क्या 2024 में ओबीसी कार्ड की मुख्य भूमिका रहने वाली है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जिस तरह से कुछ विपक्षी दलों ने आक्रामकतापूर्वक ओबीसी जनगणना की मांग की है और जिस तरह से प्रधानमंत्री ने ओबीसी के वंचित तबकों की समस्याओं के निराकरण की कोशिशें की हैं, उससे सम्भावना निर्मित होती है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदाताओं के एकत्रीकरण के लिए ओबीसी कार्ड महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

ओबीसी मतदाताओं में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है, इसके बावजूद वह अभी तक अनेक क्षेत्रीय पार्टियों का कोर वोटर बेस बना हुआ है। भाजपा-विरोधी क्षेत्रीय पार्टियां ओबीसी वोटरों में अपने समर्थन को बढ़ाने की कोशिश करेंगी, साथ ही भाजपा भी इस वोटबैंक में अपनी पैठ को गहरा बनाना चाहेगी।

इनमें भी भाजपा की विशेष नजर अन्य पिछड़ा वर्ग की ऊंची जातियों के बजाय निचली जातियों पर रहेगी। यहां यह याद रखा जाना चाहिए कि ओबीसी में अनेक निचली जातियां ऐसी हैं, जिनकी संख्या ओबीसी की अनेक अन्य जातियों की कुल संख्या से बड़ी है। यही कारण है कि भाजपा ने उस वर्ग पर ध्यान केंद्रित कर रखा है, क्योंकि ऊंची ओबीसी जातियां यूं भी विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न क्षेत्रीय पार्टियों की समर्थक हैं।

लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वेक्षण से प्राप्त नतीजे भी बताते हैं कि भाजपा निचली ओबीसी जातियों पर अपनी पकड़ को अधिक मजबूत बनाती जा रही है। 1996 के लोकसभा चुनावों के दौरान 22 प्रतिशत ऊंची ओबीसी जातियों के वोट भाजपा को मिले थे, जबकि 17 प्रतिशत निचली ओबीसी जातियों ने ही उसे वोट दिया था।

लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान 30 प्रतिशत ऊंची ओबीसी जातियों ने भाजपा को वोट दिया और निचली ओबीसी जातियों के 43 प्रतिशत वोट उसे मिले। 2019 के चुनाव में भाजपा का इस वर्ग में आधार और बढ़ गया। उसे ऊंची ओबीसी जातियों के 40 प्रतिशत और निचली ओबीसी जातियों के 48 प्रतिशत वोट मिले।

भाजपा ने इस नैरेटिव का निर्माण करते हुए निचली ओबीसी जातियों को अपने पक्ष में ऊंची जातियों की तुलना में अधिक सफलतापूर्वक लामबंद किया है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सत्ता में उन्हें उनके अधिकार से वंचित रखा गया है और इस पर ऊंची ओबीसी जातियों का अधिक दबदबा रहा है।

साक्ष्य बताते हैं कि भाजपा को अपने इस नैरेटिव का लाभ मिला है और अब भाजपा के सामने 2024 के चुनावों से पहले यह चुनौती है कि अगर वह निचली ओबीसी जातियों का और समर्थन नहीं हासिल कर पाती है तो कम से कम उनके मौजूदा समर्थन को अपने पाले में बनाए रखे।

प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में निचली ओबीसी जातियों के समर्थन में अनेक घोषणाएं की थीं। उन्होंने कहा, विश्वकर्मा जयंती पर हम परम्परागत कार्यों में लगे लोगों के लिए 13 से 15 हजार करोड़ रुपए के आरम्भिक फंड के साथ एक योजना शुरू करेंगे।

यह योजना मुख्यतया हाथों और उपकरणों से काम करने वाले कामगारों, कारीगरों आदि पर केंद्रित रहेगी। ये मुख्यतया ओबीसी तबके के लोग होते हैं। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा योजना से नाई, बढ़ई, चर्मकार, लोहार आदि लाभान्वित होंगे। इस योजना को बजट में प्रस्तुत किया गया था और इससे परम्परागत शिल्पकार, कारीगर, बुनकरों आदि को लाभ मिलेगा।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ये सब अधिकतर राज्यों में निचली ओबीसी जातियों से सम्बद्ध हैं। यह कदम विभिन्न राज्य सरकारों के द्वारा ओबीसी कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को भी चुनौती दे सकता है, जैसे कि बिहार की जातिगत जनगणना, सपा के द्वारा पार्टी में ओबीसी को अधिक प्रतिनिधित्व देना और राजस्थान द्वारा ओबीसी आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करना आदि।

भाजपा ओबीसी वर्ग के नेताओं को भी आगे बढ़ा रही है। सामाजिक न्याय पर प्रधानमंत्री का जोर 2024 के चुनाव प्रचार से पहले भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के मूल में है। पिछले साल प्रधानमंत्री ने आईटीआई स्टूडेंट्स के साथ विश्वकर्मा जयंती मनाई थी। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस ने ऊंची और निचली दोनों ही प्रकार की ओबीसी जातियों में अपना समर्थन गंवाया है।

1996 में कांग्रेस को ऊंची ओबीसी जातियों के 24% और निचली ओबीसी जातियों के 27% वोट मिले थे, जो 2019 में घटकर क्रमश: 13% और 15% रह गए। क्षेत्रीय पार्टियों को भी इस वोटबैंक की क्षति हुई है। 1996 में दोनों वर्गों के क्रमश: 40% और 43% वोट के बाद 2019 में वे 33% और 20% वोटों तक ही सिमटकर रह गए। इसका कारण भाजपा का इस वर्ग में सेंध लगाना है। अब अनेक क्षेत्रीय पार्टियां जातिगत जनगणना की बात करके संदेश दे रही हैं कि वे ही ओबीसी की वास्तविक हितैषी हैं।

ओबीसी में अनेक निचली जातियां ऐसी हैं, जिनकी संख्या ओबीसी की अनेक अन्य जातियों की कुल संख्या से बड़ी है। भाजपा ने उस वर्ग पर ध्यान केंद्रित कर रखा है, क्योंकि ऊंची ओबीसी जातियां यूं भी क्षेत्रीय पार्टियों की समर्थक हैं।

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