क्या मीडिया की घेराबंदी की जा रही है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मीडिया में अनेक संचार माध्यमों को शामिल किया गया हैं, जैसे- टेलीविज़न, रेडियो, सिनेमा, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं और इंटरनेट आधारित वेबसाइट। हाल ही में एन.डी.टी.वी. के चेयरमैन पर सी.बी.आई. ने वित्तीय अनियमितताओं के चलते छापेमारी की। अत: इसी छापेमारी के कारण मीडिया जगत में यह बहस छिड़ी हुई है कि सरकार द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता को कम किया जा रहा है।
वाद
- कई पत्रकारों का मानना है कि यह सिर्फ मीडिया ही नहीं है, जो घेराबंदी की शिकार हुई है, बल्कि “भारत का आइडिया” (Idea of India) को ही दबाया जा रहा है।
- ऐसा लग रहा है कि मीडिया पर घेराबंदी एन.डी.टी.वी. के प्रमोटरों पर छापे से शुरू हो गई है।
- तुर्की की महिला उपन्यासकार एलीफ सफैक ने भारत के बारे में कहा था कि देश एक अस्तित्वगत संकट से गुजर रहा है। डर, क्रोध, चिंता सामान्य हो गए हैं। कोई भी किसी पर भरोसा नहीं करता है। कोई भी सुरक्षित नहीं लगता है। लोगों सहित पत्रकारों द्वारा सरकार को अपनी वफादारी साबित करने की कोशिश की जा रही है।
- देश में जो कुछ हो रहा है यह संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, तुर्की, यहाँ तक कि फ्रांस में हो रहे राष्ट्रवादी दंगों के समान है।
- अगर देश में मीडिया स्वतंत्र है तथा उस पर कोई पाबंदी नहीं है तो विश्व प्रेस फ्रीडम सूचकांक में भारत की रैंकिग क्यों घट रही है, जो हाल ही में 133वें स्थान से घटकर 136वें स्थान पर आ गई है।
प्रतिवाद
- जिस प्रकार कुछ लोगों द्वारा जनता के बड़े समूह में यह फैलाया जा रहा था कि इस्लाम खतरे में है, उसी प्रकार भारतीय मीडिया के कुछ हिस्से द्वारा पिछले कुछ महीनों से इसी प्रकार का प्रचार किया जा रहा है कि भारतीय मीडिया की स्वतंत्रता को कुछ कम किया जा रहा है।
- दरअसल केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एन.डी.ए. सरकार बनने के बाद से ही पत्रकारों के तथाकथित वाम-उदारवादी (left-liberal) वर्ग द्वारा उन्मादपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन करते हुए यह कहा जा रहा था कि भारतीय मीडिया की घेराबंदी शुरू हो गई है।
- इस तरह का विचार मूल रूप से मोदी के खिलाफ वाम-उदारवादी की नापसंदगी के कारण व्यक्त किया गया है। अत: यह विचार कि मीडिया की घेराबंदी की जा रही है, केवल एक भ्रामक और वैचारिक पूर्वाग्रहों का परिणाम है।
- मीडिया की घेराबंदी के आरोप को साबित करने के लिये कोई सबूत विद्यमान नहीं है, स्वतंत्र भारत में ऐसा केवल आपातकाल के दौरान हुआ था।
- वस्तुत: 2002 में मोदी के खिलाफ वाम-उदारवादी मीडिया द्वारा जो अभियान चलाया गया था उसकी सोच आज भी भाजपा सरकार के प्रति वैसी ही बनी हुई है। देखा जाए तो वर्तमान सरकार, खासकर प्रधानमंत्री की आएदिन प्रिट मीडिया या सोशल मीडिया पर आलोचना होती रहती है।
- मुसलमानों पर हमले की रिपोर्ट (खासतौर पर बीफ़ मांस खाने या बेचने से संबंधित) देश में सांप्रदायिकता को उत्तेजित करती है और सरकार को अस्थिर भी बनाती है।
- उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अभियान के दौरान वाम-उदारवादी मीडिया ने एक अभियान चलाया था और कहा था कि भाजपा का वोट बैंक 2014 के लोक सभा चुनावों के बाद घट गया है। क्या सरकार ने इस तरह कि रिपोर्टिंग पर कोई ठोस प्रतिक्रिया व्यक्त की?
- क्या किसी भी पत्रकार को सरकार विरोधी विचारों का प्रचार करने के लिये परेशान किया गया है? क्या किसी को गिरफ्तार किया गया है या पुलिस द्वारा कोई पूछताछ की गई है? यदि ऐसा नहीं है तो यह कहने का क्या आधार है कि मीडिया की घेराबंदी की जा रही है?
- एन.डी.टी.वी. के प्रमोटरों पर हालिया छापे के कारण मीडिया यह कह रहा है कि मीडिया की घेराबंदी की जा रही है, लेकिन यह छापा महज़ वित्तीय अनियमितताओं के कारण डाला गया था न की मीडिया की स्वतंत्रता को कम करने के लिये।
संवाद
- एन.डी.टी.वी. पर सी.बी.आई. की छापेमारी को टिप्पणीकार प्रेस की स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व का हनन नहीं मानते हैं, लेकिन अगर सरकार की नीतियों और राजनीति पर सवाल उठाए जाने के कारण लोकतांत्रिक संस्थानों और लोगों के खिलाफ सेलेक्टिव तरीके से हमला किया जाता है तो इस प्रकार की कार्यवाही गलत है।
- लेकिन क्या एन.डी.टी.वी. के पास ठोस सबूत मौजूद है कि मीडिया की घेराबंदी की जा रही है? इस प्रकार की निर्णायक भविष्यवाणी करना शायद गलत होगा।
- हाल ही में रोहित वेमूला और कश्मीर पर बनी फिल्मों की स्क्रीनिंग को अस्वीकार करने जैसे मामलों ने एन.डी.टी.वी. की छापेमारी जैसी सुर्खियाँ नहीं बटोरी हैं। क्या मीडिया के प्रति इस प्रकार का एकमात्र विचार रखना संभव है? यह निश्चित रूप से एक वैध आलोचना है। फिर भी एन.डी.टी.वी. एक शक्तिशाली और प्रभावशाली खिलाड़ी होने के नाते सामान्य पत्रकार,लेखक, फिल्म निर्माताओं और ब्लॉग लिखने वालों के लिये चिंता का एक कारण होना चाहिये।
- अगर सरकार अभिजात वर्ग के खिलाफ कार्यवाही करने से दूर भागेगी तो जो कम शक्तिशाली हैं, उनका क्या?
- यह भी अनुमान लगाया जाता है कि ज़्यादा मीडिया की घेराबंदी, मीडिया को सक्रिय रूप से राज्य का सहयोगी बनाने में मदद करती है।
- अत: यह मीडिया की घेराबंदी नहीं है, बल्कि यह मीडिया के राजनीतिक और नैतिक विचारों की रक्षा है।
निष्कर्ष
मीडिया ने एक-तरफ जहाँ लोगों को जागरूक बनाया है, वहीं दूसरी तरफ सरकार को देश की समस्याओं से अवगत भी कराया है। ध्यातव्य है कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माने जाने के कारण उससे यह अपेक्षा की जाती है की वह देशहित में अपना सकारात्मक योगदान दे। बदलते समय में मीडिया की भूमिका भी बदल रही है तथा उसके रिपोर्टिंग करने का तरीका भी। अत: मीडिया को अपने स्वार्थपूर्ति से परिचालन के बजाए एक तटस्थ वाचडॉग की भूमिका निभानी चाहिये।
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