वैकल्पिक ग्रामीण जीवन शैली के विभिन्न पहलुओं पर वृहत प्रयोगधर्मी पहल है जीविका आश्रम.
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भारतीय व्यवस्थाओं के बीज-संकलन एवं वैकल्पिक भारतीय जीवन शैली विषयक प्रायोगिक पारिवारिक पहल।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जीविका आश्रम, प्राचीन समय में ऋषियों द्वारा संचालित आश्रमों एवं गुरुकुलों से प्रेरणा प्राप्त, उन्हीं आश्रमों एवं गुरुकुलों की तरह का एक पारिवारिक प्रायोगिक प्रयास है। यह आश्रम, व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में वैकल्पिक भारतीय-ग्रामीण-जीवनशैली के विभिन्न पहलुओं पर वृहत प्रयोगधर्मी पहल है।
आश्रम के मूल में भारतीयता यानि भारतीय ज्ञान-विज्ञान, भारतीय चित्त-मानस, भारतीय सभ्यता-संस्कृति-परम्परओं, एवं विभिन्न भारतीय व्यवस्थाओं के बीज-संकलन एवं संवर्धन की दिशा में अपनी तरह के विस्तृत अध्ययन एवं शोध का प्रयास है। आश्रम, अध्ययन, शोध एवं अपने तरह के प्रलेखन, आदि के माध्यम से वर्तमान (विकास, आधुनिक विज्ञान, आदि के) प्रलय काल में भारतीयता एवं भारतीय व्यवस्थाओं के बीज-संरक्षण एवं संवर्धन में समर्पित है।
आदरणीय स्वर्गीय श्री रवीन्द्र शर्मा, गुरुजी एवं उनके द्वारा आदिलाबाद, तेलंगाना में स्थापित कला-आश्रम से प्रेरित, यह जीविका आश्रम, सन 2017 में अस्तित्व में आया, जब बसन्त पञ्चमी के अवसर पर उन्होंने इसकी वास्तु-शान्ति कराई, और इसमें प्रवेश कराया। जीविका आश्रम, ग्रामीण कारीगरों और कलाकारों के विशेष सन्दर्भ में, परम्परागत सांस्कृतिक अनुभवों और आधुनिकता की तथाकथित आवश्यकताओं के बीच की खाई पाटने के प्रयास में भी लगा है। यह समाज में कारीगरी-आधारित जीवनशैली का पक्षधर है, एवं उसे समाज में लागू करने में अपने ढंग से कार्यरत है। इस संदर्भ में यह आसपास के क्षेत्र के कारीगरों, कलाकारों एवं कई अन्य समुदायों के साथ काम करता है।
जीविका आश्रम, मध्यभारत क्षेत्र के मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर, विन्ध्य पर्वतश्रृंखला की सुरम्य वादियों में, जबलपुर जिले की ही मझौली तहसील में, तीन ओर पर्वतों से घिरे इन्द्राना गाँव में, प्रकृति की गोद में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक छोटी सी भूमि में स्थापित एक सुरम्य स्थल है। इसके परिसर में स्थानीय क्षेत्र की कई अनूठी और विलक्षण कलाकृतियों से युक्त एक संग्रहालय, अपने विषय से संबंधित पुस्तकालय, कारीगरों के कार्य करने के लिए कार्यशालाएँ, एक प्रार्थना स्थल, आगन्तुकों के निवास हेतु डोरमेट्री, बैठक हॉल, आदि है। आश्रम की संरचना और सम्पूर्ण दर्शन, स्थानीय परम्पराओं और स्थानीय कौशल में रचा-बसा है।
आश्रम, स्थानीय शिल्प, कला परम्पराओं एवं कलाकृतियों का अनूठा भण्डार है। प्राचीन वास्तु और शिल्प में रची-बसी इसकी बनावट इसकी खूबसूरती को और भी अधिक बढ़ाती है।
कुटुम्ब एवं संयुक्त परिवार हमारे जीवन की कितनी महत्वपूर्ण इकाई है, इसको बिना अनुभव के समझ पाना थोड़ा मुश्किल ही है। आज व्यक्तिगत स्वतंत्रता के इस दौर में लोगों को यह समझ पाना मुश्किल है कि वास्तविक स्वतंत्रता तो कौटोम्बिक जीवन में ही है। कुटुम्ब, व्यक्ति की बहुत सारी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को आपस में बाँट कर व्यक्ति को बहुत सारे मामलों में निश्चिंत रहने देता है। यह बहुत कुछ उस पतंग जैसा ही है, जो अपनी डोर के कारण ही आकाश में इतना ऊपर उड़ पाती है। पर, वह यदि उस डोर को ही अपना बन्धन मानने लगे तो वह उड़ ही नहीं पायेगी।
मेरा सौभाग्य था कि जल्द ही यह बात समझ में आ गई। अपने वैवाहिक जीवन के मात्र डेढ़-दो साल ही जबलपुर से दूर पहले प्रयागराज और फिर गुरुग्राम में रहना पड़ा। बाकी लगभग पूरा समय जबलपुर में ही रहना हुआ। अभी इंद्राना में रहते हुए भी एक पैर जबलपुर स्थित घर में ही लटका रहता है।
इस बार बहुत दिनों के बाद पूरे परिवार के साथ बनारस, मिर्जापुर, प्रयागराज की यात्रा हुई। माताजी, पिताजी अभी दो दिन पहले ही उज्जैन, आदि की यात्रा से वापिस लौटे, इसीलिए उनका साथ आना नहीं हो पाया। बच्चों ने अपनी ऊर्जाओं से पूरी यात्रा में किसी तरह की कोई थकान का मौका ही नहीं दिया.