मजहबी एकता के लिए पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने दे दिया था बलिदान: गणेश दत्त पाठक
अपने लेखनी से राष्ट्रीय चेतना को जागृत करनेवाले प्रखर पत्रकार और महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी के बलिदान दिवस पर श्रद्धा सुमन किया गया अर्पित
श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):
जरा याद कीजिए, ब्रिटिश हुकूमत के दौर का 1930 का दशक। जब सांप्रदायिकता त्राहिमाम मचा रही थी। ब्रिटिश सत्ता अपने कुत्सित इरादों तले मौन साधे हुई थी। देश में मजहबी तकरार में मानवीय चेतना विलुप्त हो गई थी। पंथ के सर्वश्रेष्ठता के अहंकार में निर्दयता तांडव मचा रही थी। मानवता के रूदन और क्रंदन को कहीं ठिकाना भी नही मिल रहा था।
उस समय एक पत्रकार की लेखनी चले जा रही थी। दैनिक प्रताप के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी अपने लेखों से मानवीय संवेदनाओं को झकझोर रहे थे। प्रताड़ित मानवता को संवेदना की सीख देने के लिए अथक परिश्रम कर रहे थे। उनके आलेख राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में कुछ हद तक सफल भी रहे थे।
लेकिन मजहबी उन्माद में उमड़ी भीड़ को रोकने के प्रयास में गणेश शंकर विद्यार्थी को अपना बलिदान भी देना पड़ा। हिंदू मुस्लिम एकता की बलिवेदी पर मूर्धन्य पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी शहीद हो गए। तारीख थी 25, मार्च 1931, स्थान था कानपुर। ये बातें पाठक आईएएस संस्थान पर महान पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शिक्षाविद् श्री गणेश दत्त पाठक ने शुक्रवार को कही। इस अवसर पर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करनेवाले कई अभ्यर्थी मौजूद रहे।
इस अवसर पर श्री पाठक ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के दौर में गणेश शंकर विद्यार्थी ने निर्भीक पत्रकारिता के क्षेत्र में एक मिसाल कायम किया। कानपुर से प्रकाशित होनेवाले अखबार दैनिक प्रताप के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सत्ता को आइना दिखाने का भरपूर प्रयास किया। उनकी लेखनी ने राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने के संदर्भ में विशेष योगदान दिया।
श्री पाठक ने कहा कि गणेश शंकर विद्यार्थी हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र के उद्घोषकों को आड़े हाथ लेते थे। उनका कहना होता था कि सबकी जन्मभूमि भारत ही है। सबकी मृत्यु भी यहीं होगी। फिर ये मजहबी विवाद क्यों? आज भी देश में सांप्रदायिक घटनाएं देश में सामने आती रहती हैं। ऐसे में मजहबी एकता के प्रबल पैरोकार गणेश शंकर विद्यार्थी का बलिदान संदेश देता दिखता है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
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