जलियांवाला बाग नरसंहार दिवस: ब्रिटिश राज के क्रूरता की पराकाष्ठा

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जब भी 13 अप्रैल की तारीख आती है, अंग्रेजों की निर्दयता की कहानी फिर से ताजा हो उठती है। उस घटना को आज 105 साल बीत चुके हैं। लेकिन जख्म आज भी हरे हैं।

वह दिन बैसाखी का था और अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के निकट स्थित जलियाँवाला बाग में रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक अंग्रेज अफसर ने बिना किसी कारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दीं जिसमें 1000 से अधिक लोग मारे गये और 2000 से अधिक लोग घायल हो गये। इस घटना के बाद भारतीय समाज में आक्रोश उत्पन्न हो गया।

13 अप्रैल 1919 को हुआ जलियाँवाला बाग हत्याकांड अंग्रेज शासन की क्रूरतम घटनाओं में से एक है। यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह यह जघन्य हत्याकांड ही था। कहा जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी थी। बाद में ब्रिटिश सरकार ने इस घटना पर अफसोस भी जताया था।

इस घटना के संबंध में उल्लिखित तथ्यों के अनुसार, अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची लगी है। ब्रिटिश राज के अभिलेखों में उल्लेख मिलता है कि इस घटना में 200 लोग घायल हुए थे और 379 लोग शहीद हो गये थे। इनमें 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक छह सप्ताह का बच्चा था। हालांकि कहा जाता है कि इस हत्याकांड में 1000 से अधिक लोग मारे गये थे और 2000 से अधिक लोग घायल हो गये थे।

  • इसका कारण रोलेट एक्ट को बताया जाता है। भारतीयों के खिलाफ ये अंग्रेजों का ‘काला कानून’ था। ‎Rowlatt Act 1919 लागू होने के बाद की सिलसिलेवार घटना कुछ इस प्रकार रही-
  • महात्मा गांधी ने 6 अप्रैल, 1919 से एक अहिंसक ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ शुरू किया।
  • 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो प्रमुख नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को गिरफ्तार कर लिया गया, जिससे अशांति फैल गई। पूरे देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
  • कानून के खिलाफ इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने के लिए अंग्रेजों ने मार्शल लॉ लागू किया। ब्रिगेडियर जेनरल डायर को पंजाब में कानून व्यवस्था संभालने का आदेश दिया गया। उसे जालंधर से अमृतसर बुलाया गया।

उस दिन हुआ क्या था?

उस दिन बैसाखी थी। जलियाँवाला बाग में एक सभा रखी गई थी जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में उस समय कर्फ्यू लगा हुआ था फिर भी बहुत से लोग बैसाखी का मेला देखने अपने परिवार के साथ बाहर निकले हुए थे। इस दौरान जब वहां हो रही सभा पर नजर गई तो कई लोग वहाँ शामिल हो गये। जलियाँवाला बाग में उस समय काफी रोड़ियां पड़ी हुई थीं जिन पर नेता खड़े होकर भाषण दे रहे थे तभी ब्रिगेडियर जनरल डायर वहाँ पहुँचा और यह सब देखा तो उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।

जनरल डायर के साथ 90 ब्रिटिश सैनिक थे। नेताओं ने राइफलें लेकर वहाँ पहुँचे सैनिकों को देखा तो लोगों से शांत बैठे रहने को कहा लेकिन जनरल डायर वहाँ कुछ और ही सोच कर आया था उसने सैनिकों से कहा कि चारों ओर घेरा बना लो और उसके बाद उसने फायरिंग के निर्देश दे दिये। सैनिकों ने मात्र 10 मिनट के अंदर 1650 राउंड गोलियाँ चलाईं।

गोलियां चलते ही वहाँ अफरातफरी की स्थिति हो गयी और लोग अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे। इस दौरान हुई भगदड़ में भी कई लोग मारे गये। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था और वहाँ तक जाने या बाहर निकलने के लिए सिर्फ एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था इसलिए फायरिंग के समय कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद कुएं में कूद गए। लेकिन अधिकतर लोगों के ऐसा करने से कुआं देखते ही देखते लाशों से भर गया। उस समय चूंकि शहर में क‌र्फ्यू लगा हुआ था इसलिए घायलों को इलाज के लिए कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने वहीं तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।

1997 में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी और 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंने लिखा कि “ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।” आज भी इस घटना में मारे गये लोगों के प्रति देश में दुःख और हमदर्दी है।

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