क्या ओपेनहाइमर फ़िल्म की विषयवस्तु ज्ञान केन्द्रित है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

फिल्म ‘टेनेट’ में डिम्पल कपाड़िया ने प्रिया सिंह का किरदार निभाया था, जो कि एंटीलिया-जैसी गगनचुम्बी इमारत में रहने वाली एक आर्म्स-डीलर थीं। जब वे एक ऐसी वैज्ञानिक के बारे में बात करती हैं, जिन्होंने दुनिया को बदल देने में सक्षम एल्गोरिदम विकसित की थी तो वे इसमें यह भी जोड़ देती हैं कि उन्होंने इसके बाद आत्महत्या कर ली थी ताकि वे उस जैसी कोई और एल्गोरिदम नहीं बना सकें।

रॉबर्ट जे. ओपेनहाइमर की तरह उनका भी हृदय-परिवर्तन हो गया था। क्रिस्टोफर नोलन ने ‘ओपेनहाइमर’ पर बायोपिक तो अब जाकर बनाई है, लेकिन दुनिया तभी से उनके बारे में सुनती आ रही है। हॉलीवुड ने ओपेनहाइमर के हृदय-परिवर्तन को प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

भारत में यह फिल्म ‘बार्बी’ के साथ ही रिलीज हुई थी, लेकिन यह उससे बड़ी हिट साबित हुई है। अपनी रिलीज के दो हफ्तों के भीतर ही वह भारत में 100 करोड़ रुपए का कलेक्शन कर चुकी है, जबकि ‘बार्बी’ की कमाई इससे आधी भी नहीं रही है।

तो क्या कारण है कि विज्ञान के बारे में लम्बे-लम्बे संवादों और वार्तालापों से भरी एक फिल्म भारत में उस फिल्म से बेहतर प्रदर्शन कर रही है, जो कि पूरी तरह से गुलाबी रंग में रंगी है, नाच-गानों से भरी है और एक खूबसूरत डॉल की कहानी बयान करती है?

इसका जवाब नॉलेज के लिए भारतीयों के ऑब्सेशन में निहित है। यही तो कारण है कि साल 2000 से अब तक ‘कौन बनेगा करोड़पति’ के 15 सीज़न्स आ चुके हैं। हमारे देश में एजुकेशन को ऐसी प्रणाली माना जाता है, जो तमाम तरह की विषमताओं को पाटने में सक्षम है।

यह ऐसा देश है, जो बुद्धिमत्ता को महत्व देता है, अपने बेहतरीन वैज्ञानिकों और तकनीशियनों की मदद से विश्वगुरु बनना चाहता है और जिसे अपने स्पेस-कार्यक्रम और परमाणु परीक्षणों पर गर्व है। यह ऐसा देश भी है, जिसने ‘परमाणु : द स्टोरी ऑफ पोखरण’, ‘मिशन मंगल’ और ‘रॉकेटरी : द नाम्बी इफेक्ट’ जैसी हिट फिल्में दी हैं और जहां ओटीटी पर ‘रॉकेट बॉय्ज़’ देखने वाले कम नहीं हैं। ऐसे में क्या आश्चर्य कि ‘ओपेनहाइमर’ हमारे यहां अच्छा प्रदर्शन कर रही है?

‘रॉकेट बॉय्ज़’ के निर्माता निखिल आडवाणी कहते हैं, ‘हमने साइंस को कूल बनाने में योगदान दिया है, लेकिन बैटमैन-त्रयी के माध्यम से क्रिस्टोफर नोलन ने भारत में जैसा प्रशंसक-वर्ग बनाया है, उसकी तो तुलना ही नहीं की जा सकती।’ जेएनयू में कला संकाय के सह-प्राध्यापक कौशिक भौमिक कहते हैं, ‘भारत के युवा-वर्ग में नोलन की कल्ट-फॉलोइंग है।

फिर उनकी इस फिल्म का विषय भी कुछ ऐसा है, जिसके बारे में ‘जीके’ में रुचि रखने वाले जानना चाहेंगे। इस फिल्म का ऑनलाइन प्रचार भी कम नहीं हुआ है।’ यह सच है कि हॉलीवुड की फिल्में अब अपना आधे से अधिक राजस्व अमेरिका के बाहर से कमा रही हैं, लेकिन ‘ओपेनहाइमर’ की विषयवस्तु के चलते जापान इस बार उसकी सूची से बाहर हो गया है।

दरअसल, यह फिल्म जापान में अभी तक रिलीज नहीं हुई है। क्योंकि वैज्ञानिक ओपेनहाइमर के मैनहट्टन प्रोजेक्ट का कहर एटम बम के रूप में जापान पर ही बरपा था। ऐसे में भारत अमेरिका और यूके के बाद इस फिल्म का तीसरा सबसे बड़ा बाजार बन गया है।

वैसे भी, हाल के दिनों में भारत में हॉलीवुड फिल्मों के प्रति रुचि बढ़ी है। अमेरिका की ट्रेड मैगजीन ‘वैरायटी’ के मुताबिक भारत में प्रदर्शित सर्वकालिक सफल फिल्मों की सूची में हॉलीवुड की ‘अवतार : द वे ऑफ वॉटर’ आठवें क्रम पर है। ‘एवेंजर : एंडगेम’ 11वें नम्बर पर है। कोविड से पहले भारत के बॉक्स-ऑफिस कलेक्शन में हॉलीवुड का योगदान 15 प्रतिशत हुआ करता था, जो 2021 तक 11 प्रतिशत हो गया।

निखिल आडवाणी कहते हैं, ‘क्रिस्टोफर नोलन, डेविड फिंचर, वेस एंडरसन, गाय रिची जैसे फिल्मकार भारतीयों को सबसे ज्यादा पसंद हैं, क्योंकि उनकी फिल्मों के विषय और उनकी तकनीकी साहसी और नयापन लिए हुए होती है।’ नोलन ने जो बैटमैन के लिए किया है, वही सैम मेंडेस इससे पूर्व जेम्स बॉन्ड के साथ कर चुके थे।

वर्षों तक जेम्स बॉन्ड फ्रेंचाइजी भारत में सबसे सफल हॉलीवुड फिल्में हुआ करती थीं। ‘ओपेनहाइमर’ के साथ भगवद्गीता से सम्बंधित एक दृश्य को लेकर विवाद भी जुड़ा, लेकिन उससे फिल्म को और पब्लिसिटी ही मिली। वैज्ञानिक ओपेनहाइमर गीता के बड़े प्रशंसक थे, वहीं नोलन भारतीयों की वैज्ञानिक-मेधा की सराहना करते हैं। वे इसे ‘इंटरस्टेलर’ में दिखा भी चुके हैं। ‘ओपेनहाइमर’ जैसे बिग स्क्रीन इवेंट्स सिनेमा के लिए हमेशा अच्छी खबर साबित होते हैं।

क्या कारण है कि विज्ञान के बारे में लम्बे-लम्बे संवादों और वार्तालापों से भरी एक फिल्म भारत में उस फिल्म से बेहतर प्रदर्शन कर रही है, जो गुलाबी रंग में रंगी है, नाच-गानों से भरी है और एक खूबसूरत डॉल की कहानी बयां करती है?

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