उसका सच है..सच है..औऱ यही सच है।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

रूडी के यहां एंबुलेंस का मिलना और उनकी थू-थू होना विशुद्ध दबंगई और मूर्खता की कहानी है। सांसद निधि से केवल अनुशंसा होती है, मालिकाना नहीं मिलता। वे एंबुलेंस पंचायत में या कलेक्टरेट में या किसी मैदान में खड़ी रहतीं (आप एक तस्वीर में जो मैदान में एंबुलेंस देख रहे हैं, वह दरभंगा में बेंता ओपी में खड़े एंबुलेंस की है। उसे हवाई सांसद कीर्ति झा के समय खरीदा गया था। 35 लाख की लागत वाली हाई-फाई एंबुलेंस बिना ड्राइवर और तेल के बर्बाद हो गयी), जैसा कि सभी जिलों में होता है। रूड़ी को उसे अपने घर या दफ्तर पर खड़ा करने का अधिकार नहीं।

एंबुलेंस के ड्राइवर, पेट्रोल औऱ उसकी देखभाल का जिम्मा सरकार (य़ह सिस्टम नाम की अबूझ चीज है) पर है। जिस सरकार में एक टोंटी बदलवाने या जीप का एक नट बदलवाने में तीन से छह महीने लगें, उसमें ये एंबुलेंस कौन चलवाएगा?

आप पूछेंगे तो फिर दोषी कौन? दोषी आपका सिस्टम/सरकार/नौकरशाही/डीएम/नेता इत्यादि हैं। दरभंगा या किसी भी सिस्टम के डीएम के पास इतनी फाइलें होती हैं कि वह अगर सबको देखे, तो दिन के 24 घंटे भी कम पड़ें। एंबुलेंस चाहिए ही किसे, ग्रामीणों को या शहरियों को–लेकिन, इस महामारी के पहले किसी ने पूछा या ध्यान भी दिया कि मैदान में एंबुलेंस क्या कर रही है। सांसद ने अनुशंसा कर दी, उसके बाद पेट्रोल और ड्राइवर का मासिक देना, उसे मेंटेन रखना जिल जिला प्रशासन का काम है, वह अगर कुछ भी करता तो दरभंगा या बिहार का कोई भी जिला दोज़ख क्यों बना होता?

अगर इस सिस्टम को जाल से मुक्त किया जाए (जैसा महामारी के समय होता है, ऑडिट का उतना बखेड़ा नहीं रहता, तो फिर आपदा में अवसर तलाशा जाता है। पिछली बार जिस क्वारंटाइन सेंटर में लाखों खर्च हुए, उनकी कहानी पता कीजिए, इस बार भी कागजों पर ढेर सारे कम्युनिटी किचन और सेंटर्स चल रहे हैं, नीतीश चा मास्क बांट रहे हैं, ज़मीन पर उतरिए और पता कीजिए कि स्थिति क्या है) तो क्या होता है, बिहारियों से अधिक कौन जानता है…

बिहार के साथ चमत्कार हुआ यह है कि यहां सिस्टम नाम का कोई सामान ही नहीं बचा है। भ्रष्टाचार तो हम भारतीयों का भूषण है, लेकिन हरेक राज्य में कम से कम एक शहर है, कुछ उद्योग है, कुछ पर्यटन के लायक स्थल हैं, बिहार ने इन सब से छुटकारा पा लिया है। यहां पिछले 30 वर्षो में केवल और केवल लूट हुई है, इतनी अधिक कि बिहारियों का नैतिक पतन अब सीमातीत हो चुका है। दूसरे राज्यों में भी लूट है, लेकिन वहां 10 फीसदी से 60 फीसदी तक काम हो जाता है, बिहार में 100 फीसदी विशुद्ध लूट है।

फिर आप पूछेंगे कि उपाय क्या है? उपाय दो ही हैं। अगले 10-20 वर्षों में बिहार इस अराजकता से पूर्णतः ध्वस्त हो जाएगा और फिर नव-निर्माण हो या फिर वहां राजनीतिक चूतियापे की जगह सामाजिक क्रांति की शुरुआत की जाए।

पुनश्चः जो बिहारी #मिलेनियल पप्पू जादो पर लहालोट हो रहे हैं, नाच रहे हैं, उनको एक बार गूगल करना चाहिए कि पप्पू मधेपुरा का सांसद कब से है, पप्पू का इतिहास-भूगोल क्या है, पप्पू का वर्तमान अपराधी शहाबुद्दीन के बेटे के साथ गलबंहियां कर रहा है, वही उसका सच है..सच है..औऱ यही सच है।

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