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समय है सतर्क होने का.... - श्रीनारद मीडिया

समय है सतर्क होने का….

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लखनऊ में पब जी खेलने से रोकने पर बेटे द्वारा मां की हत्या की घटना से समाज को होना होगा सचेत, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए…..

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

त्वरित टिप्पणी
✍️गणेश दत्त पाठक

लखनऊ में पीजीआई इलाके में एक 16 वर्षीय बेटे द्वारा पबजी खेलने से रोकने पर माता के हत्या का मामला सामने आया है। समाज में प्रतिदिन हजारों घटनाएं होती हैं लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जो समाज में बढ़ती विकृति की सूचक होती हैं। ऐसी घटनाएं सतर्क करती हैं। ऐसी घटनाएं समाज को मंथन पर विवश करती हैं। ऐसी घटनाओं को देखकर अगर समय रहते समाज सचेत नहीं हो पाता है तो परिणाम भयंकर होते हैं। लखनऊ की घटना मार्मिक ही नहीं, गंभीर भी है। जिसे सिर्फ महज एक दुर्घटना के तौर पर नहीं लिया जा सकता है। इस दुर्घटना पर पर्याप्त मंथन की मांग करता समय दिख रहा है।

वर्तमान दौर डिजिटल क्रांति का है। अभी 4 जी का दौर चल रहा है। 5 जी का दौर आनेवाला है। हर युवा के हाथ में एंड्रॉयड फोन आ जा रहा है। माता पिता बच्चों को खुश रखने के लिए मोबाइल खुशी खुशी सौंप रहे हैं। उनकी जिम्मेदारी सिर्फ मोबाइल सौंपने तक रह रही है। उसके बाद लाडले मोबाइल का सदुपयोग कर रहे हैं या दुरुपयोग, उस पर ध्यान देने की जरूरत माता पिता नहीं समझते हैं।

मोबाइल पर उपलब्ध इंटरनेट अथाह जानकारियों का खजाना है। कुछ जानकारियां लाभदायक है तो कुछ बेहद खतरनाक। मोबाइल हाथ में आते ही कुछ लाडले फिल्मों की तरफ भागते हैं तो कुछ गेम की तरफ। ऐसे बहुत कम बच्चे होते हैं, जो मोबाइल का सदुपयोग के प्रति सचेत होते हैं। माता पिता की उदासीनता और नजरंदाज़ी के चलते मोबाइल के दुरुपयोग की कुप्रवृतियां बच्चों के बीच घुसपैठ करने लगती है। धीरे धीरे वे लत की गिरफ्त में आने लगते हैं। फिर वह लत इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि मां का ममतामई स्वरूप भी लत में बाधक दिखता है और उस बाधा को हटाने के लिए अपना लाडला मां को गोलियों से बेध डालता है। फिर मां के शव को तीन दिन तक घर में रखता है। होटल से खाना मंगा कर खाता है। कोई दुख नहीं कोई पछतावा नहीं। सावधान! समाज हम बेहद गलत रास्ते पर जा रहे हैं। ठहरिए, सोचिए, मनन कीजिए, मंथन कीजिए। इसके पहले की बहुत देर हो जाए।

निसंदेह मोबाइल ने हमारी जिंदगी को सहज और सुविधाजनक बनाया है लेकिन मोबाइल की बढ़ती लत विशेषकर युवाओं के लिए बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंचती दिखाई दे रही है। निश्चित तौर पर समस्या बढ़ती जा रही है। इसलिए समय रहते सार्थक प्रयास कर लेने चाहिए। अन्यथा 5 जी के दौर में हो सकता है कि समाज में इंसानियत, ममता, करुणा, दया, स्नेह जैसे शब्द अपने अहमियत को खो दें।

निश्चित तौर पर मोबाइल की लत संबंधी समस्या के समाधान के लिए केवल सरकार या अन्य व्यवस्थाओं की तरफ देखना नासमझी होगी। प्रयास सरकार, समाज हर स्तर पर होने चाहिए। सबसे पहला प्रयास व्यक्तिगत स्तर पर होना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों में तथा अन्य जगहों पर इस संदर्भ में जागरूकता अभियान चलने चाहिए। फिर भी इस विकट समस्या के समाधान के लिए सर्वप्रथम पारिवारिक स्तर पर प्रयास करने होंगे। युवाओं के मानसिक रूप से विकसित और परिपक्व होने के पहले मोबाइल दिए ही न जाएं। यदि ऑनलाइन पढ़ाई या अन्य मजबूरियों के चलते मोबाइल देना जरूरी हो तो परिवार के सदस्य बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल पर सदैव सतर्क नजर रखें। यदि मोबाइल में गेम आदि खेलने का लत लगता दिखे तो तुरंत परिवार सतर्क हो जाए तथा बच्चों को समझाने के साथ अन्य गतिविधियों में उन्हें व्यस्त रखने का प्रयास करें। बच्चों द्वारा एकांत में मोबाइल के इस्तेमाल पर नजर रखना, परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी बन जानी चाहिए।

आज के दौर में परिवार का हर सदस्य मोबाइल पर व्यस्त दिखता है। बहुत जरूरी है कि परिवार में संवाद के दौर को चलाया जाए। खाना खाते समय और अन्य समय बच्चों के साथ खुल कर बातचीत किया जाए। परिवार में संवाद की कमी के भयंकर दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं जिससे पारिवारिक रिश्तों का प्रेम बंधन भी नकारात्मक तौर पर प्रभावित हो जा रहा है।

परिवार के स्तर पर बरती जानेवाली छोटी छोटी सावधानियां बेहद सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इसलिए समाज को सचेत होकर लखनऊ की मार्मिक घटना से सीख लेना चाहिए। निश्चित तौर पर पारिवारिक और व्यक्तिगत स्तर पर सटीक निगरानी कमाल दिखा सकती है। इसलिए सोचिए मत! तुरंत परिवार का हर सदस्य एक्शन में आए।

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