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पत्रकारिता को किसी के दबाव में काम नहीं करना चाहिए- प्रो.प्रसून दत्त सिंह। - श्रीनारद मीडिया

पत्रकारिता को किसी के दबाव में काम नहीं करना चाहिए- प्रो.प्रसून दत्त सिंह।

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी, बिहार में गांधी भवन परिसर के नारायणी कक्ष में हिंदी विभाग के साहित्य सभा द्वारा हिंदी पत्रकारिता दिवस मंगलवार को आयोजित किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे गांधी भवन परिसर के निदेशक व मानवीय एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. प्रसून दत्त सिंह ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा की पत्रकारिता को लेकर युवाओं में सदैव से झुकाव रहा है। पत्रकारिता का असली स्वरूप निरपेक्ष रूप से सामने आता है। पत्रकारिता को किसी के दबाव में काम नहीं करना चाहिए क्योंकि हमारी संस्कृति का ध्येय वाक्य ‘वसुधैव कुटुंबकम’ है, जिसका तात्पर्य है कि पूरा विश्व एक परिवार है।

सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से पूरे विश्व के साथ हम जुड़े हुए हैं अर्थात हम परिवार के सभी सदस्यों के बारे में जानना, समझना चाहते हैं। यही कारण है कि पत्रकारिता मूल रूप से संवाद करने का कार्य करता है। अतः संवाद का विस्तार ही पत्रकारिता है इसलिए संवाद शाश्वत विकल्प है। हिंदी विभाग ने आज हिंदी पत्रकारिता दिवस का आयोजन किया है, आप सभी बधाई के पात्र हैं।

वही हिंदी विभागाध्यक्ष व हिंदी साहित्य सभा के संरक्षक डॉ. अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है और आज से ठीक तीन वर्ष बाद हिंदी पत्रकारिता की 200वीं वर्षगांठ हम सभी मना रहे होंगे। आज के ही दिन पंडित युगल किशोर शुक्ल ने हिंदी का पहला समाचार पत्र ‘उदंत मार्तंड’ निकाला, जिसका धयेय वाक्य था, ‘हिंदुस्तानियों के हित का हेत’। 30 मई 1826 का दिन इसलिए चुना गया कि देवर्षि नारद जी की जयंती जयेष्ठा कृष्णा द्वितीय तिथी को ही थी।

हिंदी की आरंभिक पत्रकारिता में स्वधर्म, स्वदेश, स्वाभिमान, स्वभाषा,स्वराज्य प्रखर रूप से सामने आते हैं, जब अट्ठारह सौ सत्तावन की लड़ाई होती है उसमें भी स्वधर्म और स्वराज केंद्र में होता है। भारतेंदु मंडल के सभी लेखक स्वधर्म की बात करते हैं। आरंभिक पत्रकारिता में भाषा की चेतना है, स्वराज की चेतना है, संस्कृति के प्रति स्वाभिमान है, विरासत के प्रति सम्मान है। भारतेंदु मंडल के कवियों में विचार और आचरण की प्रधानता है।

कहा जा सकता है कि जब तक पत्रकारिता मिशन है, वह इन शब्दों को लेकर आगे बढ़ती है। माना जाता है कि 1857 से 1947 तक की पत्रकारिता ‘मिशन पत्रकारिता’ है।1950 से लेकर 1990 तक की पत्रकारिता ‘प्रोफेशनल पत्रकारिता’ है और सन 2000 के बाद की पत्रकारिता ‘कमीशन आधारित पत्रकारिता’ है। जहां तक पत्रिकाओं के पत्रकारिता की बात है तो जब तक पत्रिकाएं विवाद नहीं खड़ा करती तब तक वह बिकती नहीं है, उन्हे धर्मयुग के काल में लौटना चाहिए। पत्रकारिता का मूल धर्म राष्ट्रहित होना चाहिए।

इससे पहले कार्यक्रम का प्रारंभ सभी प्राध्यापकों ने मां सरस्वती के तैल चित्र पर पुष्प अर्पित कर अपना प्रणाम निवेदित किया।
सभी प्राध्यापकों का स्वागत करते हुए हिंदी साहित्य सभा के अध्यक्ष शोधार्थी मनीष कुमार भारती ने पत्रकारिता के 1826 से लेकर वर्तमान परिदृशय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि-
‘”खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”।

संवाद का विस्तार ही पत्रकारिता है। पत्रकारिता सूचना सामग्री के संकलन, लेखन व प्रकाशन से जुड़ा कार्य है, यह समाचार पत्र, पत्रिका, रेडियो, टीवी के लिए किया जाता है। वहीं इस मौके पर परास्नातक के छात्र घनश्याम, शोधार्थी मुकेश कुमार, अशर्फी लाल, प्रतीक कुमार ओझा, हिंदी साहित्य सभा के सचिव सोनू ठाकुर,रश्मि सिंह ने अपने विचार गंभीरता के साथ व्यक्त किया।

इस अवसर पर सहायक आचार्य डॉ. गरिमा तिवारी, डॉ. गोविंद प्रसाद वर्मा और डॉ. आशा मीणा,परास्नातक के सभी छात्र एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का सफल संचालन शोधार्थी राजेश पाण्डेय ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी अवधेश कुमार ने दिया।

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