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क्या राज्यसभा में विशिष्ट लोगों का मनोनयन सदन के बौद्धिक स्तर को बढ़ाना है? - श्रीनारद मीडिया

क्या राज्यसभा में विशिष्ट लोगों का मनोनयन सदन के बौद्धिक स्तर को बढ़ाना है?

क्या राज्यसभा में विशिष्ट लोगों का मनोनयन सदन के बौद्धिक स्तर को बढ़ाना है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

राज्यसभा में विशिष्ट लोगों को मनोनीत करने का उद्देश्य सदन के बौद्धिक स्तर को बढ़ाना था. अब मनोनयन के माध्यम से विचारधारात्मक संदेश दिया जाता है तथा इसमें ग्लैमर, जाति और दलगत संबद्धता के भी आयाम होते हैं. बीते सात दशकों में मनोनीत सांसदों की भूमिका एवं गुणवत्ता में भारी बदलाव आया है. वे या तो अनुपस्थित रहते हैं या बहस से परे रह कर पीछे बैठे होते हैं. कुछ दिन पहले राष्ट्रपति ने निजी संस्थान चंडीगढ़ विश्वविद्यालय के संस्थापक सतनाम सिंह को शिक्षा में उनके योगदान को रेखांकित करते हुए राज्यसभा के लिए मनोनीत किया.

साधारण पृष्ठभूमि से आने वाले सिंह बेहद सफल उद्यमी साबित हुए हैं. उनका चयन गरीब या सामान्य सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले अनजान लोगों को चुनने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मॉडल को प्रतिबिंबित करता है. कांग्रेस के दौर में मनोनीत सांसद उसके वैचारिक सहयोगी हुआ करते थे. अब जो लोग मनोनीत हो रहे हैं, वे राजनीतिक रूप से तटस्थ हैं और दिखाई नहीं देते. वर्ष 1952 में राज्यसभा की स्थापना के बाद से लगभग 145 लोग मनोनीत हुए हैं, इनमें से कुछ का चयन एक बार से अधिक हुआ है. इनमें सबसे अधिक संख्या (24) मनोरंजन जगत से आने वालों की है.

जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी ने 65, राजीव गांधी ने 12 तथा मनमोहन सिंह ने 19 लोगों को मनोनीत किया था. सभी 14 प्रधानमंत्रियों के लिए केवल मेधा ही मानक नहीं रही है, लेकिन मनोनयन प्रक्रिया का प्रारंभ कृपादृष्टि के सर्कस के रूप में नहीं हुआ था. नेहरू ने विभिन्न क्षेत्रों के सबसे उत्कृष्ट लोगों को मनोनीत किया था. पहले 12 सदस्यों में जाकिर हुसैन (शिक्षाविद), अल्लादी कृष्णास्वामी (कानून विशेषज्ञ), सत्येंद्र नाथ बोस (वैज्ञानिक), रुक्मिणी देवी अरुंडेल (कलाकार), काकासाहेब कालेलकर (विद्वान), मैथिलीशरण गुप्त (कवि) एवं पृथ्वीराज कपूर (कलाकार) शामिल थे.

भारतीय सिनेमा के बहुत बड़े नाम पृथ्वीराज कपूर ने अपने पहले भाषण में कहा था, ‘हम भले आकाश में उड़ते हों, पर धरती से हमारा जुड़ाव कभी नहीं टूटना चाहिए, पर यदि हम बहुत अर्थशास्त्र और राजनीति पढ़ने लगते हैं, तब हमारा यह जुड़ाव गायब होने लगता है, हमारी आत्मा सूखने लगती है. आत्मा के इस सूखने से हमारे नेताओं को बचाना होगा. इसी उद्देश्य के लिए मनोनीत सदस्य- शिक्षाविद, वैज्ञानिक, कवि, लेखक और कलाकार- यहां हैं.’

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