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‘नैरंग-ए-तमन्ना ‘ और ‘ तश्ना लबी’ के विमोचन के अवसर पर हुआ कवि सम्मेलन सह मुशायरा का आयोजन

‘ नैरंग-ए-तमन्ना ‘ और ‘ तश्ना लबी’ के विमोचन के अवसर पर हुआ कवि सम्मेलन सह मुशायरा का आयोजन

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श्रीनारद मीडिया, सीवान (बिहार):


दास्तान-ए-उर्दू गोपालगंज के तत्वावधान में दो काव्य संग्रहों शायर रज़ी अहमद फैज़ी द्वारा रचित ‘नैरंग- ए-तमन्ना ‘ तथा मेराजुद्दीन तश्ना द्वारा रचित ‘ तश्ना लबी ‘ के विमोचन के अवसर पर अल्फा इंटरनेशनल स्कूल थावे के प्रांगण में ऑल इंडिया मुशायरा सह कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें देश के नामचीन शायरों -कवियों ने भाग लिया।मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ नसीम अहमद नसीम ने कहा कि कवि-शायर अपनी कविताओं के माध्यम से देश,दुनिया और समाज के साथ समसामयिक परिघटनाओं की तस्वीर पेश करते हैं।

अदब की खिदमद के साथ समाज में मुहब्बत और आपसी भाईचारा का पैगाम देते हैं जिसकी समरस समाज के निर्माण में अहम् भूमिका निभाती है। विशिष्ट अतिथि मशहूर शायर डॉ अक्स वारसी और डॉ इम्तियाज समर की उपस्थिति ने आयोजन का गौरव बढ़ा दिया। यूपी के कुशीनगर से पधारीं कवयित्री रुबी गुप्ता और सीवान से पधारीं तृप्ति रक्षा ने अपनी प्रस्तुतियों ने मुशायरे में समां बांध दिया। मुशायरा सह कवि सम्मेलन की अध्यक्षता उस्ताद शायर फ़हीम जोगापुरी ने की। जबकि इसका बखूबी संचालन हास्य व्यंग्य के नामचीन कवि सुनील कुमार तंग इनायत पुरी ने किया। इस मौके पर उस्ताद शायर फहीम जोगापुरी ये शेर वाहवाही के सबब बने-

“‘कातिल का यूंही सदका उतारा नहीं गया
मैं खुद ही मर गया मुझे मारा नहीं गया’
सांसों की डोर टूटने के बाद भी फ़हीम
मुझको सलीब ए ग़म से उतारा नहीं गया’।

हास्य-व्यंग्य के मशहूर शायर सुनील कुमार तंग ने अपनी रचना कुछ इस तरह पेश की-
“वीआईपी का पास मेरे पास अब कहां
मैं भी खड़ा हूं लोगों की लंबी कतार में
अब हार कर चुनाव मैं आया हूं अपने गांव
” लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में”।


जबकि मशहूर शायर डॉ अक्स वारसी ने अपनी नज्म कुछ तरह परोसा-
“दिल शिकन देखिए करतूत मेरे भाई की
और दीवार की ऊंची मेरी अंगनाई की।
ज़िन्दगी मौत से मिलती है गले हर लम्हा
कैफियत कैसे बताऊं मेरी तनहाई की।”

शायर डॉ इम्तियाज समर की ये आशार भी सराहे गये-
“जो सच्चे थे वो सब झूठे हुए हैं
नज़र के आईने टूटे हुए हैं
खटकते हैं उन्हीं की आंख में अब
जिन्हें हम पाल कर बूढ़े हुए हैं।”
मुशायरों के सफल संचालक शायर
शर्फुद्दीन शरफ ने अपनी नज्म यूं परोसी-
“बुतपरस्ती की हवा है अबके
बेहयाई भी रवा है अबके
मेरे होंठों पे न जाने कैसे
उसके होंठों की दुआ है अबके।”

शायर ज़ाकिर हुसैन ज़ाकिर का ये आशार भी तालियों के हकदार बने-
“कहकशां के होंठ पे जुगनू का रक्स
आंख में काजल लगा कर देखिए।”

शायर मोईज़ बहमन बरवी की यह नज्म भी सराही गयी-
“अब मेरे हौसले को दुआएं न दे
थक गए हैं कदम अब सजाएं न दे
जिस्म ए इंसानियत जिससे ढक न सके
ऐसी तहजीब ए नव की क़बाएं न दे।”

शायर ख़लीकु़ज्जमा ख़लीक़ ने अपनी कविता कुछ तरह पेश की-
“शब गुज़ीदा है सहर शाम ए ग़रीबां गुज़री
जिंदगी ग़म में असीरों की हरासां गुज़री
दश्त से बिन्त ए अली ख़ाक बदामां गुज़री
क्या क़यामत है क़यामत भी पशेमां गुज़री
क़ातिल ए आल ए नबी हाय मुसलमां गुज़रे।”

कवयित्री तृप्ति रक्षा की रचना भी तालियों की हकदार बनी-
“तुम जनता के सेवक हो
क्या याद तुम्हें यह रहता है
तुम कैसे चैन से सोते हो
जब एक भी बच्चा रोता है।”
शायर कमाल मीरापुरी
ने अपनी नज्म यूं पेश की-
“अक्ल हैरां है कि ऐसा मोजज़ा कैसे हुआ
बह्र में ज़र्बे असा से रास्ता कैसे हुआ
दिल समझने से है क़ासिर दर्द का यह फ़लसफा़
दर्द आखिर दर्द है बढ़कर दवा कैसे हुआ।”
शायर शहबाज़ शम्सी
की यह कविता भी वाहवाही का सबब बनी-
“नामा बर तूने चिट्ठियां दी हैं
या लिफ़ाफ़े में सिसकियां दी हैं
छीन कर ख़्वाब मेरी आंखों से
नींद की उसने गोलियां दी हैं।”

शायर एहसानुल्लाह एहसान ने अपनी नज्म यूं पढ़ीं-
“भर गया तालाब जब बरसात में
उसने यह समझा समंदर हो गया
एहसान जिनके वास्ते लेकर चले हो फूल
वो मुंतज़िर हैं हाथ में पत्थर लिए हुए।”

शायर नूर सुल्तानी ने अपनी नज्म यह पढ़कर तालियां बटोरी-
“मेरी जानिब बराबर देखता है
न जाने क्या क़लंदर देखता है
हमें अपने विरासत की हिफाज़त ख़ुद ही करनी है
मुहाफ़िज़ हर घड़ी सरकार हो ऐसा नहीं होता।”
कवयित्री रूबी गुप्ता की यह रचना सराही गयी-
“दिल्लगी करनी थी उसको दिल का सौदा कर गया
पूरी करनी थी मुझे लेकिन वो आधा कर गया
ग़मज़दा तो थे मगर हर ग़म खुशी से कम न था
देके हमको कुछ खुशी वो ग़म ज़्यादा कर गया।”

शायर आजाद मांझागढ़ी की यह रचना पसंद की गयी-
“जमाल ए यार शगुफ़्ता गुलाब जैसा है
कोई शबाब न उसके शबाब जैसा है
शुआए हुस्न निकलती है हर घड़ी रुख़ से
वो आदमी तो यहां माहताब जैसा है।”

शायर अनवर कय्यूम अनवर की नज्म तालियां बटोरने में कामयाब रही-
“लोग मिल जाते हैं इंसान कहां मिलता है
अब कोई साहब ए ईमान कहां मिलता है
अब घरों से कहां आती है तिलावत की सदा
अब किसी ताक़ में क़ुरआन कहां मिलता है।”

शायर इंतखाबुर्रहमान फ़हीम की ये आशार श्रोताओं को खूब भाये-
“प्यार में मिलने को क्या मिलता नहीं
प्यार ही मिलता नहीं है प्यार में
बोल सकते थे कहां पत्थर कभी
गर न होता ये हुनर फ़नकार में।”

मशहूर शायर मेराजुद्दीन तश्ना की यह कविता भी वाहवाही लूटी-
“तुम्हारे बाद मेरी जान अब होता नहीं है
मेरे घर में कोई मेहमान अब होता नहीं है
कहां रखे भला मां – बाप को फ़र्ज़न्द आखिर
नए घर में कोई दालान अब होता नहीं है।”

शायर रज़ी अहमद फैज़ी ने अपनी कविता कुछ यूंही पढ़ी-
“लम्हा-लम्हा सदी पे भारी है
मैंने वो ज़िन्दगी गुज़ारी है
दश्त-ए-फ़ूर्क़त की बेपनाही में
बेक़रारी ही बेक़रारी है।”

मुशायरा सह कवि सम्मेलन में शहर व दूर दराज से आए श्रोताओं ने खूब आनंद लिया और शायर एवं शायरात को दाद से नवाजा।
आखिर में अलफा इंटरनेशनल मिशन स्कूल थावे के डायरेक्टर खुर्शीद आलम ने सभी आगंतुकों का शुक्रिया अदा किया।

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