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जोगीरा सा.. रा.. रा.. बा त सब बा..

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श्रीनारद मीडिया‚  गणेश दत्त पाठक‚ सेंट्रल डेस्कः

तनी याद करी लोग उ दौर। शिवरात्रि के साथ ही शुरू हो जात रहे फगुआ के धूम। ढोलक के थाप, मजीरन के तान, अवरी गांव के लोगन के आवाज के बहत त्रिवेणी में उमीर के फासला मिटा के सब केहू के थिरकल। गजबे माहौल बनावत रहे। जिनगी के हर रंग चाहे उ खुशी होखे या गम, चाहे उ उत्साह होखे या निराशा, चाहे उ अपमान होखे या सम्मान, मानव स्वभाव के हर भाव बस एक राग में समा जाव जोगीरा सारारा…..

 

चाहे उ बुढ़वू होखस चाहे जवान, चाहे उ बाबू होखस या भईया, सब केहू मस्ती के समुंदर में असंख्य गोता लगावे लोग। कान्हाजी होखस चाहे रामजी चाहे दुरगा माई। उन्हा लोग के सुमिरन में हर ताल के शान गजब बढ़ जाव। भेदभाव कहां दिखे उहा। सै गो आदमियों के एके को जान दिखे। आपन आसपास के हर जीवन के बस एके गो रौ रहे। उत्सव, उल्लास, उमंग के संग रहे। का माहौल होखे। आत्मा मुग्ध हो जाव। अवरी तन सुगंध से भर जाव। इंसानियत के ऐसन बयार बहे कि हर फसाद भूल के बस होखे जोगीरा सरारा….

 

पहिले एतना अमीरी कहा रहे। तकनीक के एतना जंजाल कहां रहे। ना मोबाइल रहे ना इंटरनेट। ना बिजली रहे ना टेलीविजन। जिनगी के एतना झंझटों कहा रहे। ना एतना वाहन रहे ना एतना गजन। लेकिन जब आवे फागुन त बस होखे जोगीरा सारारा…..

 

आज सब बा। बस सुकून नईखे। मन में विद्वेष भरल बा। गांव में रोड बा। टेलीविजन बा। इंटरनेट बा। मोबाइल बा। मोजैक वाला घर बा। टंकी के पानी बा। बिजली के सुविधा बा। मनोरंजन के हर जतन बा। होली मनता रंग बरसता। पूरी पुआ पाकता। नईखे त बस जोगीरा सारारा…

 

जिनगी में सब आ जाई। खुशी के बहार आ जाई। हर गम के दवा आ जाई। उत्साह के भूचाल आ जाई। निराशा के समूल विनाश हो जाई। भेदभाव अवरी बैर के दूर करे के असरदार टोटका ह ई जोगीरा सारारा…

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