कालाजार उन्मूलन : आईआरएस प्रथम चक्र में कुल लक्षित आबादी के 61 प्रतिशत लोग हो चुके लाभांवित
कालाजार से बचाव को 15 जुलाई से किया जा रहा सिंथेटिक पाइरोथाइराइड का छिड़काव:
बरसात के बाद मलेरिया, कालाजार रोग बढ़ने की रहती है संभावना:
प्रथम चक्र में 66 दिनों तक किया जाना है छिड़काव:
श्रीनारद मीडिया, किशनगंज (बिहार):
कालाजार उन्मूलन के लिए जिला स्वास्थ्य समिति पूरी तरह से कृतसंकल्पित है। कालाजार को जड़ से खत्म करने के उद्देश्य से जिले के चिह्नित गांवों में साल में दो बार सिंथेटिक पैराथायराइड (एसपी) पाउडर का छिड़काव किया जाता है। कालाजार को जड़ से खत्म करने के लिए लगातार तीन साल तक सिंथेटिक पैराथायराइड का छिड़काव बेहद जरूरी होता है। तभी जाकर उक्त क्षेत्र से कालाजार का उन्मूलन संभव हो सकेगा। जिले में कालाजार उन्मूलन के लिए छिड़काव कार्य के लिए 15 जुलाई को अगले 66 दिनों के लिए जिले के सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने छिड़काव दल को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। डॉ श्री नंदन ने बताया जिले में कालाजार उन्मूलन को लेकर आईआरएस (इनडोर रेसीडुअल स्प्रे) जिले की कुल अब तक 66605 लक्षित घरों में से 41355 (62%)में छिड़काव कार्य पूरा हो चुका है। जिले की कुल 3,50,539 की आबादी में से अब तक 2,14,259 (61%) इससे लाभान्वित हो चुकी है। उन्होंने बताया छिड़काव दल प्रिंटेड पंजी, माइक्रो प्लान और सभी जरूरी सामान के साथ क्षेत्र में कालाजार उन्मूलन अभियान में जुटा हुआ है। लगातार इसका अनुश्रवण भी किया जा रहा है।
19 छिड़काव दल 07 प्रखंडों के 50 लक्षित ग्राम में चला रहा मुहिम: सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया 19 छिड़काव दल 07 प्रखंडों के 52 लक्षित ग्राम में अभियान चला रहा है। इसमें से 02 प्रखंड बहादुरगंज एवं किशनगंज में छिड़काव का कार्य शतप्रतिशत पूर्ण कर लिया गया है। इस चक्र में कोरोना काल में दो गज की दूरी और घर में दो गज दवा का छिड़काव कालाजार से बचाव में जरूरी’ का नारा दिया गया है। उन्होंने बताया कि कालाजार बालू मक्खी के काटने से होता है। दवा का छिड़काव बालू मक्खी को मारने के लिए किया जाता है। छिड़काव सभी घरों (सोने का कमरा, पूजा घर, रसोई आदि ) में, घरों के बरामदा और गौशाला में जमीन से पूरी दिवाल तक किया जाता है। सिर्फ छत को छोड़ दिया गया है। छिड़काव के बाद 3 महीने तक दीवार की लिपाई पुताई नहीं करवानी चाहिए, क्योंकि इससे दवा का असर समाप्त हो जाता है। कच्चे घरों, अंधेरे व नमी वाले स्थानों पर विशेष तौर पर छिड़काव कराया जाना है।
कालाजार की संभावनाओं को जड़ से मिटाने पर जोर:
सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया किशनगंज जिला दो साल पहले ही 2018 में ही कालाजार उन्मूलन के लिए निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त कर चुका है, जबकि वर्ष 2020 तक लक्ष्य को प्राप्त करने की समयसीमा थी। बाढ़ग्रस्त इलाका जैसी चुनौतीपूर्ण भौगोलिक स्थिति के बावजूद समय से पहले लक्ष्य हासिल करने के लिए कई अनूठी पहल कालाजार उन्मूलन में हथियार बने। सामुदायिक सहभागिता, खेल-खेल में स्कूली बच्चों के अंदर व्यवहार परिवर्तन का प्रयास, जागरूकता संदेश और सबसे बड़ी बात लक्ष्य हासिल करने की जीजीविषा ने बड़ी सफलता का मार्ग प्रशस्त किया। जिले में कालाजार की संभावनाओं को जड से मिटाने के लिए लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। आईआरएस द्वितीय चक्र के तहत छिड़काव कार्य में जुटे स्वास्थ्य कर्मी घर-घर जाकर कालाजार से बचने के उपायों की जानकारी तो दे ही रहे हैं, प्रचार वाहन पर बैनर-पोस्टर और जागरूकता संदेश वाले ऑडियो के जरिये भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
कालाजार के लक्षण:
सिविल सर्जन डॉ श्री नंदन ने बताया की रुक-रुक कर बुखार आना, भूख कम लगना, शरीर में पीलापन और वजन घटना, तिल्ली और लिवर का आकार बढ़ना, त्वचा-सूखी, पतली और होना और बाल झड़ना कालाजार के मुख्य लक्षण हैं। इससे पीड़ित होने पर शरीर में तेजी से खून की कमी होने लगती है। इस बीमारी से पीड़ित लोगों के शरीर में रुक-रुक कर बुखार आता है। पीड़ित को भूख नहीं लगती है और उसका वजन घटने लगता है। लंबे समय तक शरीर में इस तरह की बीमारी रहने से लोग धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं और समुचित इलाज नहीं होने पर उसकी मौत भी हो जाती है।
कालाजार का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है :
कालाजार एक संक्रमण वाली बीमारी है जो परजीवी लिस्मैनिया डोनोवानी के कारण होता है। यह एक वेक्टर जनित रोग भी है। इस बीमारी का असर शरीर पर धीरे-धीरे पड़ता है। कालाजार परजीवी बालू मक्खी के जरिये फैलती है जो कम रोशनी वाले और नम जगहों-जैसे मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है। बालू मक्खी यही संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलाती है। इस रोग से ग्रस्त मरीज खासकर गोरे व्यक्तियों के हाथ, पैर, पेट और चेहरे का रंग भूरा हो जाता है। इसी से इसका नाम कालाजार यानी काला बुखार पड़ा।
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