़ा दे रही है। भविष्य की चेतावनी और वक्त की दस्तक सुन लेना ही समझदारी है एवं नये रूप में पसरते आतंकवाद पर काबू पाने की बड़ी जरूरत है।

आतंकवादी संगठन कितने बच्चों को आतंकवाद की भेंट चढ़ायेगा? कितने बच्चों को जीवन से पहले मृत्यु देगा? कितने बच्चों को असुरक्षित जीवन देगा? यह बहुत कुछ अपने आप में समेटे हुए है। कामना तो शुभ, विकासमय, सुखमय एवं शांतिमय जम्मू-कश्मीर की करें। ऐसी कामनाएं अब साकार भी हो रही हैं, कुछ समय से जम्मू-कश्मीर पुलिस, स्थानीय नागरिकों और खुफिया तंत्र के साथ सुरक्षा बलों का बेहतर तालमेल कायम है। अब केन्द्र सरकार का पैसा आतंकवाद को पोषित करने नहीं बल्कि शांति-अमन-विकास को लाने में खर्च हो रहा है। अब पहले की तरह आतंकवादी संगठनों को अपने समूह में शामिल होने के लिए लोग नहीं मिल रहे। स्थानीय लोगों के बीच आतंक के रास्ते के खामियाजे को लेकर समझ और जागरूकता बढ़ी है।

लोग जानते हैं कि आतंकवाद का रास्ता केवल मौत की ओर जाता है। दरअसल थोड़े-थोड़े समय के बाद आतंकी संगठन सुरक्षा बलों पर हमले सहित दूसरी वारदातें अपनी उपस्थिति दिखाने के लिए करते हैं। इसके जरिये वे संदेश देना चाहते हैं कि राज्य में स्थिति सामान्य नहीं। सच तो यह है कि अनुच्छेद हटाये जाने के बाद से कुछ दिनों के तनाव के बाद अब स्थितियां सामान्य हो चुकी हैं। इसका प्रमाण है कि जम्मू-कश्मीर के पंचायत और जिला परिषदों के चुनाव में एक भी गोली का नहीं चलना, शांतिपूर्ण मतदान होना। इससे यह भी जाहिर होता है कि जम्मू-कश्मीर की जनता आतंक नहीं, शांति का जीवन चाहती है।

इसे भी पढ़े….

Leave a Reply

error: Content is protected !!