क्या टमाटर की कीमत में वृद्धि कृत्रिम है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय परिवारों की मुख्य सब्जी टमाटर अपनी कीमतों में आश्चर्यजनक वृद्धि के कारण चिंता का कारण बन गया है।
- जून 2022 में टमाटर की कीमतें 20 से 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक अचानक बढ़ गई थी तथा जुलाई 2023 में 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुँच गई जिससे कीमत में उतार-चढ़ाव के पीछे के कारणों पर अनेक प्रश्न उत्पन्न हो गए हैं।
- कीमतों में वृद्धि के बावजूद टमाटर की मुद्रास्फीति दर आश्चर्यजनक रूप से नकारात्मक है जिस कारण एक हैरान करने वाली आर्थिक घटना बन गई है जिसे #Tomato-nomics के नाम से जाना जाता है।
टमाटर की कीमत में वृद्धि:
- भारत में टमाटर का उत्पादन:
- टमाटर का उत्पादन क्षेत्रीय रूप से आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, ओडिशा और गुजरात जैसे राज्यों में केंद्रित है जो कुल उत्पादन का लगभग 50% है।
- भारत में प्रत्येक वर्ष टमाटर की दो मुख्य फसलें होती हैं- खरीफ और रबी।
- खरीफ की फसल सितंबर से उपलब्ध होती है, जबकि रबी की फसल मार्च और अगस्त के बीच बाज़ार में आती है।
- जुलाई-अगस्त टमाटर के लिये कम उत्पादन अवधि है क्योंकि इसकी पैदावार इसी बीच होती है।
- खरीफ की फसल सितंबर से उपलब्ध होती है, जबकि रबी की फसल मार्च और अगस्त के बीच बाज़ार में आती है।
- सबसे अधिक खेती की जाने वाली सब्जियों में से एक होने के बावजूद टमाटर का उत्पादन वर्ष 2019-20 में अपने चरम यानी 21.187 मिलियन टन (MT) के बाद से कम हो रहा है।
- टमाटर की अधिक कीमत के पीछे कारण:
- विषम मौसम:
- अप्रैल व मई में हीट वेव और मानसून में देरी के कारण टमाटर की फसल पर कीटों का हमला होता है, जिससे गुणवत्ता तथा व्यावसायिक बिक्री प्रभावित होती है।
- परिणामस्वरूप जून तक के महीनों में किसानों को उनकी उपज के लिये कम कीमतें मिलती हैं।
- अप्रैल व मई में हीट वेव और मानसून में देरी के कारण टमाटर की फसल पर कीटों का हमला होता है, जिससे गुणवत्ता तथा व्यावसायिक बिक्री प्रभावित होती है।
- CMV और ToMV वायरस:
- टमाटर की फसल में हालिया गिरावट और महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में टमाटर की कीमतों में वृद्धि को पौधों के दो वायरस के संक्रमण के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है: टमाटर मोज़ेक वायरस (ToMV) और ककड़ी मोज़ेक वायरस (CMV)।
- इन वायरस के कारण पिछले तीन वर्षों में टमाटर के बागानों में आंशिक से लेकर पूरी फसल का नुकसान हुआ है।
- चूँकि दोनों वायरस में व्यापक मेज़बान सीमा होती है और अगर समय पर समाधान नहीं किया गया तो लगभग 100% फसल का नुकसान हो सकता है, उन्होंने टमाटर की पैदावार को काफी प्रभावित किया है, जिसके परिणामस्वरूप टमाटर की कीमतों में वृद्धि हुई है।
- टमाटर की फसल में हालिया गिरावट और महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में टमाटर की कीमतों में वृद्धि को पौधों के दो वायरस के संक्रमण के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है: टमाटर मोज़ेक वायरस (ToMV) और ककड़ी मोज़ेक वायरस (CMV)।
- कम वाणिज्य प्राप्ति:
- मूल्य वृद्धि से पहले के महीनों में किसानों को अपनी टमाटर की फसलों से कम आय होना उनके लिये एक प्रकार की चुनौती रही।
- दिसंबर 2022 और अप्रैल 2023 के बीच कई किसानों को उनकी उपज के लिये 6 रुपए से 11 रुपए प्रति किलोग्राम तक की कम कीमत मिली।
- इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई जहाँ किसानों को अपनी फसलें अलाभकारी दरों पर बेचनी पड़ी या यहाँ तक कि अपनी उपज को छोड़ना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति में कमी आई।
- किसानों द्वारा टमाटर का कम उत्पादन:
- पिछले वर्ष किसानों को टमाटर उत्पादन पर प्राप्त हुई कम कीमतों का खेती के पैटर्न पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
- इस कारण टमाटर की आपूर्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले कई किसानों ने अपना ध्यान अन्य फसलों की खेती पर केंद्रित कर दिया, इन अन्य फसलों से उन्हें बाज़ार में ऊँची कीमतें मिलीं, जिससे किसान वैकल्पिक फसलों को चुनने के लिये प्रेरित हुए।
- खेती में इस बदलाव के परिणामस्वरूप टमाटर का उत्पादन कम हो गया, जिससे आपूर्ति संकट और बढ़ गया तथा कीमतों में वृद्धि हुई।
- आपूर्ति की कमी:
- निम्न गुणवत्ता वाले टमाटरों के कारण कई किसानों को उन्हें कम कीमतों पर बेचने अथवा अपनी फसल छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप टमाटर की आपूर्ति में कमी आई।
- लगातार बारिश की वजह से नई फसलों और गैर-उत्पादन वाले क्षेत्रों में इसके परिवहन पर प्रभाव पड़ा।
- उत्पादन में क्षेत्रीय गिरावट:
- तमिलनाडु, गुजरात और छत्तीसगढ़ में टमाटर के उत्पादन में 20% की गिरावट देखी गई, इससे टमाटर की कमी की समस्या उत्पन्न हुई।
- विषम मौसम:
- टमाटर की ऊँची कीमतों का प्रभाव:
- मुद्रास्फीति का दबाव: टमाटर की कीमतों की अस्थिरता ने ऐतिहासिक रूप से देश में समग्र मुद्रास्फीति के स्तर में योगदान दिया है, जिससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति प्रभावित हुई है।
- CPI का प्रभाव: टमाटर की कीमत में उतार-चढ़ाव से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर अधिक प्रभाव पड़ता है, जिससे नीति निर्माताओं के लिये मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना एक चुनौती बन जाता है।
- आर्थिक संकट: ऊँची कीमतें परिवारों के बजट पर दबाव डालती हैं, खासकर कम आय वाले परिवारों के लिये जो आहार के रूप में टमाटर पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- टमाटर की कीमतें कम करने के संभावित उपाय:
- मूल्य एवं आपूर्ति शृंखला में सुधार करना: खराब होने और परिवहन संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये मूल्य एवं आपूर्ति शृंखला में सुधार करना।
- प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाना: मौसम की अवधि के दौरान पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये टमाटरों को पेस्ट और प्यूरी में परिवर्तित करना।
- प्रत्यक्ष बिक्री को प्रोत्साहित करना: किसानों को उपभोक्ता कीमतों का बड़ा हिस्सा प्रदान करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों द्वारा प्रत्यक्ष बिक्री को बढ़ावा देना।
- पॉली हाउस तथा ग्रीनहाउस में खेती को बढ़ावा देना: कीटों के हमलों को नियंत्रित करने के साथ पैदावार बढ़ाने के लिये नियंत्रित वातावरण में खेती को प्रोत्साहित करना।
टमाटर की नकारात्मक मुद्रास्फीति दर:
- उच्च आधार प्रभाव:
- नकारात्मक मुद्रास्फीति दर उच्च आधार प्रभाव का परिणाम है। उस समय बढ़ती कीमतों के कारण जून 2022 में टमाटर का सूचकांक मूल्य काफी अधिक था।
- जून 2023 में कीमतों में बढ़ोतरी के बाद भी सूचकांक मूल्य पिछले वर्ष की तुलना में बहुत कम था, जिससे नकारात्मक मुद्रास्फीति हुई।
- गणना विधि:
- भारत में मुद्रास्फीति दर की गणना प्रत्येक वर्ष के आधार पर की जाती है, जिसमें किसी विशिष्ट माह के सूचकांक मूल्य की तुलना पिछले वर्ष के उसी माह से की जाती है।
- जून 2023 (191) का सूचकांक मूल्य जून 2022 (293) के सूचकांक मूल्य से काफी कम है, जो 35% की कमी दर्शाता है।
- टमाटर की कीमतों में हालिया वृद्धि के बावजूद जून 2022 से जून 2023 तक सूचकांक मूल्य में गिरावट के कारण नकारात्मक मुद्रास्फीति हुई।
- अस्थायी मूल्य वृद्धि:
- कुछ ही समय में टमाटर की कीमतों में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई और जून 2023 में टमाटर की कीमतें 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुँच गईं।
- हालाँकि यह वृद्धि स्थिर नहीं रही और बाद में कीमतों में गिरावट शुरू हो गई, जिसने नकारात्मक मुद्रास्फीति दर में योगदान दिया।
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