मैंने क्या किया, क्या नहीं किया यह फैसला करना इतिहास का काम है- मनमोहन सिंह

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

मनमोहन सिंह ने 2014 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ने से कुछ महीने पहले कहा था कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। उनका नेतृत्व कमजोर नहीं था। इतिहास उनके प्रति नरमी बरतेगा। जनवरी 2014 में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, मुझे नहीं लगता कि मैं एक कमजोर प्रधानमंत्री रहा हूं। मैं ईमानदारी से मानता हूं कि समकालीन मीडिया या विपक्ष की तुलना में मेरे प्रति अधिक दयालु होगा। राजनीतिक मजबूरियों को देखते हुए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया है।
मनमोहन ने कहा था, इतिहास मेरे प्रति नरमी बरतेगा
आगे बोले कि मैंने परिस्थितियों के अनुसार उतना अच्छा किया जितना मैं कर सकता था। मैंने क्या किया है या क्या नहीं किया है, इसका फैसला करना इतिहास का काम है। वह उन आलोचनाओं से संबंधित सवालों के जवाब दे रहे थे कि उनका नेतृत्व कमजोर था और कई मौकों पर उन्होंने निर्यायक कदम नहीं उठाए। मनमोहन ने उस प्रेस कांन्फ्रेंस में भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के तत्कालीन उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर हमला करते हुए मोदी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 के गुजरात दंगों का भी जिक्र किया था। उस समय भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव से पहले कमजोर नेतृत्व के मुद्दे पर मनमोहन पर निशाना साधते हुए मोदी को मजबूत नेता के रूप में पेश किया था।मनमोहन ने कहा था कि संप्रग 1 और संप्रग 2 में प्रधानमंत्री के रूप में उनके दो कार्यकालों ने गठबंधन सरकार चलाने की कांग्रेस की क्षमता को प्रदर्शित किया और इस धारणा को दूर कर दिया कि यह पार्टी गठबंधन नहीं चला सकती है।

कभी संदेह के दायरे में नहीं रही व्यक्तिगत ईमानदारी

उन पर सबसे कमजोर प्रधानमंत्री होने के आरोप लगे, घपले-घोटालों के अभूतपूर्व मामले सामने आए और मीडिया सलाहकार संजय बारू जैसे कुछ लोगों ने उन्हें लाचार बताने में कसर नहीं छोड़ी जो उनके सबसे अधिक करीब थे।

परमाणु समझौते में विजेता बनकर उभरे

पीएम के रूप में मनमोहन सिंह के पहले कार्यकाल में किसी बड़े विवाद की झलक नहीं मिली, सिवाय इसके कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उन्हें राजद के तस्लीमुद्दीन सरीखे कुछ ऐसे मंत्री बनाने पड़े जिन्हें दागी कहा जाता था। पहले कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर सहयोगी दलों ने ही सवाल उठाए, लेकिन इसे अंजाम तक पहुंचाने में मनमोहन सिंह ने अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी झोंक दी और वह विजेता बनकर उभरे।

आरबीआई गवर्नर, वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के पद पर रहे मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता के तौर पर जाने जाते हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. करने वाले मनमोहन सिंह ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन विभिन्न पदों पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

साल 1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर पांच सालों तक रहे जिसके बाद उन्हें 1990 में प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार बना दिया गया। इसके बाद जब पी वी नरसिंहराव पीएम बनें, तो उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह को 1991 में वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया।

मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय के सचिव, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। साल 2004 से 2014 के बीच यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार में वे प्रधानमंत्री पद पर रहे।

  • 1932: जन्म – गांव गाह (अब पंजाब, पाकिस्तान में)
  • 1954: पंजाब विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री पूरी की
  • 1962: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी.फिल. (डॉक्टरेट) प्राप्त की
  • 1972: वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बने
  • 1976: वित्त मंत्रालय में सचिव का पद संभाला
  • 1982: भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर नियुक्त हुए
  • 1985: योजना आयोग के उपाध्यक्ष बने
  • 1987: उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया
  • 1991: पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री बने
  • 2004: भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में निर्वाचित
  • 2009: कार्यकाल पूरा करने के बाद फिर से प्रधानमंत्री चुने गए

पॉलिटिकल करियर

आरबीआई गवर्नर, वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के पद पर रहे मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता के तौर पर जाने जाते हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. करने वाले मनमोहन सिंह ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन विभिन्न पदों पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।

साल 1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर पांच सालों तक रहे जिसके बाद उन्हें 1990 में प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार बना दिया गया। इसके बाद जब पी वी नरसिंहराव पीएम बनें, तो उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह को 1991 में वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया।

मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय के सचिव, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। साल 2004 से 2014 के बीच यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार में वे प्रधानमंत्री पद पर रहे।

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