भगवान शंकर के पूर्ण रूप  है काल भैरव, पढ़े यह कथा ब्रह्मा का पांचवा मुख किसने काटा 

भगवान शंकर के पूर्ण रूप  है काल भैरव, पढ़े यह कथा ब्रह्मा का पांचवा मुख किसने काटा

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे – मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ। मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ?

इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया – ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है।

यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज्ञों तथा योगों से भजन किया जाता है, सबका दृष्टा वह एक शिव ही हैं। सामवेद- जो समस्त संसारी जनों को भरमाता है, जिसे योगी जन ढूँढ़ते हैं और जिसकी भांति से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे एक त्र्यम्बक शिवजी ही हैं। अथर्ववेद- जिसकी भक्ति से साक्षात्कार होता है और जो सब या सुख – दुःख अतीत अनादी ब्रम्ह हैं, वे केवल एक शंकर जी ही हैं।

विष्णु ने वेदों के इस कथन को प्रताप बताते हुए नित्य शिवा से रमण करने वाले, दिगंबर पीतवर्ण धूलि धूसरित प्रेम नाथ, कुवेटा धारी, सर्वा वेष्टित, वृपन वाही, निःसंग,शिवजी को पर ब्रम्ह मानने से इनकार कर दिया ब्रम्हा-विष्णु विवाद को सुनकर ओंकार ने शिवजी की ज्योति, नित्य और सनातन परब्रम्ह बताया परन्तु फिर भी शिव माया से मोहित ब्रम्हा विष्णु की बुद्धि नहीं बदली।

उस समय उन दोनों के मध्य आदि अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रम्हा का पंचम सिर जलने लगा इतने में त्रिशूलधारी नील-लोहित शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रम्हा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे।

ब्रम्हा की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रम्हा पर शासन करने का आदेश दिया आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नखाग्र से ब्रम्हाजी का पंचम सिर काट डाला भयभीत ब्रम्हा शत रुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए ब्रम्हा और विष्णु दोनों को सत्य की प्रतीति हो गयी और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया।

इसके उपरान्त शिवजी ने उसके भीषण होने के कारण भैरव और काल को भी भयभीत करने वाला होने के कारण काल भैरव तथा भक्तों के पापों को तत्काल नष्ट करने वाला होने के कारण पाप भक्षक नाम देकर उसे काशीपुरी का अधिपति बना दिया फिर कहा की भैरव तुम इन ब्रम्हा विष्णु को मानते हुए ब्रम्हा के कपाल को धारण करके इसी के आश्रय से भिक्षा वृति करते हुए वाराणसी में चले जाओ वहां उस नगरी के प्रभाव से तुम ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे।

शिवजी की आज्ञा से भैरव जी हाथ में कपाल लेकर ज्योंही काशी की ओर चले, ब्रम्ह हत्या उनके पीछे पीछे हो चली| विष्णु जी ने उनकी स्तुति करते हुए उनसे अपने को उनकी माया से मोहित न होने का वरदान माँगा विष्णु जी ने ब्रम्ह हत्या के भैरव जी के पीछा करने की माया पूछना चाही तो ब्रम्ह हत्या ने बताया की वह तो अपने आप को पवित्र और मुक्त होने के लिए भैरव का अनुसरण कर रही है।

भैरव जी ज्यों ही काशी पहुंचे त्यों ही उनके हाथ से चिमटा और कपाल छूटकर पृथ्वी पर गिर गया और तब से उस स्थान का नाम कपालमोचन तीर्थ पड़ गया। इस तीर्थ मैं जाकर सविधि पिंडदान और देव-पितृ-तर्पण करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्या के पाप से निवृत हो जाता है। ॥

श्री भैरव चालीसा ॥ 〰️〰️〰️〰️〰️〰️

दोहा

श्री गणपति गुरु गौरि पद प्रेम सहित धरि माथ । चालीसा वन्दन करौं श्री शिव भैरवनाथ ॥ श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल । श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल ॥जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ॥जयति बटुक-भैरव भय हारी । जयति काल-भैरव बलकारी ॥जयति नाथ-भैरव विख्याता । जयति सर्व-भैरव सुखदाता ॥भैरव रूप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ॥भैरव रव सुनि ह्वै भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ॥शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ॥जटा जूट शिर चंद्र विराजत । बाला मुकुट बिजायठ साजत ॥कटि करधनी घूँघरू बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ॥जीवन दान दास को दीन्ह्यो । कीन्ह्यो कृपा नाथ तब चीन्ह्यो ॥वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्ह्यो वर राख्यो मम लाली ॥धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ॥कर त्रिशूल डमरू शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्श सुयश नहिं थोडा ॥जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्धि नव निधि फल पावत ॥रूप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराललाल दुहुँ लोचन ॥अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोलत ॥रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू केहो काला ॥बटुक नाथ हो काल गँभीरा । श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा ॥करत नीनहूँ रूप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहँ शुभ आशा ॥रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहँ दर्शन पावहिं ॥जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नतहर उमा नन्द जय ॥भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय । वैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥महा भीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय ॥अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । स्वानारुढ़सयचंद्र नाथ जय ॥निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ॥करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ॥देयँ काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटासे मोटा ॥जनकर निर्मल होय शरीरा । मिटै सकल संकट भव पीरा ॥श्री भैरव भूतोंके राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ॥ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपाकरि काज सम्हारयो ॥सुन्दर दास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ॥दोहाजय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार ।कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार ॥

आरती भैरव जी की 〰️〰️〰️〰️〰️〰️

जय भैरव देवा प्रभु जय भैरव देवा ।जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ॥ जय॥तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक।भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥ जय॥वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥ जय॥तुम बिन सेवा देवा सफल नहीं होवे ।चौमुख दीपक दर्शन सबका दुःख खोवे ॥ जय॥तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी ।कृपा करिये भैरव करिये नहीं देरी ॥ जय॥पाव घूंघरु बाजत अरु डमरु डमकावत ।बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ॥ जय॥बटुकनाथ की आरती जो कोई नर गावे । कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ॥ जय॥

यह भी पढ़े

रविवार को करें यह उपाय, कभी नहीं आएगी धन की कमी

सड़क दुर्घटना में घायल युवक की मौत सूचना मिलते ही परिजनों से मिलने पहुंच राजद नेता रविन्‍द्र राय 

बदमाशों ने की युवक की गला रेतकर और चाकूओं से गोदकर किया हत्या

मौलाना अब्दुल अजीज खान थे एकता और भाईचारे के प्रतीक -प्रो डॉ वलीलुल्लाह

कुशल शासक शिवाजी ने ही सच्चे अर्थों में स्वराज्य दिया.

यूक्रेन बॉर्डर पर रूस की बढ़ी गतिविधियां,क्यों?

महेंद्र मिसिर को याद करने का सर्वश्रेष्ठ अवसर है उपन्यास- हरिनारायण चारी मिश्र.

इसरो ने अपने उपग्रहों को लॉन्च करने हेतु पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया है।

Leave a Reply

error: Content is protected !!