क्या मणिपुर में ध्रुवीकरण करने की चाल है?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
मणिपुर राज्य में हिंदू-ईसाई ध्रुवीकरण करने की चाल सिवाय कुछ नहीं है। दूसरा सवाल यह है कि वे अपने ही एक राज्य में शासन की विफलता की फांस कब तक लगाए रहेंगे? खासकर तब जब कि वे उत्तर-पूर्वी राज्यों में अपने उभार को अपनी महान सफलता बताने का दावा करते रहे हैं?
पहचान की राजनीति या साफ तौर पर कहें तो हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति ने भाजपा को असम और त्रिपुरा में लगातार दो बार सत्ता दिलाई है। दूसरे राज्यों को या तो कब्जे में लिया गया या कांग्रेस के पुराने लोगों की राजनीतिक खरीद-फरोख्त करके (अरुणाचल प्रदेश तथा मणिपुर की तरह) अपनी झोली में डाला गया, या बड़ी ताकत-छोटी ताकत के पुराने किस्म के गठबंधन करके (मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और सिक्किम की तरह) हासिल किया गया। छोटे, जनजातीय उत्तर-पूर्वी राज्यों में स्थानीय/क्षेत्रीय स्वायत्तता की मजबूत ललक होती है, लेकिन उनमें से हरेक राज्य इतना छोटा है कि वह केंद्र से छत्तीस का आंकड़ा नहीं रख सकता।
यह व्यवस्था अब तक अच्छी तरह काम कर रही थी और भाजपा उत्तर-पूर्व पर राज करने की अपनी ख्वाहिश और सपने को सच करने के मजे ले रही थी। उत्तर-पूर्व में भाजपा की राजनीतिक सफलता भारतीय राजनीति में एक उल्लेखनीय मोड़ थी, लेकिन इस सफलता पर मणिपुर में गहरा ग्रहण लग रहा है।
भाजपा ने उत्तर-पूर्व के पुराने संकट के लिए कांग्रेस के ‘स्वार्थ’ और ‘भ्रष्टाचार’ को जिम्मेदार तो बताया है मगर उसने दो बातों की अनदेखी की है। अगर कांग्रेस इतनी ही भ्रष्ट थी तो इस क्षेत्र में भाजपा का नया नेतृत्व कांग्रेस से उधार क्यों लिया गया है?
दूसरी बात, उसने तीसरे कारण, इस क्षेत्र की ‘जटिलता’ को बड़े आराम से भुला दिया। उत्तर-पूर्व में आपका जिस चीज से सामना होता है उसके कारण हिंदी पट्टी वाला जाना-पहचाना हिंदू-मुस्लिम या जातीय समीकरण का फॉर्मूला इस जनजातीय क्षेत्र में कारगर नहीं होता। इसकी मिसाल मणिपुर से ज्यादा और कोई राज्य नहीं है। इसलिए मणिपुर देश का वह राज्य है जिस पर शासन करना सबसे कठिन है।मणिपुर पर शासन करने की चुनौतियों को समझने के लिए हमें उसके इतिहास, भूगोल और आबादी के स्वरूप को समझने से शुरुआत करनी पड़ेगी। इस राज्य के संचालन में निहित गम्भीर जटिलताओं में ये सारे तत्व शामिल हैं।
क्या मामला है?
मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद मणिपुर में भड़की हिंसा में 75 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद गत रविवार की हिंसा समेत अन्य हिंसक घटनाएं हुईं. हिंसा में कम से कम पांच लोगों की मौत हुई है.
भारतीय सेना और असम राइफल्स की लगभग 140 टुकड़ियां पूर्वोत्तर के राज्य में स्थिति सामान्य करने के प्रयास में जुटी हैं. हर टुकड़ी में 10,000 कर्मी होते हैं. इसके अलावा अन्य अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को भी तैनात किया गया है.
आरोप लगाया कि मणिपुर में कुकी-जोमी-मिजो-हमार समुदायों के खिलाफ हिंसा अरंबाई तेंगगोल और मेईतेई लीपुन जैसे चरमपंथी मेईतेई गुटों द्वारा की जा रही थी, जिन्हें इंफाल घाटी में राज्य सुरक्षा बलों के कार्यालयों से हथियार चुराने दिए गए.दूसरी तरफ, एमटीएफडी ने कहा कि कुकी-जोमी ग्रामीण अपने बचाव के लिए हस्तनिर्मित हथियारों और गोला-बारूद और कुछ लाइसेंसी बंदूकों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
एमटीएफडी के महासचिव डब्ल्यूएल हंजसिंग ने कहा कि एन. बीरेन सिंह सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही मणिपुर में ध्रुवीकरण की राजनीति देखी जा रही है.उन्होंने कहा, ‘कुकी लोग पारंपरिक रूप से लंबे समय तक घाटी में मेईतेई के निकटतम भौगोलिक पड़ोसी रहे हैं. सत्ता को मजबूत करने के लिए दुश्मन की तलाश का यह एक उत्कृष्ट उदाहरण है.’
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