क्या देश में नगरीय निकायों की वित्तीय सेहत संकट में है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
एकीकृत दिल्ली नगर निगम के तहत एक हजार प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत तकरीबन 18 हजार शिक्षकों को बीते 2-4 महीनों से वेतन नहीं मिला है। जनवरी 2023 की शुरुआत में वेतन-पेंशन बकाया 907 करोड़ तक पहुंचने से अन्य निगम कर्मचारियों के वेतन के साथ सेवानिवृत्त शिक्षकों की पेंशन में देरी हो रही है।
नगर निगम के कर्मचारियों को भुगतान करने और शहर को गतिमान रखने के लिए हर महीने निगम को 774 करोड़ रुपए की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस कारण बुनियादी ढांचे के विकास के आवंटन पर भी असर पड़ा है।
इस दौरान नगर पालिका के कर्मचारियों से उम्मीद की जाती रही कि वे रोजाना अपनी नौकरी पर जाएं और बगैर धन के स्वच्छता अभियान में जुटें। दिलचस्प है कि नियमित रूप से धन की कमी को दूर करने के लिए ही दिल्ली के तीन नगर निगमों का एकीकरण किया गया था।
इस बीच, बेंगलुरु में महानगरपालिका आंतरिक राजस्व बढ़ाने के लिए संघर्ष कर रही है। अनुमान है कि 2016-17 से 70 हजार नागरिकों ने सम्पत्ति करों का भुगतान नहीं किया है। इस कारण महानगरपालिका ने पिछले पांच वर्षों में 240 करोड़ रुपए का घाटा उठाया है।
नतीजतन वह इस स्थिति में आ गया है कि वह वित्त वर्ष 22-23 में 3,680 रुपए के राजस्व लक्ष्य के मुकाबले 2,400 करोड़ ही जुटा सकता है। यह शहर घटते राजस्व के दुष्चक्र में फंस गया है। यह कोई अपवाद नहीं है। 2018 में चंडीगढ़ में 171 करोड़ रुपए की कमाई के बरक्स 492 करोड़ की देनदारी का तथ्य सामने आया।
नतीजतन, राजस्व सुधारों की प्रक्रिया शुरू होने तक केंद्र शासित प्रदेश में विकास कार्य तकरीबन थम-सा गया। वहां नगर निगम के पास 1,725 करोड़ का बजट है, जबकि अनुमानित राजस्व 616 करोड़ है। अधिकतर नगर पालिकाओं की यही अधोगति है।
भारत में नगर निगमों-पालिकाओं की वित्तीय सेहत संकट में है। जीएसटी लागू होने के बाद से राजस्व हानि लगातार बढ़ रही है। आरबीआई के अनुसार, वित्त वर्ष 2021 में 141 नगर निगमों ने राजस्व में तेज गिरावट या 75 फीसद से अधिक के व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी, जबकि राजस्व में उन्हें 25 फीसद से अधिक की कमी का सामना करना पड़ा।
इस सबके कारण आवश्यक सेवाओं में कटौती हुई। मसलन ज्यादातर मामलों में सीवेज सेवाएं 55-71 फीसद तक प्रभावित हुईं। इस दौरान सम्पत्ति कर में 11 और नगरपालिका शुल्कों में 50 फीसद की अनुमानित राजस्व वृद्धि में गिरावट आई। ऐसे में नगरपालिका राजस्व बढ़ाने की एक बड़ी चुनौती सामने आई है।
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ह्यूमन सेटलमेंट के हाल के एक अध्ययन ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि शहरी स्थानीय निकायों का अपना राजस्व उनके कुल राजस्व का 47 फीसद था। इसके अलावा अधिकतर निकायों को केंद्र और राज्य सरकारों से धन हस्तांतरण पर निर्भर रहना पड़ा। यह हस्तांतरण वित्त वर्ष 2013 और 2017 के बीच कुल राजस्व का 40 फीसद था।
आज जो स्थिति है उसमें शहरी वित्तपोषण की चुनौती बड़ी है। विश्व बैंक के अनुसार, अगले 15 वर्षों में शहरी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भारत को शहरी बुनियादी ढांचे में 840 अरब डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी। कोई भारतीय शहर शायद ही इसे अपने राजस्व के बूते पूरा कर सके।
इस अंतर को पाटने के लिए एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। सबसे पहले, ऐसे कई शहरी स्थानीय निकायों और नगर निगमों को राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करने की जरूरत है। मुख्य रूप से यह प्रोत्साहन राज्य और केंद्र दोनों ही से जरूरी है।
राज्य और केंद्र से बाहरी अनुदान का वितरण स्वाभाविक रूप से एक चिंता का विषय है। अतिरिक्त वित्तपोषण उपायों का पता लगाने की भी जरूरत है। डिफॉल्टरों पर कर लगाकर सम्पत्ति कर संग्रह को बढ़ाया जा सकता है।
शहरों को बुनियादी ढांचे के विकास के लिए राजस्व जुटाने के अवसरों के साथ बराबरी पर रखने की जरूरत है। स्मार्ट शहरों की दिशा में बढ़ने के लिए शहरी वित्तपोषण पर पुनर्विचार मौजूदा समय की एक बड़ी दरकार है।
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