अरुण जेटली के कारण ही एक हुए थे CM नीतीश और PM मोदी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अरुण जेटली के जन्‍मतिथि के अवसर पर विशेष.

अरुण जेटली (Arun Jaitley) का बिहार की सियासत से बड़ा नजदीकी रिश्‍ता रहा। राज्‍य की सियासत में एक ऐसे बड़े बदलाव की वजह वे बने, जिसका असर राष्‍ट्रीय फलक तक महसूस किया गया। बिहार की राजनीति में यह बदलाव इतना बड़ा साबित हुआ कि इसने नीतीश कुमार, लालू यादव, तेजस्‍वी यादव, तेज प्रताप यादव, सुशील कुमार मोदी सहित तमाम बड़े नेताओं को सीधे तौर पर प्रभावित किया। दरअसल,

भाजपा में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर नरेंद्र मोदी के उभार के बाद बिहार के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) ने अपना रास्‍ता अलग कर लिया था। अरुण जेटली के जन्‍मतिथि के अवसर पर आज यहां हम उस बात का जिक्र करेंगे, जिसके चलते नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) एक मंच पर आ सके।

नीतीश कुमार और जेटली के बीच रहे निकट संबंध

नीतीश कुमार और अरुण जेटली की दोस्‍ती तब से थी, जब नीतीश बिहार का मुख्‍यमंत्री भी नहीं बने थे। यह दोस्‍ती तब भी बरकरार रही, जब नीतीश कुमार ने अपना रास्‍ता भाजपा से अलग कर लिया। कहा तो यह भी जाता है कि नीतीश कुमार को पहली बार बिहार का मुख्‍यमंत्री बनाने में भी जेटली का अहम रोल रहा। यह मसला सन 2000 का है, जब नीतीश पहली बार सात दिनों के लिए सीएम बने थे। वे तीन मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक सीएम रहे।

कुछ रिपोर्टों में यह दावा किया जाता है कि तब बिहार में एनडीए के नेता और मुख्‍यमंत्री पद के लिए उम्‍मीदवार के तौर पर नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बनाने में जेटली की भूमिका अहम रही। जेटली का यह कदम कितना महत्‍वपूर्ण था, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि तब भाजपा तो दूर जदयू में भी इस पर पूरी तरह सहमति नहीं थी। और तो और जार्ज फर्नाडीस भी इस पर पूरी तरह सहमत नहीं थे। हालांकि ऐसी रिपोर्टों की प्रामाणिकता पूरी तरह स्‍पष्‍ट नहीं है, लेकिन नीतीश को गढ़ने में जेटली की भूमिका को लेकर कोई संशय भी नहीं है।

आखिरी वक्‍त तक कायम रही दोनों की दोस्‍ती

नीतीश कुमार और अरुण जेटली की दोस्‍ती आखिरी वक्‍त तक कायम रही। जेटली के निधन पर बिहार में दो दिनों का राजकीय शोक घोषित किया गया। सात दिनों के मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार के इस्‍तीफे के बाद बिहार में फिर से राबड़ी देवी के नेतृत्‍व वाली राजद की सरकार बन गई थी। इसके बाद फरवरी 2005 में चुनाव हुआ तो भाजपा और जदयू साथ होकर तो चुनाव लड़े, लेकिन मुख्‍यमंत्री पद के लिए किसी का चेहरा घोषित नहीं किया। इस चुनाव में किसी दल या गठबंधन को स्‍पष्‍ट बहुमत नहीं मिल सका।

तत्‍कालीन राज्‍यपाल बूटा सिंह की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने राष्‍ट्रपति शासन लगा दिया। इसी के साथ दोबारा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई। कहा जाता है कि इसमें लालू यादव का जबर्दस्‍त दबाव था। बहरहाल, महज कुछ महीनों के बाद बिहार में दोबारा विधानसभा चुनाव कराए गए। इन चुनावों से पहले नीतीश कुमार को मुख्‍यमंत्री उम्‍मीदवार के तौर पर घोषित किया गया। इसमें भी अरुण जेटली की अहम भूमिका रही।

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को एक मंच पर लाए

नीतीश कुमार की पार्टी भाजपा के साथ अटल-आडवाणी युग के दौरान जुड़ी थी। जब भाजपा के राष्‍ट्रीय नेतृत्‍व में नरेंद्र मोदी का उभार शुरू हुआ तो नीतीश कुमार की भाजपा से दूरी बढ़ने लगी। इस दौरान भाजपा और जदयू के बीच कई अप्रिय प्रसंग आए और आखिरकार जून 2013 में दोनों पार्टियों का संबंध टूट गया। इसके बाद भी राजद के बाहरी समर्थन के सहारे नीतीश कुमार की सरकार चलती रही। 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देकर जीतन राम मांझी को कुर्सी सौंप दी। 2015 में जदयू लालू यादव की पार्टी राजद के साथ चुनाव लड़ी और नीतीश कुमार फिर से मुख्‍यमंत्री बने।

इसी सरकार में पहली बार लालू यादव के दोनों बेटों तेजस्‍वी और तेज प्रताप यादव की भागीदारी हुई। तेजस्‍वी यादव उपमुख्‍यमंत्री तो तेज प्रताप यादव स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री बने। हालांकि, लालू की पार्टी से गठबंधन नीतीश कुमार के जदयू को कभी रास नहीं आया। ऐसे हालात में अरुण जेटली वह माध्‍यम बने, जिसके सहारे नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के एक मंच पर आने का मार्ग प्रशस्‍त हुआ। नीतीश कुमार ने एक दिन अचानक चौंकाते हुए मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा दे दिया और उसी दिन शाम होते-होते सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया। 27 जुलाई 2017 से अब तक बिहार में जदयू और भाजपा का गठबंधन चल रहा है।

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