भूस्खलनों का मानचित्रण करने हेतु इसरो के उपग्रह डेटा का उपयोग किया जा रहा है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (National Remote Sensing Centre- NRSC) ने लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया जारी किया है, जो देश में लैंडस्लाइड हॉटस्पॉट की पहचान करने वाली एक विस्तृत गाइड है।
- NRSC के पास सुदूर संवेदन उपग्रह डेटा अधिग्रहण, प्रसंस्करण, संग्रहण और विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं के प्रसार हेतु जनादेश है।
एटलस:
- पहली बार वैज्ञानिकों ने देश का “लैंडस्लाइड एटलस” बनाने हेतु 17 राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों के 147 ज़िलों में वर्ष 1998 से वर्ष 2022 के बीच रिकॉर्ड किये गए 80,000 भूस्खलन की घटनाओं के आधार पर जोखिम का आकलन किया।
- एटलस में वर्ष 2013 में केदारनाथ आपदा और वर्ष 2011 में सिक्किम भूकंप के कारण हुए भूस्खलन जैसे सभी मौसमी एवं घटना-आधारित भूस्खलनों का मानचित्रण करने हेतु इसरो के उपग्रह डेटा का उपयोग किया।
- अखिल भारतीय भूस्खलन डेटाबेस भूस्खलन को मौसमी (2014, 2017 मानसून मौसम), घटना-आधारित और मार्ग-आधारित (Route-Based) (2000-2017) में वर्गीकृत करता है।
मुख्य बिंदु:
- उत्तराखंड, केरल, जम्मू-कश्मीर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड तथा अरुणाचल प्रदेश में 1998-2022 के दौरान भूस्खलन की सबसे अधिक घटनाएँ दर्ज की गईं।
- सर्वाधिक भूस्खलन वाले राज्यों की सूची में पहला स्थान मिज़ोरम का था, जिसमें पिछले 25 वर्षों में 12,385 भूस्खलन की घटनाएंँ दर्ज की गईं, जिनमें से केवल वर्ष 2017 में भूस्खलन की 8,926 घटनाएंँ हुईं।
- मिज़ोरम के बाद उत्तराखंड (11,219) और केरल का स्थान है।
- जोशीमठ में रिकॉर्ड की गई हाल की भू-अधोगमन की घटनाओं ने भूस्खलन के प्रति उत्तराखंड की भेद्यता को उजागर किया है।
- अधिकतम भूस्खलन जोखिम ज़िले वाले राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश (16), केरल (14), उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर (प्रत्येक में 13), हिमाचल प्रदेश, असम एवं महाराष्ट्र (प्रत्येक में 11), मिज़ोरम (8) तथा नगालैंड (7)।
- देश में उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल ज़िलों में सबसे अधिक भूस्खलन घनत्व और भूस्खलन का खतरा है।
भूस्खलन हेतु भारत की भेद्यता:
- भारत को वैश्विक स्तर पर शीर्ष पांँच भूस्खलन-प्रवण देशों में गिना जाता है, जहांँ भूस्खलन की घटनाओं के कारण एक वर्ष में प्रति 100 वर्ग किमी. में कम-से-कम एक मौत की घटना दर्ज की जाती है।
- देश में मुख्य रूप से वर्षा के पैटर्न में भिन्नता भूस्खलन का एकमात्र सबसे बड़ा कारण है, जिसमें हिमालय और पश्चिमी घाट अत्यधिक संवेदनशील बने हुए हैं।
- बर्फ से ढके क्षेत्रों को छोड़कर देश के भौगोलिक भूमि क्षेत्र के लगभग 12.6% हिस्से पर भूस्खलन का खतरा विद्यमान है। उत्तर-पश्चिमी हिमालय का 66.5%, उत्तर-पूर्वी हिमालय का 18.8% और पश्चिमी घाट का 14.7% हिस्सा भूस्खलन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- दर्ज की गई भूस्खलन की कम घटनाओं के बावजूद पश्चिमी घाट, विशेष रूप से केरल में हुई भूस्खलन की घटना अधिक गंभीर है।
भूस्खलन का कारण:
- परिचय:
- भूस्खलन मुख्य रूप से पर्वतीय उच्चावचों में होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ हैं, जहाँ मृदा, शैल, भूविज्ञान और भू-आकृति की अनुकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
- शैल, शिलाखंड, मृदा या मलबे का भू-आकृति से अचानक विचलन भूस्खलन कहलाता है।
- कारण:
- इसे उत्प्रेरित करने वाले प्राकृतिक कारणों में भारी वर्षा, भूकंप, हिम विगलन और बाढ़ के कारण ढाल प्रवणता का गर्त निक्षेपण शामिल है।
- यह उत्खनन, पहाड़ियों और पेड़ों की कटाई, अत्यधिक बुनियादी ढाँचे के विकास तथा मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण भी हो सकता है।
- भूस्खलन को प्रभावित करने वाले कुछ मुख्य कारकों में शैल लक्षण, भूवैज्ञानिक संरचनाएँ जैसे- भ्रंश, पर्वतीय ढलान, जल निकासी, भू-आकृति विज्ञान, भूमि उपयोग और भू-आवरण, मृदा की बनावट एवं गहरा तथा चट्टानों का अपक्षय आदि शामिल हैं।
- योजना निर्माण और भविष्यवाणी हेतु भूस्खलन संवेदनशील क्षेत्र निर्धारित करने वाले उक्त सभी कारकों को ध्यान में रखा जाता है।
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