जय प्रकाश बाबू का सपना अभी अधूरा है….
संपूर्ण क्रांति के जयप्रकाश नारायण के सपने को पूरा करने के लिए अभी सार्थक प्रयासों की है दरकार
जयप्रकाश नारायण की जयंती पर विशेष आलेख
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया :
स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर विचारक जय प्रकाश नारायण ने भारत को लेकर अनेकानेक सपने देखे थे। वह सपना स्वतंत्रता का था, वह सपना सामाजिक न्याय का था, वह सपना विकेंद्रीकृत व्यवस्था का था, वह सपना समावेशन का था, वह सपना लोकतांत्रिक मर्यादा का था, वह सपना नैतिक मूल्यों का था। स्वतंत्रता प्राप्त कर लेने के बावजूद जब राष्ट्र तत्व के विकास को सतही धरातल पर जय प्रकाश बाबू ने महसूस किया तो सम्पूर्ण क्रांति की हुंकार कर बैठे। पद का तो कभी मोह रहा नहीं उन्हें, लेकिन प्रयास में कोई कमी नहीं रखी, उनकी बस ख्वाहिश इतनी ही थी कि सत्ता पर कब्जा नहीं अपितु लोगों का नियंत्रण सत्ता पर जरूर हो जाए परंतु वास्तविकता यहीं है कि उनके सपने पूरे नहीं हो पाए। आज भी जब जब जयप्रकाश बाबू की बात आती है तो महसूस होता है कि उनकी आत्मा व्यथित ही होगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों से विशेष तौर पर प्रभावित भारतीय इतिहास में दो विभूतियां ही दिखती हैं। जिसमें एक थे विनोबा भावे और दूसरे थे जयप्रकाश नारायण। जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी तो गांधीजी के विचारों से कुछ ज्यादा हद तक ही प्रभावित थी। चाहे वो बात विकेंद्रीकरण की हो या आत्मनिर्भरता की, जयप्रकाश नारायण सदैव गांधी जी के विचारों का अनुसरण करते ही दिखाई देते हैं। जयप्रकाश नारायण राजनीतिक व्यवस्था के लक्ष्य के तौर पर मानवीय प्रसन्नता को सुप्रतिष्ठित ही करते दिखाई देते हैं। राजनीतिक तंत्र में नैतिकता के समावेश को वे व्यवहारिक धरातल पर लाने के प्रबल इच्छुक थे। लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में आम जनता के प्रसन्नता के प्रति क्या कोई प्रयास किसी भी स्तर पर दिखाई देता है? शायद नहीं!
जब देश स्वतंत्र हुआ तो सबसे बड़ी दरकार राष्ट्रीयता के भाव के उत्पन्न करने की थी। लेकिन यह हो नहीं पाया। राष्ट्रीयता की भावना के विकास नहीं होने के कारण जिस ऊर्जस्वित प्रयास की आवश्यकता राष्ट्र के विकास के लिए चाहिए थी, वह उपलब्ध हो ही नहीं पाई। परिणाम हुआ कि कई सारी समस्याएं सिर्फ समस्याएं ही बनी रह गईं। समाधान का कोई सार्थक प्रयास नहीं हो पाया तो उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया। इस संपूर्ण क्रांति के विविध आयाम थे। इस संपूर्ण क्रांति में उन्होंने विशेष तौर पर सात क्रांतियों को समाहित किया। जिसमें राजनीतिक क्रांति, सामाजिक क्रांति, शैक्षिक क्रांति, आध्यात्मिक क्रांति, सांस्कृतिक क्रांति, बौद्धिक क्रांति और आर्थिक क्रांति समाहित थे। इस संपूर्ण क्रांति का मूल उद्देश्य स्वतंत्रता को हर भारतवासी के व्यक्तित्व में समाहित कर देना था। लेकिन वास्तविक धरातल पर उनका यह सपना भी अधूरा ही दिखाई देता है।
जयप्रकाश बाबू राष्ट्रीय एकता के तत्व को बेहद तवज्जो देते थे। वे धार्मिक अंधविश्वास के मुखर विरोधी थे। उनका मानना रहता था कि वैज्ञानिक सोच और तार्किक दृष्टिकोण ही राष्ट्र के एकीकरण के लिए आवश्यक आधार तैयार कर सकते हैं। यहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही लोकतांत्रिक मर्यादाओं को भी सम्मान दिलाएगा। लेकिन आज भी धार्मिक मसलों पर सोच के मामले में अंधविश्वासों पर ही जोर दे दिया जाता है। ऐसे में जयप्रकाश बाबू का राष्ट्रीय एकीकरण का सपना अधूरा ही दिखता है ।
जयप्रकाश नारायण शांति के प्रबल पैरोकार थे। उनका यह स्पष्ट मत था कि जब सत्ता बंदूक की गोली के बल पर हासिल की जाती है तो वह मुठ्ठी भर लोगों के दायरे में सिमट जाती है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के सुचारू संचालन में शांति और संवाद को जयप्रकाश बाबू ने विशेष महत्व दिया था। लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में शांति और संवाद हासिये पर ही दिखाई देते हैं। जिससे जयप्रकाश बाबू का सपना अधूरा ही दिखाई देता है।
जयप्रकाश नारायण लोकतंत्र के भीडतंत्र वाले स्वरूप को देख विचलित हो जाते थे। उनका मानना था कि देश के युवाओं के विचार को रचनात्मक और सृजनात्मक दिशा देने से उनकी सोच में राष्ट्र तत्व को सृजित किया जा सकता है। परस्पर विचार मंथन, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तार्किक सोच ही लोकतंत्र को भीडतंत्र के आगोश से आने से बचा सकती है। आज देश में जनता तकनीकी सुविधाओं से लैस हैं। ऐसे में सोच का प्रगतिशील होना आवश्यक है। लेकिन आज हम कई मौकों पर देखते हैं कि रूढ़िवादी सोच का दायरा फैला हुआ दिखाई देता हैं।
जयप्रकाश नारायण समाज के अंतिम बिंदु पर बैठे व्यक्ति का अधिकतम कल्याण होते देखना चाहते थे। समावेशन यानी हर व्यक्ति के विकास के दृश्य को देखने के जयप्रकाश बाबू बेहद आकांक्षी थे। सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय, आर्थिक न्याय की उनकी संकल्पना समावेशन में ही निहित दिखाई देती थी। उनकी आत्मनिर्भरता और विकेंद्रीकरण के प्रति विशेष आग्रह भी समाज के इसी समावेशन की तरफ ही लक्षित दिखाई देती थी। लेकिन हकीकत यह भी है कि भारतीय संदर्भ में समावेशन के लक्ष्य को पाने के लिए अभी लंबा सफर तय करना है।
जयप्रकाश नारायण ने जिस भारत का सपना देखा था वह भारत अभी हकीकत में काफी दूर दिखाई देता है। लेकिन ऐसा नहीं कि जयप्रकाश नारायण के सपनों का भारत अस्तित्व में नहीं आ सकता है। जयप्रकाश बाबू के सपनों का भारत बनाने के लिए आवश्यकता महज कुछ संवेदनशील प्रयासों की है। जो नामुमकिन तो कतई नहीं हैं..
यह भी पढ़े
बिहार के 4 लाख नियोजित शिक्षकों मिलेगा राज्यकर्मी का दर्जा,कैसे?