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कमाल की ऊर्जा से सराबोर कर जाते थे कलाम साहब! - श्रीनारद मीडिया

कमाल की ऊर्जा से सराबोर कर जाते थे कलाम साहब!

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भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉक्टर एपीजे कलाम साहब के सुखद सान्निध्य के वे अनमोल लम्हें आज उनकी पुण्यतिथि पर याद आ गए…

एक संस्मरण
✍️गणेश दत्त पाठक, श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

 

बात साल 2007 के अंतिम दिनों की है। राष्ट्रपति के तौर पर कलाम साहब अपना कार्यकाल पूरा कर चुके थे। मैं उस समय दिल्ली में सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा था। एक दिन भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य एक मेरे मित्र का फोन आया।
गणेश, क्या कलाम साहब से मिलना चाहोगे?
मैने पूछा कहां? तो जवाब आया कि कलाम साहब रात में ही दिल्ली आए हैं आज तुम्हें कलाम साहब से मिलवा सकते हैं!
यह बात मेरे लिए सपने के साकार होने जैसा ही था। फिर मैंने तुरंत मित्र को हां बोल दिया।

कलाम साहब से व्यक्तिगत तौर पर मिलने की ख्वाहिश तो बहुत दिनों से थी। 1999 में आईआईटी दिल्ली में विज्ञान मेले के अवसर पर उनका संबोधन प्रत्यक्ष तौर पर सुनने को मिला था। फिर उनके राष्ट्रपति बन जाने तक उनसे कभी मिलने का अवसर नहीं मिला था। मैंने मन ही मन मित्र को शुक्रिया बोला। और उस विरल व्यक्तित्व के भावी सान्निध्य का अंदाजा लगा कर ही खुश हो गया।

परंतु उस समय मैं निराशा के दलदल में फंसा हुआ था। मेरी कहानी उन लाखों सिविल सेवा अभ्यर्थियों के समान ही थी, जो जी तोड़ मेहनत के बाद भी असफल होकर अवसाद के दायरे में घिर जाया करते हैं। सवाल तमाम उठते हैं और जवाब एक भी नहीं सूझता ? एक तो 2001 से 2005 तक सिविल सेवा परीक्षा के लिए सीटें बेहद कम आती रही। लेकिन पीटी, मैंस और इंटरव्यू के सिलसिले में समंदर के लहरों जैसे उतार चढ़ाव आते रहे थे। कभी लगता था जैसे सफलता बस मिल ही गई, फिर अचानक सपने टूट जाते थे, बिखर जाते थे, नींद गायब हो जाती थी। इस व्यथा का अंदाजा तो बस वहीं लगा सकता है, जो सिविल सेवा के अनिश्चयवाली दरिया में गोता लगा चुका हो। कुल मिलाकर मैं बस असफल होकर अवसाद के दरवाजे पर ही खड़ा था।

फिर डॉक्टर कलाम के सुखद सान्निध्य का समय आया। अपने आईएएस मित्र के साथ मैं दिल्ली स्थित अतिथिगृह के डॉक्टर कलाम के कमरे के सामने पहुंचा। दिल धड़क रहा था। डॉक्टर कलाम का इंजीनियर, वैज्ञानिक, पूर्व राष्ट्रपति के तौर पर मानस में उठने वाले परिचय मुझे बेहद असहज बना रहे थे। जब अंदर कमरे में गए तो डॉक्टर कलाम फर्श पर बैठ कर कुछ पढ़ रहे थे। हमारे जाने पर उन्होंने हमें बैठने का इशारा किया। हम बैठ गए। इतना विशाल व्यक्तित्व फर्श पर बैठा हुआ है और हम सोफे पर। हम असहज हो रहे थे लेकिन डॉक्टर कलाम बेहद सहज थे। उनका विनम्र अंदाज ही तो उन्हें महान बना देता था।

डॉक्टर कलाम ने बातचीत का सिलसिला अंग्रेजी में ही शुरू किया। मेरे मित्र ने तो बेहद आत्मविश्वास से अपने आईएएस होने का जिक्र किया। लेकिन बारी जब मेरे परिचय की आई तो मैं मौन हो गया… कुछ देर के लिए! फिर धीरे से बोला, मैं अभी तो बेरोजगार हूं। डॉक्टर कलाम साहब मेरे मनोस्थिति का अंदाजा लगा चुके थे। मेरे मित्र ने परिचय दिया कि मैं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं लेकिन सफलता भी तक नहीं मिल पाई है।

शायद दूसरा कोई होता तो मुझे उस समय बिलकुल तवज्जो नहीं देता। लेकिन वे तो डॉक्टर कलाम थे वे मेरे निराश मन को भांप कर मेरे प्रति बेहद संवेदनशील हो चुके थे। डॉक्टर कलाम ने बोला कि ganesh, upsc is not a life! उसके बाद वे तकरीबन 20 मिनट तक हम लोगों से चर्चारत रहे। बात जिंदगी की हुई, बात सफलता असफलता की हुईं, बात आध्यात्मिक अवलंबन की हुई, बात शैक्षणिक व्यवस्था पर हुई। बात सीवान की भी हुई। लेकिन उनकी बातों का केंद्रबिंदु मेरा निराश मन ही रहा था। उनके साथ के वे बीस मिनट के एक एक शब्द मुझे ऊर्जा के असीम समंदर में गोते लगाने को विवश कर रहे थे। सकारात्मक विचारों की मन मस्तिष्क में आंधी सी चलने लगी थी।

तभी उनके निजी स्टॉफ ने आकर उनके उस दिन के सेमिनार के बारे में याद दिलाया। हमारी मुलाकात खत्म हो गई। लेकिन जब मैं अतिथिगृह के उनके कमरे से बाहर निकला तो मैं ऊर्जा का प्रबल पुंज बन चुका था। आज भी वह सकारात्मक ऊर्जा मेरे अंदर मौजूद है। अवसाद और तनाव से कोसों दूर जा चुका था। अफसोस बस इतना रहा कि उस समय हमारे पास नोकिया का 3350 फोन हुआ करता था। जिसमें उनके साथ खींचा फोटो, मोबाइल के गुम होने के साथ ही चला गया। लेकिन वे अनमोल पल मेरे मन मस्तिष्क में आज भी मौजूद हैं, जो तरंगित और ऊर्जस्वित करते रहते हैं।

जिंदगी की हर दुश्वारियों में डॉक्टर कलाम के शब्द मेरे लिए सहारा बनते रहे हैं। चाहे मैं बेंगलुरु के निम्हंश अस्पताल में ब्रेन ट्यूमर से लड़ता हुआ बेड पर था या जिंदगी की चुनौतियों का सामना करता हुआ कर्तव्य पथ पर। उनके द्वारा लिखित ‘ विंग्स ऑफ़ फायर’ और ‘ इग्नाइटेड माइंड’ नामक पुस्तकें तो मैंने बाद में पढ़ी। लेकिन डॉक्टर कलाम के सान्निध्य के वो अनमोल लम्हें आज भी मुझे ऊर्जस्वित और प्रेरित करते रहते हैं!

पुण्यतिथि पर सादर नमन डॉक्टर कलाम??

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