बलिया के बलिदानी किशोर क्रांतिवीर थे कौशल कुमार.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में प्रथम आहुति बलिया के मंगल पांडे ने दी थी। वहीं 1942 की अगस्त क्रांति में बलिया (उप्र) के किशोर छात्रों ने बगावत का झंडा उठाकर कुछ दिनों के लिए अपनी सरकार ही कायम कर ली थी, जिसके एक नायक थे कौशल कुमार।

9 अगस्त, 1942 को गांधी जी ‘करो या मरो’ का मंत्र देकर जेल चले गए। उसी रात देश के बड़े नेताओं को अंग्रेज सरकार ने पकड़कर जेल में डाल दिया। इस घटना की प्रतिक्रिया पूरे देश के साथ बलिया में अधिक प्रवणता से व्यक्त हुई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों ने फैसला किया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर आजादी का बिगुल बजाएंगे। उनमें एक टोली रेलगाड़ी से बलिया की ओर रवाना हुई।

यह टोली सैदपुर (गाजीपुर) तक रेलगाड़ी से गई और फिर गांवों में छोटी-छोटी सभाएं कर गांधीजी का संदेश सुनाती, ग्रामीणों को कुछ करने के लिए प्रेरित करती और आगे बढ़ जाती। रास्ते में इन छात्रों ने रेलगाड़ियों पर कब्जा कर उन्हें तिरंगे झंडों से सजाया और रेलवे स्टेशनों पर उतरकर अंग्रेजी राज की निशानियों को नष्ट करने का आह्वान किया। छात्राएं ओजस्वी भाषणों से ग्रामीणों को ललकारतीं, ‘अंग्रेजों को भगाने के लिए कुछ करो, नहीं तो ये चूड़ियां पहन लो।‘ तभी फौजी रसद लिए एक रेलगाड़ी बेल्थरा रोड स्टेशन पर आई। छात्रों ने इसे लूट लिया और रसद ग्रामीणों को बांट दी, जिसे वे अपनी बैलगाड़ियों में भरकर ले गए।

सरकारी इमारतों और थानों पर तिरंगा फहराने का दौर शुरू हो गया। बांसडीह तहसील पर कब्जा कर बागियों ने गजाधर लुहार को वहां का नया तहसीलदार नियुक्त कर दिया। उधर, आंदोलनकारियों ने चित्तू पांडे को बलिया का कलेक्टर नियुक्त कर दिया। बलिया नगर से यह आंदोलन जिले के अन्य स्थानों पर भी फैल गया। जिले के रसड़ा थाने पर 17 अगस्त को हमला बोलकर आंदोलनकारियों ने तिरंगा फहराना चाहा। वहां के थानेदार ने उग्र माहौल देखकर चतुराई से काम लिया। पहले उसने आंदोलनकारियों को तिरंगा फहराने दिया। स्वयं भी गांधी टोपी पहनकर महात्मा गांधी की जय बोलने लगा। आंदोलनकारियों ने समझा यह देशभक्त हो गया है, इसलिए उन्होंने थानेदार से थाने में रखे हथियारों की मांग की।

थानेदार ने कहा कि दस-पांच लोग अंदर आ जाएं और हथियार ले जाएं। शेष लोग बाहर रहेंगे। जब कुछ छात्र थाने के भीतर पहुंचे तो थानेदार उन्हें कमरे में बंद कर थाने की छत पर पहुंच गया और बाहर खड़ी भीड़ पर गोलियां चलाने लगा। इस बीच किशोर छात्र कौशल कुमार ने थाने पर चढ़कर तिरंगा फहरा दिया। थानेदार ने उस पर गोली चला दी। कौशल कुमार के गिरते ही भीड़ बेकाबू हो थाने पर पथराव करने लगी। पुलिसवाले भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलाने लगे। कई छात्र बलिदान हो गए और अनेक घायल हुए। घायल कौशल ने भी दम तोड़ दिया।

आखिरकार पुलिस की गोलियां खत्म हो गईं। भीड़ को बेकाबू देखकर थानेदार और अन्य पुलिसजनों ने देशभक्तों के आगे आत्मसमर्पण कर दिया। छात्रों ने थाने के भीतर बंद नेताओं को मुक्त करा लिया और थाने में आग लगा दी। थानेदार व पुलिसवाले भी मारे जाते, लेकिन मौका पाकर वे अपनी वर्दियां उतारकर ग्रामीणों के वेश में भाग निकले। कौशल कुमार और अन्य छात्रों के बलिदान का बदला लिया गया बांसडीह में।

 

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