क्या बिहार में चकबंदी का कोई औचित्य नहीं है?

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चकबन्दी का उद्देश्य है, छोटे जोत को बड़े जोत में बदलना

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

सर्वे के बाद चकबंदी होती है। आसन शब्दों में समझें तो ग्रामीण क्षेत्रों में चकबन्दी में कृषि योग्य भूमि के छोटे जोतों को मिलाकर बड़ा जोत(प्लॉट) का निर्माण होता है। नक्शा/चक खतियान बनता है और रैयतों को नए प्लॉट्स अलॉट किए जाते हैं और दखल दिलाया जाता है। सब कुछ कितना सरल दिखता है। लेकिन जमीन पर वस्तुतः इतना सरल है नहीं। बिंदु यह है कि क्या वाकई चकबंदी की कोई जरूरत बिहार में है भी या यूं ही फालतू में चकबंदी विभाग/क्षेत्रीय कार्यालय में जनता के टैक्स के पैसे बहाए जा रहे हैं??

गौर से देखा जाए तो बिहार में वर्ष 2000 के पहले से ही चकबंदी का काम ठप्प है। अधिकांश क्षेत्रीय चकबंदी कार्यालयों में बैठे अधिकारी/कर्मी का काम है सिर्फ रजिस्ट्री के लिए प्रस्तुत होने वाले दस्तावेजों को NOC प्रदान करना। ये NOC नहीं देंगे तो रजिस्ट्री नहीं होगी। वस्तुतः वहां कोई काम नहीं। बहुत सारे लोग जिनको कोई काम करना पसंद नहीं, वे इन कार्यालयों में पोस्टिंग/प्रतिनियुक्ति चाहते हैं।

क्या चकबन्दी से बिहार में ऐसा कोई उद्देश्य पूरा हुआ या आगे हो सकता है?

जो भी चकबन्दी पूर्व में हुए, उसमें ग्राउंड स्थिति यह है कि रैयत चक खतियान के अनुसार भूमि पर दखल में गए ही नहीं। विभाग की तरफ से कागजी नोटिफिकेशन तो जारी हो गया, लेकिन ग्राउंड पर स्थिति जस की तस रही। नतीजा, विवाद एवं उलझन का जन्म हुआ। किसी ने चक खतियान के आधार पर जमीन किसी को बेच दी और अपने पहले के स्थान पर भी पूर्ववत बना रहा। खरीदने वाला दबंग रहा तो कब्जा भी कर लिया आदि आदि।

जिसका जमीन गया, वो दौड़ रहा है, बहुत लोग आज की तारीख़ में अपना जमीन खोज रहा है। किसी को कुछ पता नहीं, कौन जमीन किसकी है। न रैयत को, न राजस्व अधिकारियों/कर्मियों को। अब  देखा जाए तो चकबन्दी बिहार में संभव नहीं है। क्योंकि बिहार में जनसंख्या अधिक है, भूमि कम है। जोत का आकार छोटा-छोटा है। एक मौजे में रैयतों की संख्या बहुत अधिक है। क्योंकि अधिकांश भूमि तो आवासीय हो चुकी है। लोग कृषि योग्य भूमि में भी धड़ल्ले से निर्माण कर रहे हैं।

अब इतने छोटे-छोटे जोतों को मिलाकर कितना बड़ा जोत बनेगा और वह इतने लोगों में कैसे बाँटेंगे ?
अगर मान भी लिया जाए कि जोत बड़ा हो जाएगा और सही रैयत सही जमीन पर दखल ले भी ले तो रजिस्ट्री के क्रमशः चालू रहने से जब बड़ा जोत वाला यह रैयत भूमि विक्रय करेगा तो उसका जोत तो फिर छोटा होगा ही। तो फिर बड़ा जोत का क्या फायदा हुआ?? कुछ भी नहीं। जमीन की लगातार खरीद-बिक्री से चकबन्दी तो साल दो साल में ही पूर्वस्थिति(छोटे-छोटे जोत) को प्राप्त कर लेगा।

कुछ पुराने जानकार लोगों ने बताया कि एक समय चकबन्दी बिहार में बंद कर दी गई थी, लेकिन रोहतास के कुछ किसान माननीय कोर्ट में चले गए, जहां आदेश हुआ कि चकबन्दी चालू रखा जाए। इसीलिए सरकार चकबन्दी को ढो रही है। अगर ऐसा हुआ था तो इसका मतलब यह हुआ कि सरकार की तरफ से पक्ष सही तरीके/ढंग से नहीं रखा गया। वहां निश्चित ही उपर्युक्त वर्णित चकबन्दी होने में परेशानी बिहार के परिप्रेक्ष्य में नहीं बताए गए होंगे।

वर्तमान में गैर कृषि प्रयोजनों के लिए भूमि संपरिवर्तन एक्ट/निबंधन विभाग की चिट्ठी कि 5 डिसमिल तक की भूमि आवासीय में ही निबंधित होगी
के बाद चकबन्दी का क्या प्रयोजन शेष रह जाता है?? ये दोनों एक्ट/चिट्ठी चकबन्दी के विरुद्ध/विरोधाभासी हैं।

गैर कृषि प्रयोजनों के लिए भूमि संपरिवर्तन एक्ट के बनने से कृषि योग्य भूमि पर भी आवास बनाने को कानूनी रूप से सही बना दिया गया (जबकि संपरिवर्तन एक्ट BT एक्ट,1885 और बिहार लैंड रिफॉर्म्स एक्ट,1950 में वर्णित प्रावधानों के विरुद्ध है। BT एक्ट/बिहार लैंड रिफॉर्म्स एक्ट के प्रावधानों में संशोधन होना चाहिए था। लेकिन अभी तक हुआ नहीं है और उम्मीद है कि होगा भी नहीं)।
यह कॉमन सेंस का विषय है कि जब कृषि योग्य भूमि पर गैर कृषि योग्य कार्य हो ही सकता है तो वैसी भूमि पर चकबन्दी कैसे हो सकता है??
क्योंकि चकबन्दी सिर्फ कृषि योग्य भूमि का ही हो सकता है, आवासीय/व्यावसायिक भूमि का नहीं।

BT एक्ट,1885 के अनुसार कोई रैयत जमीन के स्वरूप में ऐसा परिवर्तन नहीं कर सकते, जिससे भूमि के तात्विक मूल्य में कोई कमी हो जाए। जबकि संपरिवर्तन एक्ट के अनुरूप भूमि के तात्विक मूल्य कम होने संबंधी स्वरूप धड़ाधड़ चेंज किया जा रहा है।दूसरी तरफ बिहार लैंड रिफॉर्म्स एक्ट,1950 की धारा 6 आवासीय भूमि धारक के संबंध में कहती है की जब सारी भूमि आवासीय ही हो जाएगी तो सरकार रेंट कैसे और क्यों लेगी?? साथ ही जब सारी भूमि आवासीय हो ही सकती है तो फिर चकबन्दी कैसे और क्यों होगी??

निबंधन विभाग की चिट्ठी के अनुसार रजिस्ट्री कार्यालय 5 डिसमिल कृषि योग्य भूमि को आवासीय मानते हुए आवासीय भूमि का निबंधन शुल्क लेती है। यानि कृषि योग्य भूमि में 5-5 डिसमिल के जब सारे प्लॉट आवासीय हैं तो फिर चकबन्दी के समय उनको कृषि योग्य मानकर चक कैसे बनाया जाएगा??
यानि ये सारे प्रावधान चकबन्दी के विरुद्ध हैं। तो फिर चकबन्दी एक्ट,1956 को ही समाप्त कर देना चाहिए। फालतू में एक्ट को ढोने का क्या फायदा??

अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा। बिहार सरकार को तत्काल प्रभाव से चकबन्दी एक्ट,1956 को निरस्त कर देना चाहिए। न रहेगी बांस, न बजेगी बांसुरी। चकबन्दी से फायदा कम, नुकसान ज्यादा है। बहुत रैयत सरकारी कर्मियों को मिलाकर सरकारी भूमि भी नक्शा में दिखवा दिए और चक खतियान में नाम से करवा लिए। ऐसे एक नहीं, हजारों मामले होंगे। जो आए दिन भूमि विवाद का कारण बनते रहते हैं।

आपसी सहमति से अगर दो रैयत परस्पर अपनी कृषि योग्य भूमि का बदलैन करना चाहें तो 1:1.25 के अनुपात में उसका निबंधन निःशुल्क है। यानि कोई अपने कृषि योग्य 1 बीघा जमीन का किसी अन्य के सवा बीघे कृषि योग्य जमीन तक से निःशुल्क रजिस्टर्ड बदलैन कर सकता है। दो बीघा का ढाई बीघा तक से और इसी तरह। यही तो है चकबन्दी।

बहुत लोग स्वेच्छा से ऐसा किए। निबंधन के कारण उनका कागज भी दुरुस्त है।सरकार को स्वैच्छिक निःशुल्क बदलैन को promote करना चाहिए। इससे कोई दखल दिलाने संबंधी समस्या ही नहीं रहेगी।साथ ही, सरकार को क्षेत्रीय चकबन्दी कार्यालय चलाने में जो अपव्यय हो रहा है, वह भी खत्म हो जाएगी। जिससे सरकारी खजाने की सेहत कुछ तो सुधरेगी ही।निष्कर्षतः, कहा जा सकता है कि वर्तमान में चकबन्दी का बिहार में कोई औचित्य नहीं है।

 

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