Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं'-दुष्यंत कुमार. - श्रीनारद मीडिया

‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं’-दुष्यंत कुमार.

‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं’-दुष्यंत कुमार.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

‘सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए’। महान गजल सम्राट दुष्यंत कुमार ने सामाजिक ढांचे की खामियों का कुछ इसी अंदाज में मनन-चिंतन किया था। हिंदू कविता और गजल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता उन्हें मिली, वह शायद किसी को नहीं मिल पाई। आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था। दो दिन पहले ही उनकी धर्मपत्नी राजेश्वरी देवी दुनिया को अलविदा कह गईं।

दुष्यंत कुमार का जन्म एक सितंबर 1933 को बिजनौर के गांव राजपुर नवादा में जमींदार परिवार में हुआ था। पिता चौधरी भगवत सहाय शायरी के शौकीन थे और मां रामकिशोरी बातचीत में अलंकारिक भाषा का प्रयोग करती थीं। दुष्यंत की प्रारंभिक पढ़ाई गांव की पाठशाला में हुई। 1948 में उन्होंने नहटौर से हाईस्कूल कर 1950 में चंदौसी मुरादाबाद के एसएम कालेज से इंटरमीडिएट किया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए और हिंदी साहित्य में एमए किया। 30 नवंबर 1949 को सहारनपुर की राजेश्वरी कौशिक से उनका विवाह हुआ।

सुमित्रानंदन पंत को मानते थे द्रोणाचार्य

दुष्यंत ने किरतपुर के एक विद्यालय से अध्यापक की नौकरी शुरू की। बाद में दिल्ली आकाशवाणी में हिंदी वार्ता विभाग में बतौर स्क्रिप्ट राइटर काम किया। 1960 में दुष्यंत का भोपाल तबादला हुआ और आखिरी समय तक भोपाल ही उनकी कर्मस्थली रहा। छायावादी कवि सुमित्रनंदन पंत को उन्होंने द्रोणाचार्य और खुद को एकलव्य माना। इन्हीं से प्रेरित होकर अपना उपनाम ‘परदेशी’ रखा। विवाह के समय निमंत्रण पत्र पर भी दुष्यंत कुमार त्यागी ‘परदेशी’ नाम छपवाया गया। प्रयागराज में उनकी मित्रता कथाकार कमलेश्वर और मार्कंडेय से हुई। 44 साल की उम्र में 30 दिसंबर 1975 की रात हार्टअटैक के चलते वह दुनिया को अलविदा कह गए।

मलबे में मिट रही हैं यादें

महान गजलकार दुष्यंत कुमार देशभर में विख्यात हैं, लेकिन उनके अपने गांव और शहर में उनकी यादें मिटती जा रही हैं। राजपुर नवादा गांव में उनकी खंडहरनुमा हवेली है। दीवारों और छत से गिरते मलबे में अनमोल यादें मिटती जा रही हैं। हवेली में दो मुख्य द्वार, भीतर कड़ीनुमा पांच कमरे, आंगन और छत पर एक कमरा बना है। एक जर्जर कमरे में दुष्यंत कुमार का ग्रामोफोन, हारमोनियम, बाजा टूटी-फूटी हालत में पड़ा है। कमरे में कुछ पुस्तकें जंग लगे संदूक में तो कुछ इधर-उधर बिखरी पड़ी हैं।

पूर्व डीएम ने दिखाई थी दिलचस्पी

करीब तीन वर्ष पहले तत्कालीन डीएम अटल राय ने दुष्यंत कुमार की हवेली को संग्रहालय के रूप में विकसित करने और दुष्यंत स्मृति द्वार बनवाने की बात कही थी। संग्रहालय के लिए दुष्यंत कुमार के पुत्र आलोक त्यागी ने भी सहमति दी थी। संग्रहालय तो बना नहीं, स्मृति द्वार का निर्माण भी अधर में है।

दुष्यंत कुमार की जन्मतिथि में मतभेद

दुष्यंत की पुस्तकों में उनकी जन्मतिथि 01 सितंबर 1933 लिखी है, लेकिन कुछ अभिलेखों में जन्मतिथि 27 सितंबर 1931 दर्शाई गई है। जन्मतिथि को लेकर यहां किसी के पास पुष्ट जानकारी नहीं है।

बचपन में झोला भाइयों की मौत का दंश

दुष्यंत के पारिवारिक नजदीकी अतुल त्यागी बताते हैं कि महज 16 साल की आयु में दुष्यंत के बड़े भाई महेंद्र की मृत्यु हो गई। इस घटना पर दुष्यंत ने ‘आघात’ कहानी भी लिखी। बड़े भाई प्रेम नारायण की मौत भी जवानी में ही हो गई। कहानी और कविता में उनकी सृजनशीलता सातवीं कक्षा से आरंभ हो गई थी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!