सोचने वाली बात है ,100% स्कोर किया है,फिर भी छात्र/छात्रा संतुष्ट नही है,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
कल से दो तीन न्यूज पोर्टलो पर स्टोरी पढ चुका हूँ ,
कि फलाँ फलाँ छात्र के 600/600 अंक आये है, यानि 100% स्कोर किया है । फिर भी छात्र/छात्रा संतुष्ट नही है ।
अगर सही तरीके से उत्तर पुस्तिकाओ का मूल्यांकन किया जाये , तो भी केवल मल्टीपल च्वाईस प्रश्नो के अलावा ये किसी भी सूरत संभव नही कि , 100% स्कोर कर लिया जाये ।
descriptive प्रश्नो का उत्तर देते हुए, भले ही किसी छात्र के पास दुर्लभ “फोटोजेनिक मैमोरी” क्यों ना हो , फिर भी मैथ के अलावा किसी भी सबजेक्ट मे 100% अंक ले पाना संभव नही है ।
पता नही कैसे ,आज के examiner ,आखिर इन उत्तर पुस्तिकाओ का मूल्यांकन करते होंगे ???
इन 99% प्रतिशत, 100% वालो की पोल कुछ ही दिनो बाद खुल जाती है ।
प्रतियोगी परीक्षाओ मे कहाँ घुस जाती है ये काबिलियत ?
प्री- मेडिकल , इंजीनियरिंग या फिर सिविल सर्विसेज को ही देख लीजिए, प्रश्नो का उत्तर , चार विकल्पो मे से चुनना होता है , तब भी 100% तो छोडिये , 80% स्कोर के लाले पड जाते है ।
यहाँ तो वस्तुनिष्ठ प्रश्नो को तो छोड ही दिजिए , Descriptive यानि विस्तार पूर्वक उत्तर लिखकर भी पूरे अंक मिल रहे है , क्या लिखने वाले ने कोमा , फुल स्टाॅप , ग्रामर , स्पेलिंग मे एक भी गलती नही करी ????
मजाक बनकर रह गया ये मूल्यांकन सिस्टम ।
आजकल तो उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड माध्यमिक शिक्षा बोर्ड भी खुलेआम नंबर बाँट रहा है । हमने तो वो वक्त देखा है ,सन् 1993- 1994 का , जब 60% प्रतिशत अंक लेकर “फर्स्ट डिवीजन” बनाने मे छक्के छूट जाते थे ।
और ये हाल लगभग 2008 तक रहा है
और यकीन मानिये , पूरे स्कूल मे बामुश्किल एक या दो जियाले ही ऐसे होते थे , जो “फर्स्ट डिवीजन” ला पाते थे।
ये 98% और 99% प्रतिशत केवल पेरेंट्स को मूर्ख बनाने का सर्कस है ।
बाद मे जब यही बच्चे मेडिकल , इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता मे बैठकर सीट नही निकाल पाते तो , माता-पिता को लगता है , उनके जीनियस पुत्र अथवा पुत्री के साथ अन्याय हो गया ।
फिर शुरू होता है , रेजोनेंस, आकाश , बंसल जेसे इंस्टीट्यूट्स मे बच्चो को घिसने और अपनी चमडी उतरवाने का गंदा खेल ।
मगर सीट फिर भी नही मिलती ।
फिर माँ-बाप खुद को बेच डालने के स्तर पर उतर आते है । गाँव की जमीन , मकान बेच डालते है । मोटा कर्जा उठाते है , भ्रष्टाचार की गंदी गटर मे कूदकर पैसा उलीचते है , कि येन केन प्रकारेण बच्चे को मेडिकल /इंजीनिरिंग करने यूक्रेन, रूस, चीन , बांग्लादेश भेजना है ,क्योकि उनका नौनिहाल दसवीं मे 99% और बारहवीं मे 98% लाया था ।
जबकि हकीकत ये है कि उनका 99% लाने वाले शूरमा , “कंबाईंड ग्रेजुएट लेवल” स्टाफ सलेक्शन कमीशन की प्रतियोगी परीक्षा मे 80 और 90% तो छोडिये , 60% भी नही ला पाता ।
ये जो 100% लाकर भी संतुष्ट नही है, पहले तो एक बेंत लेकर , इनकी तशरीफ सुजाने की जरूरत है , ताकि इन्हे संतुष्टि मिल सके। इनकी बुद्धि की पोल यही खुल जाती है , कोई पूछे कि भाई 100% लाकर भी संतुष्ट नही हो तो फिर कितने नंबर लाना चाहते थे ??
माता -पिता से कहूंगा ,कि फालतू के सपने मत पालो , बच्चो की नंबर की दौड मे डालकर ,उनके सर्वांगीण विकास , शारिरिक क्षमताओ , स्पोर्ट्स , और एक्सट्रा कैरिकुलर्स पर ध्यान दो ।
जीवन मे उन्हे जो बनना होगा वो अपने आप बन जायेंगें ।
हर बच्चा सुंदर पिचाई नही होता , हर बच्चा अपने आप मे यूनिक है । केवल इंजीनियर और डाॅक्टर बनकर ही लोग सफल नही कहलाते , जीवन मे कुछ करने को हजारो फील्ड है , नाम और शोहरत के लिए 100% लाना जरूरी है ।
बल्कि सच तो ये है , पूरी दुनिया मे शायद ही आज तक कोई महान व्यक्ति ऐसा हुआ होगा, जिसने अपनी स्कूलिंग के दिनो मे 100% स्कोर किया हो ।
100% तो कभी “एल्बर्ट आइन्सटीन” को नही मिले, थाॅमस अल्वा ऐडीसन तो बेचारा स्कूल से ही निकाल दिया गया था .
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