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कारगर है शंख, बांसुरी और शहनाई बजाना, फेफड़े होते हैं मजबूत. - श्रीनारद मीडिया

कारगर है शंख, बांसुरी और शहनाई बजाना, फेफड़े होते हैं मजबूत.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पिछले करीब डेढ़ साल से कोरोना ने देश में कोहराम मचा रखा है जिससे लाखों लोगों की जान गई है। राजधानी के हजारों परिवारों ने कोरोना महामारी का दंश झेला। लेकिन बहुत से लोग अपनी अनुशासित जीवनशैली के कारण कोरोना संक्रमण से बचे रहे। वे या तो कोरोना से संक्रमित नहीं हुए या संक्रमित हुए भी तो मामूली रूप से और घर पर ही इलाज करके स्वस्थ हो गए। जो लोग पूजा-पाठ के दौरान नियमित रूप से शंख बजाते हैं, बांसुरी या शहनाई बजाते हैं, ऐसे लोग कोरोना के प्रकोप से बचे रहे। दरअसल, शंख, बांसुरी व शहनाई बजाने से फेफड़े मजबूत होते हैं। जो लोग लंबे समय से यह करते हैं उन्हें सांस संबंधी बीमारियां भी नहीं होती हैं।

पूरा परिवार बजाता है शंख

चितरंजन पार्क निवासी शास्त्रीय गायिका रिनी मुखर्जी (46) ने बताया कि उनके घर में रोजाना शाम को मां दुर्गा की आरती करने के बाद परिवार के सभी सदस्य शंख बजाते हैं। इस कारण 71 वर्षीय मां तंद्रा मजूमदार भी कोरोना संक्रमण से पूरी तरह से सुरक्षित रहीं। रिनी ने बताया कि उनकी 17 वर्षीय बेटी रिया मुखर्जी भी पूजा के दौरान नियमित रूप से शंख बजाती हैं। शंख बजाने के दौरान फूंक लेने के दौरान फेफड़े में संकुचन व फैलाव होता है। यह एक तरह से ब्रीदिंग एक्सरसाइज होती है जिससे फेफड़े मजबूत होते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। इसी तरह बांसुरी बजाते समय व गायन का अभ्यास करने से भी फेंफड़े मजबूत होते हैं। रिनी ने बताया कि बंगाल में तो इस बात की प्रतियोगिता होती है कि कौन एक सांस में कितनी देर तक शंख बजा सकता है।

बंगाल में पूजा व मां की आरती के बाद शंख बजाने की बहुत पुरानी परंपरा है। हम लोग नियमित रूप से ऐसा करते हैं। इसके कारण फेफड़े मजबूत रहते हैं। इस बार कोरोना संक्रमण की चपेट में आए लोगों में सबसे ज्यादा मौत इसलिए हुई क्योंकि संक्रमण उनके फेफड़ों तक पहुंच गया। शंख बजाने व नियमित प्राणायाम से बहुत से लोगों ने खुद को संक्रमण से बचा लिया है। सभी को शंखध्वनि का अभ्यास करना चाहिए।

पूजा-पाठ के दौरान हमारे घर में सभी सदस्य नियमित रूप से शंख बजाते हैं। इस कारण हम कोरोना से सुरक्षित रहे। कोरोना महामारी के इस दौर में हमें सिर्फ दवाओं पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। वैदिक संस्कृति में योग, प्राणायाम के साथ ही शंख बजाने, सांस संबंधी अभ्यास करने से भी हम स्वस्थ रह सकते हैं। हमारे ट्रस्ट में भी सभी सदस्यों व इससे जुड़े लोगों को इसका अभ्यास करवाया जाता है।

शंखध्वनि से आसपास का वातावरण भी शुद्ध होता है। नियमित रूप से व सही तरीके से शंख बजाने से फेफड़ों व पेट की अच्छी एक्सरसाइज हो जाती है। मेरे सहित मंदिर के पांचों पुजारी पूजा के दौरान सुबह-शाम पांच-पांच बार शंख बजाते हैं। इसलिए हम सभी कोरोना की दोनों लहर में संक्रमण से बचे रह सके। किशोरावस्था से ही शंख बजाने का अभ्यास करने वाले लोग सांस, हृदय, पेट व फेफड़ा से संबंधित बीमारियों से सुरक्षित रहते हैं।

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