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क्या पुराने योद्धाओं को सम्मान देने के साथ आत्म मंथन की आवश्यकता है?

क्या पुराने योद्धाओं को सम्मान देने के साथ आत्म मंथन की आवश्यकता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक दौर भाजपाई का
एक वक्त था जब सीवान में भाजपाई नेता और तटस्थ कार्यकर्ता हुआ करते थे।
आज भी है पर अब शायद वर्तमान भाजपा के चकाचौंध में लुप्त से दिखने लगे हैं। क्योंकी वे पार्टी के प्रति आस्थावान , शिष्टाचार, गरिमावान और ओजस्वी हुआ करते थे। जाती वाद और धर्मवाद से कोसों दूर। हा देश की एकता और अखंडता के प्रति जागरूक और सक्रिय समर्पित रहे।

कुछ ऐसे ही मेरे पुराने मित्र और श्रद्धेय भी रहे।
शोशल साइट हो या वर्तमान की धरातली हकीकत अब उनकी भूमिका यदा कदा ही धर्मस्य च वाली दिखती है। कुछ है जो प्रखर है पर वक्त आने पर उन्हें भी एक हासिए पर रख दिया जाता है।

हालांकि मैं कोई राजनीतिक आदमी नहीं ठहरा।पर
पुराने दौर के संघ तथा बैठकी के क्षणों को बहुत ही करीब से देखा सुना है।

कुछ ही समय बिता होगा पुराने भाजपाई नेता यूं कहें तो प्रखर वक्ता और योद्धा योगेन्द्र सिंह जी से मुलाकात हुई थी।कुशल क्षेम हुआ। उस दौर को याद करते हुए काफी भावुक थे।
आज भी जिले के दक्षिणा खंड के स्व तिवारी जी पूर्व (प्रखंड अध्यक्ष) के साथ की एक मुलाकात की याद भाजपा के प्रति समर्पण की कहानी वर्तमान के दौर वाले नेताओं और क्षणिक सुख वाले कार्यकर्ताओं को देख दुख होता है।

स्व राजदेव सिंह जी, स्व रामाकांत पाठक जी, ने जो सांसें फुक फुक कर भाजपा को सीवान में जिवंत किया। या दक्षिणी क्षोर के राजबली जी ,दुबे जी, नवीन सिंह परमार जी, विनोद सिंह जी। जैसे पुराने योद्धा जिवंत रखने के लिए प्रयासरत है। यूं कहें जहां थे आज भी वही है पर पार्टी के प्रति, ना की किसी व्यक्तित्व के प्रति। और यही होना भी चाहिए।

पर विगत कुछ वर्षों में जिस तरह पार्टी को विशेष रूप से भुनाने की कोशिश हो रही है।वह भविष्य के लिए सही नहीं।
धरातल की मजबूती ही महल को रौशन कर सकती है खम्भे दर खम्भे बदलने से नहीं। सभी वर्गों को साथ लेकर चलना ही होगा।
पुराने योद्धाओं को सम्मान देने के साथ आत्म मंथन की आवश्यकता है।

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