क्या जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने के लिये परमाणु ऊर्जा अपनाने की ज़रूरत है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। इस दशक के अंत से पहले ही यह जर्मनी और जापान को पीछे छोड़कर विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है। चूँकि आर्थिक विकास ऊर्जा की मांग की वृद्धि करता है, इस परिदृश्य में फिर हमारी प्राथमिक ऊर्जा खपत में उल्लेखनीय वृद्धि की उम्मीद की जा सकती है जो पहले से ही वैश्विक स्तर पर तीसरी सबसे उच्च ऊर्जा खपत है। इसका अधिकांश भाग जीवाश्म ऊर्जा पर आधारित है।
विकसित देशों के समान मानव विकास सूचकांक (Human Development Index- HDI) प्राप्त करने के लिये भारत को प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कम से कम 2,400 किलोग्राम तेल समतुल्य (kilogram oil equivalent- kgoe) ऊर्जा खपत की आवश्यकता है, जो ऊर्जा उपयोग दक्षता में अपेक्षित सुधार के साथ लगभग 1,400 किलोग्राम तक बढ़ सकती है। हालाँकि, एक विकसित भारत का समर्थन करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकताएँ प्रति वर्ष लगभग 25,000-30,000 टेरावाट-घंटे (TWh/yr) होंगी, जो वर्तमान ऊर्जा खपत से चार गुना अधिक होगी। केवल नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के ही उपयोग से भारत एक उन्नत देश नहीं बन पाएगा।
परमाणु ऊर्जा क्या है?
- परमाणु ऊर्जा (Nuclear Energy) ऊर्जा का एक रूप है जो परमाणुओं के नाभिक या कोर से प्राप्त होती है।
- परमाणु ऊर्जा अपने उच्च ऊर्जा घनत्व के लिये जानी जाती है, जिसका अर्थ यह है कि परमाणु ईंधन की अपेक्षाकृत कम मात्रा बड़ी मात्रा में ऊर्जा का उत्पादन कर सकती है।
- परमाणु ऊर्जा के दोहन की दो प्राथमिक विधियाँ हैं:
- परमाणु विखंडन (Nuclear Fission): यह एक परमाणु के नाभिक को दो छोटे नाभिकों में विभाजित करने की प्रक्रिया है, जिस प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में ऊर्जा निकलती है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्र इस विधि का उपयोग करते हैं और इसके लिये मुख्य रूप से ईंधन के रूप में यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 का उपयोग करते हैं।
- जब इन भारी समस्थानिकों (isotopes) के नाभिक पर न्यूट्रॉन की बमबारी की जाती है तो यह अस्थिर हो जाता है और कुछ न्यूट्रॉन के साथ दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों में विभाजित हो जाता है।
- यह शृंखला प्रतिक्रिया (chain reaction) बड़ी मात्रा में ऊष्मा (heat) उत्पन्न कर सकती है, जिसका उपयोग भाप उत्पन्न करने और टरबाइन चलाने के लिये किया जाता है, जिससे फिर बिजली का उत्पादन किया जाता है।
- नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion): यह दो हल्के परमाणुओं के नाभिकों को मिलाकर एक भारी नाभिक बनाने की प्रक्रिया है।
- यही वह प्रक्रिया है जो सूर्य और अन्य तारों के लिये ऊर्जा का स्रोत है।
- यद्यपि इसमें स्वच्छ और वस्तुतः असीमित ऊर्जा की व्यापक संभावनाएँ निहित हैं, लेकिन पृथ्वी पर नियंत्रित परमाणु संलयन प्राप्त करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।
भारत में परमाणु ऊर्जा की स्थिति
- परमाणु ऊर्जा भारत में विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है, जो देश के कुल बिजली उत्पादन में लगभग 2% का योगदान देता है।
- भारत के पास वर्तमान में देश भर में 7 बिजली संयंत्रों में 22 से अधिक परमाणु रिएक्टर सक्रिय हैं, जो कुल मिलाकर 6,780 मेगावाट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
- इन रिएक्टरों में से 18 दाबित भारी जल रिएक्टर (Pressurized Heavy Water Reactors- PHWRs) और 4 हल्के जल रिएक्टर (Light Water Reactors- LWRs) हैं।
- जनवरी 2021 में काकरापार परमाणु ऊर्जा परियोजना (KAPP-3) को ग्रिड से जोड़ दिया गया जो भारत की पहली 700 MWe की इकाई है और PHWR का सबसे बड़ा स्वदेशी रूप से विकसित संस्करण है।
- भारत सरकार ने भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिये न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के बीच संयुक्त उद्यम की अनुमति प्रदान की है।
- NPCIL नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (NTPC) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (IOCL) के साथ संयुक्त उद्यम क्रियान्वित कर रहा है।
- सरकार देश के अन्य हिस्सों में भी परमाणु प्रतिष्ठानों के विस्तार को बढ़ावा दे रही है। उदाहरण के लिये, निकट भविष्य में हरियाणा के गोरखपुर शहर में एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र का संचालन शुरू हो जाएगा।
- भारत एक पूरी तरह से स्वदेशी थोरियम-आधारित परमाणु संयंत्र ‘भवनी’ (Bhavni) पर भी कार्य कर रहा है, जो यूरेनियम-233 का उपयोग करने वाला अपनी तरह का पहला संयंत्र होगा। प्रायोगिक थोरियम संयंत्र ‘कामिनी’ पहले से ही कलपक्कम में मौजूद है।
भारत को परमाणु ऊर्जा की आवश्यकता क्यों है?
- जीवाश्म ईंधन के सीमित भंडार: भारत में जीवाश्म ईंधन के सीमित भंडार मौजूद हैं और परमाणु ऊर्जा कोयला, तेल एवं गैस आयात पर देश की निर्भरता को कम करने में मदद कर सकती है। यह ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने के लिये महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह वैश्विक जीवाश्म ईंधन बाज़ारों में आपूर्ति संबंधी व्यवधानों और मूल्य में उतार-चढ़ाव की संवेदनशीलता को भी कम करती है।
- उल्लेखनीय है कि भारत की समस्त बंजर भूमि को भी सौर संयंत्र स्थापित करने के लिये उपयोग कर लिया जाए तो भी यह लक्ष्य से पर्याप्त कम ऊर्जा प्रदान करेगा। पवन ऊर्जा की क्षमता तो और भी कम है।
- ‘BMI रिसर्च’ की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2032 तक भारत की बिजली की मांग 70% बढ़ जाएगी। पारंपरिक ऊर्जा स्रोत इस बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगे।
- स्वच्छ और कार्बन मुक्त ऊर्जा: परमाणु ऊर्जा को ऊर्जा का स्वच्छ और कार्बन मुक्त स्रोत माना जाता है। यह बिजली उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रत्यक्ष उत्पादन नहीं करती है , जिससे यह जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने और भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक व्यवहार्य विकल्प बन जाती है।
- सस्ता संचालन: रेडियोधर्मी ईंधन और निपटान के प्रबंधन की लागत के बावजूद, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को संचालित करना कोयला या गैस संयंत्रों की तुलना में सस्ता है। आकलन बताते हैं कि परमाणु संयंत्रों की लागत कोयला संयंत्र की तुलना में महज 33-50% और गैस संयुक्त-चक्र संयंत्र की तुलना में 20-25% होती है।
- विश्वसनीय और निरंतर ऊर्जा: परमाणु ऊर्जा विश्वसनीय और निरंतर बेस लोड ऊर्जा प्रदान कर सकती है। सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत (जो रुक-रुक कर प्राप्त होती हैं और मौसम की स्थिति पर निर्भर करती हैं) परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगातार कार्य कर सकते हैं, जो स्थिर एवं प्रत्यास्थी ऊर्जा आपूर्ति में योगदान कर सकते हैं।
- शुद्ध शून्य प्राप्त करना: विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा आईआईटी-बॉम्बे के विश्लेषणात्मक समर्थन से आयोजित एक अध्ययन में सुझाया गया है कि भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य (Net Zero) हासिल करने के लिये परमाणु ऊर्जा को कुछ हज़ार गीगावॉट तक बढ़ाने की ज़रूरत है।
- आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन: उच्च ऊर्जा मांगों की पूर्ति करना प्रायः आर्थिक विकास से जुड़ा होता है। भारत की उच्च प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत उच्च मानव विकास सूचकांक प्राप्त करने का
- थोरियम की उपलब्धता: भारत में प्रचुर मात्रा में थोरियम संसाधन मौजूद हैं, जिनका उपयोग परमाणु ईंधन के रूप में किया जा सकता है। थोरियम को यूरेनियम का अधिक सुरक्षित एवं कुशल विकल्प माना जाता है और भारत ने इसके उपयोग के लिये स्वदेशी तकनीक विकसित की है। यह भारत को भविष्य में परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिये एक अनुकूल स्थिति प्रदान करता है।
- भारत बिजली उत्पादन के उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा के दोहन की संभावना तलाशने के लिये सचेत रूप से आगे बढ़ा है। इस दिशा में 1950 के दशक में होमी भाभा द्वारा एक त्रि-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई थी।
भारत की परमाणु ऊर्जा के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियाँ
- पूंजी गहनता: परमाणु ऊर्जा संयंत्र पूंजी गहन हैं और हाल के परमाणु निर्माणों में बड़ी लागत का सामना करना पड़ा है।
- अपर्याप्त स्थापित परमाणु क्षमता: वर्ष 2008 में परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) ने आकलन किया था कि वर्ष 2050 तक भारत के पास 650GW स्थापित क्षमता होगी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान स्थापित क्षमता महज 6.78 गीगावॉट है।
- परमाणु दायित्व: भारत का ‘परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (Civil Liability for Nuclear Damage Act), 2010 विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के लिये एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, जो अपने नियंत्रण से परे के दुर्घटनाओं के लिये उत्तरदायी ठहराये जाने का भय रखते हैं।
- परमाणु सुरक्षा: रेडियोधर्मी सामग्री का निपटान तथा परमाणु दुर्घटनाओं का खतरा इसे और अधिक निषेधात्मक बनाता है। परमाणु ऊर्जा के जोखिम और लागत का भारी बोझ गरीबों को उठाना पड़ता है। रिएक्टरों के विरुद्ध स्थानीय समुदायों की ओर से हमेशा कड़ा प्रतिरोध प्रकट होता रहा है।
- परमाणु ईंधन चक्र: भारत अपने त्रि-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये एक बंद परमाणु ईंधन चक्र (closed nuclear fuel cycle) को अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानता है, जहाँ तीसरा चरण भारत में थोरियम संसाधनों में उपलब्ध विशाल ऊर्जा का दोहन करने का दीर्घकालिक उद्देश्य रखता है।
- हालाँकि इसके लिये उन्नत प्रौद्योगिकियों और विशेषज्ञता की आवश्यकता है जो आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: आयातित ऊर्जा संसाधनों पर भारत की निर्भरता और ऊर्जा क्षेत्र में असंगत सुधार बढ़ती मांग को पूरा करने की राह की प्रमुख चुनौतियाँ हैं। भारत को NSG की सदस्यता प्राप्त करने में भी कूटनीतिक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, जो उसे अधिक परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक पहुँच प्रदान कर सकती थी।
परमाणु ऊर्जा को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय रणनीति
- PHWR का विस्तार: स्वदेशी 700 मेगावाट क्षमता का PHWR (जिसकी पहली इकाई पहले से ही वाणिज्यिक संचालन में संलग्न है) बेस लोड विद्युत क्षमता को जोड़ने के लिये प्राथमिक स्रोत होना चाहिये।
- वर्तमान में फ्लीट मोड में पंद्रह और इकाइयाँ निर्माणाधीन हैं।
- NPCIL के अलावा विभिन्न सार्वजनिक उपक्रमों की भागीदारी के साथ कई फ्लीट लागू करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- SMRs और कोयला संयंत्र प्रतिस्थापन: आने वाले दशकों में सेवा समाप्त करने वाले कोयला संयत्रों के रिक्त होते स्थानों पर स्वदेशी लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (Small Modular Reactors- SMRs) का निर्माण किया जाना चाहिये।
- इन इकाइयों के आयात से बिजली उत्पादन अवहनीय हो जाएगा।
- NTPC, जो देश में सबसे अधिक संख्या में कोयला संयंत्रों का स्वामी है, इस प्रक्रिया में एक स्वाभाविक भागीदार होगा। इसमें अन्य औद्योगिक भागीदार भी शामिल हो सकते हैं।
- उद्योगों के लिये कैप्टिव इकाइयाँ: 220 मेगावाट क्षमता की PHWR इकाइयों को धातु, रसायन और उर्वरक जैसे ऊर्जा-गहन उद्योगों के लिये बिजली एवं हाइड्रोजन हेतु आंशिक स्वामित्व वाली कैप्टिव इकाइयों (Captive Units) के रूप में पेश किया जा सकता है। BARC द्वारा विकसित उन्नत भारी जल रिएक्टर (AHWR300-LEU) को भी प्रोटोटाइप प्रदर्शित करने के बाद इस भूमिका के लिये पेश किया जा सकता है।
- हाइड्रोजन उत्पादन के लिये उच्च तापमान रिएक्टर: इलेक्ट्रोलिसिस का सहारा लिये बिना प्रत्यक्ष रूप से हाइड्रोजन उत्पादन के लिये एक उच्च तापमान रिएक्टर का विकास किया जाना चाहिये। इससे हरित हाइड्रोजन (green hydrogen) का उत्पादन सस्ता होगा और देश में ऊर्जा प्रणाली के अत्यधिक विद्युतीकरण पर दबाव कम होगा, जो अन्यथा अपरिहार्य प्रतीत होता है।
- थोरियम ऊर्जा विकास: दीर्घकालिक सतत ऊर्जा आपूर्ति के लिये पहले से मौजूद योजनाओं के अनुरूप थोरियम ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने के लिये दूसरे और तीसरे चरण के परमाणु-ऊर्जा कार्यक्रम के विकास में तेज़ी लाई जाए।
- भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) के पास अपेक्षित क्षमता मौजूद है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत के PHWRs कार्य-निष्पादन और पूंजीगत लागत के मामले में विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी हैं, जो उन्हें इन आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकने के लिये उपयुक्त बनाता है। PHWRs में थोरियम-HALEU ईंधन (Thorium-HALEU fuel) का उपयोग अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, अपशिष्ट प्रबंधन एवं प्रसार प्रतिरोध के मामले में उनके आकर्षण को और बढ़ा सकता है।
- भारत को वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का संचालन करने के रूप में इस अवसर का पूरा लाभ उठाना चाहिये।
एक कारक है। परमाणु ऊर्जा क्षेत्र रोज़गार भी सृजित कर सकता है और नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, जिससे फिर आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
- थोरियम की उपलब्धता: भारत में प्रचुर मात्रा में थोरियम संसाधन मौजूद हैं, जिनका उपयोग परमाणु ईंधन के रूप में किया जा सकता है। थोरियम को यूरेनियम का अधिक सुरक्षित एवं कुशल विकल्प माना जाता है और भारत ने इसके उपयोग के लिये स्वदेशी तकनीक विकसित की है। यह भारत को भविष्य में परमाणु ऊर्जा विस्तार के लिये एक अनुकूल स्थिति प्रदान करता है।
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