मैला आँचल’ के जापानी अनुवाद का ओसाका विश्वविद्यालय में लोकार्पण.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जापान में ओसाका विश्वविद्यालय के मिनोह सेम्बा कैंपस में फणीश्वरनाथ रेणु के कालजयी उपन्यास ‘मैला आँचल’ के जापानी अनुवाद का लोकार्पण विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर सम्पन्न हुआI इस मौके पर ओसाका विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने दो नाटकों ‘अनारकली’ और ‘भोलाराम का जीव’ का मंचन कियाI और हिंदी फिल्मों के चार गानों और एक हिंदी निबन्ध की प्रस्तुति दीI इन कार्यक्रमों में लगभग सौ विद्यार्थियों ने भाग लियाI

लोकार्पण के साथ-साथ ‘हिंदी से जापानी और जापानी से हिंदी अनुवाद का इतिहास, वर्तमान और समस्याएँ’ विषय पर संगोष्ठी का भी आयोजन किया गयाI इस संगोष्ठी में मिकि यूइचिरो जी ने अनुवाद की समस्यायों पर अपनी बात रखीI डॉ. मोहम्मद मोईनुद्दिन ने जापानी से हिन्दी अनुवाद के इतिहास के चार चरणों और वर्तमान स्थिति पर अपने विचार रखेI प्रोफेसर हिरोको नागासाकी जी ने मशीनी अनुवाद की संभावनाओं और समस्यायों पर विचार व्यक्त कियेI कार्यक्रम के अध्यक्ष एमिरेट्स प्रोफेसर पद्मश्री से सम्मानित तोमिओ मिज़ोकामि जी ने बताया कि वे आजकल अदालत में जाकर अनुवाद कार्य भी करते हैंI

और गूगल ट्रांसलेशन इसका स्थान नहीं ले सकता हैI कार्यक्रम के अगले हिस्से में हिंदी और उर्दू के सम्बन्ध पर ओसाका विश्वविद्यालय के डीन और उर्दू के प्रोफेसर सो यामाने जी ने अपनी बात रखीI और कहा कि अरबी-फारसी शब्दों के बिना हिंदी का इस्तेमाल मुश्किल हैI सुश्री मीनाक्षी गोयल नायर जी ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया और रामधारी सिंह दिनकर, काका हाथरसी और नरेश सक्सेना जी की कविताएँ भी सुनाईंI सुश्री भारती कालरा जी ने भी अपनी स्वरचित दो मार्मिक कविताओं का पाठ कियाI

सबसे पहले कार्यक्रम की शुरुआत में प्रधान कोंसल श्री निखिलेश गिरि जी ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर के वक्तव्यों का पाठ और अपना सन्देश भी दियाI कार्यक्रम में श्री मिकि यूइचिरो जी के अभिन्न मित्र कवि-कथाकार और ओसाका विश्वविद्यालय के पूर्व अथिति प्रोफेसर डॉ. हरजेन्द्र चौधरी जी का लिखित वक्तव्य भी सुनाया गयाI

‘मैला आँचल’ के अनुवाद का श्रमसाध्य कार्य श्री मिकि यूइचिरो जी ने कई वर्षों की अथक मेहनत के बाद पूरा कियाI वे उपन्यास में आए लोकभाषा के शब्दों के अर्थ जानने के लिए पूर्णिया में रेणु गाँव भी गएI उन्होंने इस उपन्यास का अनुवाद आज से पच्चीस साल पहले कर लिया था लेकिन प्रकाशक न मिलने के कारण यह उपन्यास अभी तक प्रकाशित न हो सकाI रेणु जी के बेटे पद्म पराग जी से वे इसके जापानी अनुवाद की लिखित अनुमति भी ले चुके थे और इसके प्रकाशन का इंतजार करते हुए अब उन्हें इसके छपने की आशा कम ही थीI मिकि यूइचिरो जी की मुलाकात पिछले साल जापान में भारत के प्रधान कोंसल श्री निखिलेश गिरि जी से एक कार्यक्रम में हुईI

इस मुलाकात से यह अनुवाद किताब के रूप में हम सबके बीच आ सका हैI इससे पहले मिकि यूइचिरो जी उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ के उपन्यास ‘गिरती दीवारें’ उपन्यास का भी अनुवाद कर चुके हैंI जो काफी पहले ही प्रकाशित हो चुका हैI साहित्य अकादेमी ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद रची गई कविताओं का एक संकलन प्रकाशित किया हैI किताब का नाम है ‘परमाणु बम की छाया में’I इस किताब का अनुवाद मिकि यूइचिरो जी ने अपने भारतीय मित्र डॉ. हरजेन्द्र चौधरी जी के साथ मिलकर किया हैI उनकी इस किताब को दिल्ली सरकार ने अनुवाद की श्रेणी में पुरस्कृत भी किया हैI

सवा चार सौ पन्ने में प्रकाशित ‘मैला आँचल’ के जापानी अनुवाद को और सुंदर बनाने के लिए हिरोशिमा में रहने वालीं प्रसिद्ध चित्रकार सुश्री हीरोको ताकायामा जी ने कुछ चित्र भी इस उपन्यास के लिए बनाएI वे पच्चीस बार भारत जा चुकी हैं और उन्हें भारत से प्रेम हैI भारतीय पृष्ठभूमि के इन चित्रों से यह किताब और भी सुंदर रूप में पाठकों के हाथ आ पहुँचीI

‘मैला आँचल’ का जापानी में नाम रखा गया है ‘दोरोनो सुसो’I इसके नामकरण के पीछे की रोचक और कठिन यात्रा का वर्णन करते हुए मिकि यूइचिरो जी ने लिखा है-
“पहले पहल उपन्यास के शीर्षक ‘मैला आँचल’ को अब तक जापानी भाषा में जो नाम दिया गया है वह ‘होकोरिदाराकेनो मुरा’ अर्थात धूल-धूसरित गाँव है। जापानी अनुवाद में ‘आँचल’ को एक क्षेत्र या इलाक़ा ही समझा गया है। अवश्य यह अशुद्ध अनुवाद तो नहीं फिर भी क्या यह सचमुच संतोषजनक है? अगर कोई हिन्दुस्तानी ‘मैला आँचल’ सुने तो शायद उसके ध्यान में साड़ी के मैले पल्लू की तस्वीर आए। पर ‘धूल धूसरित गाँव’ सुने तो यह तस्वीर मन में किसी आँचल के साथ कभी नहीं उभरती। इस दृष्टि से जापानी शीर्षक ‘होकोरिदाकेनो मुरा’ (धूल धूसरित गाँव) सही नहीं है।

मैला आँचल के पहले खंड के 27वें अध्याय में लेखक ने सुमित्रानंदन पंत की कविता का एक अंश उद्धृत किया है : भारत माता ग्रामनिवासिनी/ खेतों में फैला है श्यामल/ धूल भरा मैला-सा आँचल पंत की इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि साड़ी का जो पल्लू भारत माता फैलाती है वही हमारा धूल-धूसरित गाँव है। अर्थात, उपन्यास का शीर्षक ‘मैला आँचल’ भारत माता का मैला-सा पल्लू तथा भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित एक पिछड़ा जनपद, इन दोनों अर्थ-छवियों से युक्त बहुत ही गूढ़ और रस भरा शीर्षक है।

यदि ‘आँचल’ के दोनों अर्थों से युक्त एक अकेला जापानी शब्द मिल जाए तो वह इस शीर्षक का उत्कृष्ट पर्याय हो सकता है। लेकिन जापानी भाषा में ऐसा कोई शब्द नहीं है। तो क्या लिखा जाए? सटीक शब्द मिलना संभव न हो तो कोई अन्य बेहतर विकल्प खोजा जाना चाहिए। निस्संदेह जापानी पाठकों के मन में शीर्षक देखते ही वैसी समृद्ध तथा सम्पन्न अर्थ-छवि नहीं उभरती, जैसी भारतीय पाठकों ने मन में। पर अनुवाद ऐसा होना चाहिए कि जापानी पाठक रचना में उद्धृत पंत की कविता को पढ़कर समझ जाएँ कि शीर्षक ‘मैला आँचल’ का स्रोत इन पंक्तियों में है।

जापानी पाठकों की सुविधा के लिए अनुवाद को उपन्यास के शीर्षक के रूप में प्रयुक्त शब्द-द्वय ‘मैला आँचल’ और पंत के ‘धूल भरा मैला-सा आँचल’ के लिए केवल एक जापानी शब्द का प्रयोग करना चाहिए। इस मायने में जापानी शीर्षक ‘होकोरिदाराकेनो मुदा’ (धूल-धूसरित गाँव) में बड़ी समस्या है। यानी एक ‘आँचल’ को जापानी में अनुवाद में ‘क्षेत्र’ या ‘गाँव’ और दूसरे ‘आँचल’ को ‘पल्लू’ के समकक्ष रखा जाता है तो ये दो ‘आँचल’ जापानी पाठकों के लिए अलग-अलग शब्द बन जाते हैं और वे कभी नहीं जान पाते कि उपन्यास के नामकरण का स्रोत पंत की कविता की इन पंक्तियों में निहित है। अतः यहाँ उपन्यास के जापानी शीर्षक के लिए ‘होकोरिदाराकेनोमुरा’ (धूल-धूसरित गाँव) की बजाए ‘दोरोनो सुसो’ (मैला पल्लू) शब्दों को चुनना बेहतर है।”

पद्मश्री से सम्मानित हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर तोमिओ मिज़ोकामि जी, ओसाका विश्वविद्यालय की डीन प्रोफेसर ताकेमुरा केइको जी, हिंदी की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हिरोको नागासाकी, अध्यापक तोरु ताक जी, जापान में भारत के प्रधान कोंसल श्री निखिलेश गिरि जी, प्रसिद्ध चित्रकार सुश्री हीरोको ताकायामा जी, महा वाणिज्य दूतावास में कोंसल श्री संजीव जैन जी, कवयित्री सुश्री मीनाक्षी गोयल नायर जी ने ‘मैला आँचल’ के जापानी संस्करण का लोकार्पण कियाI कार्यक्रम का संचालन डॉ. वेदप्रकाश सिंह ने कियाI

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