इसरो ने एक बार फिर लंबी छलांग लगाई है,कैसे?

इसरो ने एक बार फिर लंबी छलांग लगाई है,कैसे?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
0
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
0
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

 ISRO ने एक बार फिर लंबी छलांग लगाई है। ISRO ने अपने नए मिशन पीएसएलवी रॉकेट के जरिए किए जाने वाले अपने ‘स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट’ को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। लॉन्चिंग रात ठीक 10 बजे श्रीहरिकोटा से की गई। इस मिशन का नाम स्पैडेक्स रखा गया है।

क्या है SpaDeX मिशन?

इसरो ने SpaDeX मिशन के तहत 229 टन वजन के पीएसएलवी रॉकेट से दो छोटे उपग्रहों को प्रक्षेपित किया है। ये उपग्रह 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर डॉकिंग और अनडॉकिंग करेंगे।ISRO ने लॉन्चिंग के बाद दिए गए एक बयान में कहा कि यह मिशन भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिए मील का पत्थर साबित होगा। इस मिशन में दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में परस्पर जोड़ा और अलग किया जाएगा।

ISRO के अधिकारियों के अनुसार, इस मिशन की सक्सेस भारत के आगामी मिशनों चंद्रयान-4, खुद का स्पेस स्टेशन और चांद पर भारतीय यात्री का पैर रखना जैसे सपनों को साकार करेगी।

डॉकिंग और अन डॉकिंग की प्रक्रिया

ISRO ने कहा कि पीएसएलवी रॉकेट में दो अंतरिक्ष यान- स्पेसक्राफ्ट ए (एसडीएक्स01) और स्पेसक्राफ्ट बी (एसडीएक्स02) को एक ऐसी कक्षा में रखा जाएगा जो उन्हें एक दूसरे से पांच किलोमीटर दूर रखेगी। बाद में, इसरो मुख्यालय के वैज्ञानिक उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद वे पृथ्वी से लगभग 470 किलोमीटर की ऊंचाई पर परस्पर मिलकर एक हो जाएंगे। इस प्रक्रिया को डॉकिंग कहते हैं। इसके बाद इन दोनों उपग्रहों को अलग यानी अन डॉकिंग भी किया जाएगा।

भारत ने लिया डॉकिंग सिस्टम पर पेटेंट

अंतरिक्ष की दुनिया में अपने बूते डॉकिंग अनडॉकिंग की तकनीक को अंजाम देने में सिर्फ रूस, अमेरिका और चीन को ही महारत हासिल है। अब भारत भी इस ग्रुप में शामिल होने की तैयारी में है।भारत के लिए ये गौरव की बात है कि इसरो ने अब इस डॉकिंग सिस्टम पर पेटेंट भी ले लिया है। क्योंकि, आमतौर पर कोई भी देश डॉकिंग और अनडॉकिंग की कठिन बारीकियों को शेयर नहीं करते हैं। इसलिए इसरो को अपना खुद का डॉकिंग मैकेनिज्म बनाना पड़ा।

चंद्रयान-4 मिशन में भी काम आएगी ये टेक्नोलॉजी

ये डॉकिंग अनडॉकिंग टेक्नोलॉजी भारत के चंद्रयान-4 मिशन के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होगी। जो चांद से सैंपल रिटर्न मिशन है। फिर भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनेगा, तब धरती से कई मॉड्यूल्स को ले जाकर अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा और 2040 में जब एक भारतीय को चांद पर भेजा जाएगा और वापस लाया जाएगा, तब भी डॉकिंग और अनडॉकिंग एक्सपेरिमेंट की जरूरत पड़ेगी। ये डॉकिंग अनडॉकिंग एक बहुत ही पेचीदा काम है। अभी तक केवल रूस, अमेरिका और चीन ने इसमें महारत हासिल की है। अब भारत ने भी इसकी ओर अपने कदम बढ़ा दिए हैं।

अमेरिका ने की थी सबसे पहले डॉकिंग

  • अंतरिक्ष में सबसे पहले अमेरिका ने 16 मार्च, 1966 को डॉकिंग की थी।
  • सोवियत संघ ने पहली बार 30 अक्टूबर, 1967 को दो स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में डॉक किए थे।
  • चीन ने पहली बार स्पेस डॉकिंग 2 नवंबर, 2011 को की थी।

आसान भाषा में समझें डॉकिंग और अन डॉकिंग की प्रक्रिया

इस मिशन में 2 स्पेसक्राफ्ट शामिल किए गए हैं। एक का नाम है टारगेट यानी लक्ष्य है। वहीं, दूसरे का नाम चेजर है यानी पीछा करने वाला। दोनों का वजन 220 किलोग्राम है। PSLV-C60 रॉकेट से 470 किमी की ऊंचाई पर दोनों स्पेसक्राफ्ट अलग दिशाओं में लॉन्च किए जाएंगे।

इस दौरान टारगेट और चेजर की रफ्तार 28 हजार 800 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच जाएगी। लॉन्च के करीब 10 दिन बाद डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी। यानी टारगेट और चेजर को आपस में जोड़ा जाएगा। करीब 20 किलोमीटर की दूरी से चेजर स्पेसक्राफ्ट टारगेट स्पेसक्राफ्ट की तरफ बढ़ेगा। इसके बाद ये दूरी घटते हुए 5 किलोमीटर तक पहुंचेगी, फिर डेढ़ किलोमीटर होगी, इसके बाद 500 मीटर हो जाएगी।
जब चेजर और टारगेट के बीच की दूरी 3 मीटर होगी। तब डॉकिंग यानी दोनों स्पेसक्राफ्ट के आपस में जुड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। चेजर और टारगेट के जुड़ने के बाद इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर किया जाएगा। इस पूरी प्रक्रिया को धरती से ही कंट्रोल किया जाएगा। इसरो के लिए ये मिशन एक बहुत बड़ा एक्सपेरिमेंट है, क्योंकि भविष्य के स्पेस प्रोग्राम इस मिशन पर टिके हैं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!