कुम्भ के भावमय लोक को भीड़ कहना पाप है.कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
ये एक्सप्रेस है.. बिहार के सीवान जिले से दिल्ली के लिये तैयार। अपराह्न 9.25 पर यहाँ से दिल्ली के लिए निकलती हुई यह ट्रेन प्रयागराज होते हुए जाती है। ग्राम्यांचल के एक रेलवे स्टेशन पर उमड़ता हुआ यह ज्वार कुम्भ स्नान के लिए आतुर है। यह आतुरता किसी प्रचार से प्रेरित नहीं है। यह आस्था के सनातन विचार से प्रेरित समाज है।
जो कहते हैं कि इतने लोग कैसे आ गए कुम्भ में, उन्हें इस देश की चिरन्तन धार्मिकता से परिचय ही नहीं है। आरक्षण, सुविधा, कन्फर्म टिकट और यात्रा में वांछित अनेक अनुकूलताओं की उपेक्षा करके यह श्रद्धालु-समाज सहज श्रद्धा के साथ संगम नहाने निकला है। देश के विभिन्न भागों में ऐसा ही दृश्य है। इनका उत्साह दर्शनीय है। इनकी बातें मननीय हैं।
इनमें से एक को किसी ने टोका है कि ‘अब क्या करने जा रहे हो, माघ पूर्णिमा तो हो गई ! ‘
उसका उत्तर सुनने लायक है –
‘काहे… गंगा मइया पूनियां के बाद परियाग छोड़ देलन..?
प्रश्नकर्ता कहता है कि ‘अरे भाई कुम्भ पर्व बीत गया..’ तो आस्था का उत्तर आता है कि ‘ हमनी सब नहैबे ना करली तऽ कुम्भा कैसे खतम हो जैतइ.. तूं चिंता मत करऽ.. ई चलतइ होली तक। तू अपन पतरा अपने पास रखऽ..।
इनको सुनते हुए रामनगर – काशी की रामलीला से जुड़ा एक चर्चित प्रसंग याद आता है। किसी ने पूछा कि प्रतिवर्ष श्रीराम विवाह क्यों.. वह तो त्रेता में हुआ था। उत्तर मिला कि त्रेता वाले उत्सव में हम लोग नहीं थे, इस कमी को पूरा करने के लिए इसको बारम्बार दुहराते हैं ताकि हम सब इसमें सम्मिलित हो सकें। यह प्रसंग अद्भुत है। ये भाव विह्वल लोग कह रहे हैं कि अभी रहेगा कुम्भ। अभी हम कहाँ पहुँचे। बिना हमारी सहभागिता के यह कैसे पूरा होगा, कैसे बीत जाएगा। यह पर्व हम सबका है।
आप इस तर्क का प्रतिवाद रचते रहिए। आप इस भावना से मुख मोड़ते रहिए। परन्तु यही भावना कुम्भ रचती है। यही हमारे देश-काल के विज्ञान को धन्य करती है।
विश्वास की यह परम्परा सनातन धर्म का अमृत है। भीड़, अव्यवस्था और असुविधा के छल से इस अमृत में विष घोलने वाले लोगों को यह परम्परा अपना नायक नहीं मानती।
ग्रामीण अंचलों में मांगलिक अवसरों के गीत गाए जाते हैं। एक गीत बधाई का भी होता है जो आयोजन के नायकों को रेखांकित करता है और उन्हें सराहता है। जैसे..”पहली बधाई उनको जिन्होंने आशीर्वाद दिया, दूसरी बधाई उनको जिन्होंने यह मण्डप छवाया, तीसरी बधाई उनको जिन्होंने मंगल गाया..” इत्यादि।
यहाँ.. प्रयाग से प्रायः पाँच सौ किमी की दूरी पर संगम के लिए निकलते लोगों का उत्साह और कुम्भ पर्व को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री MYogiAdityanath जी के प्रति इनका मुदित अहोभाव देखते-सुनते बनता है।
इस विराट् लोक को यात्रा के सारे सम्भावित कष्टों से बचाकर संगम नहला दिया जाए, मुझे इसका कोई सरल उपाय नहीं सूझता। पर, किसी भी तर्क से इनके प्रयाग आने का तिरस्कार किया जाय यह भी अपराध प्रतीत होता है। इस भावमय लोक को मात्र भीड़ कहना भी कदाचित् पाप हो।
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