कुमार बिहारी पाण्डेय जी के लिए कर्म हीं पूजा है-पुष्पेंद्र कुमार पाठक

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नैऋत्य कोण में खड़ी, विनीत जोड़े अंजली…
द्रोण-कुंज में नारायणी संग, ग्यानदा तपोस्थली…।

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

वैसे …तो ऋषि की कुटिया में हीं शांति का साम्राज्य होता है…लेकिन ऋषि जब कर्मयोगी हो तो …उस शांति में भी कुछ करने का, आगे बढ़ने का, प्रेरणा का कोलाहल सुन सकते हैं। गुरू द्रोण के गांव आज के दोन में …जो जे.आर. कॉनवेन्ट है, वह नाम से भले हीं इंग्लिश मॉडल कॉन्वेन्ट है लेकिन स्वरूप एवं लक्ष्य में ….तो आर्यसमाजी गुरूकुल हीं है। दिवाली के अगले दिन ….बड़े भाई गणेश जी की कृपा से एक बड़े हीं सज्जन कर्मयोगी, श्री कुमार बिहारी पाण्डेय जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पाण्डेय जी जे आर कॉन्वेंट के संस्थापक निदेशक हैं।
जीवन के 88 वसंत देेख चुके बिहारी पाण्डेय जी ‘कर्म हीं पूजा है’ के साक्षात स्थूल-सूक्ष्म स्वरूप हैं। विद्यालय-प्रांगण के मघ्य में विराजते विवेकानन्द जो परम्परागत विवेकानन्द की छवि से अलग स्वामी दयानन्द सरस्वती का रूप भी समेटे हैं, विद्यालय में प्रवेश के साथ हीं विद्यालय की आत्मा और उद्देश्य का परिचय करा देते हैं।

….यदि विवेकानन्द के साथ …स्वामी दयानन्द सरस्वती का दर्शन हो जाए ….तो सम्पूर्ण जीवन का सारांश हीं समझ में आ जाता है। वाकई अद्भुत है यह मूर्ति। मुझे तो लगता है…ऐसी ऊर्जावान मूर्ति विवेकानन्द की, शायद हीं कहीं भारतवर्ष में हो। इस चित्र में महसूस किया जा सकता है- पत्थर के रोएं-रोएं से टपकता प्रेरणा का अजश्र प्रवाह।

…..और कुछ ऐसा हीं व्यक्तित्व है…बिहारी पाण्डेय जी का…जो तकनीकी एवं स्कूली शिक्षा के माध्यम से क्षेत्र में आधुनिक ‘अर्जुनो’ को गढ़ने का कार्य कर रहे हैं। ….सचमुच अनुभव के अनवरत आग्रही हैं, ……बिहारी पाण्डेय जी।
आपके विचार आजादी के समय के सपनों की खोज है। उस विचार में असहमति है, असंतोष है, आलोचना है….लेकिन उन्नति की आहट भी स्पष्ट सुनी जा सकती है, बसर्ते निष्पक्ष समालोचक दृष्टि हो। ….श्रम के साथ निष्ठा हीं… ‘बिहारी पाण्डेय’ बनने की प्रक्रिया है। ऐसी अद्भुत विभूति पर सीवान जिले की कई पीढ़ियां गर्व करेंगी।

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