विश्वविद्यालयों-कालेजों के खाते में पड़े 2000 करोड़ पर केके पाठक का एक्शन,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
बिहार के विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेज अब कोई नया बैंक खाता नहीं खोल सकेंगे. इन संस्थानों को अब नया बैंक खाता खोलने के लिए शिक्षा विभाग के उच्च शिक्षा निदेशालय से अनुमति लेनी होगी. शिक्षा विभाग ने इस संबंध में सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को निर्देश भेज दिया है. इसके साथ ही विभाग ने यह भी कहा है कि विश्वविद्यालयों और संबद्ध कॉलेजों में केवल दो बैंक खाते ही संचालित किए जा सकेंगे. एक वेतन-पेंशन आदि के नाम पर होगा और दूसरा कॉर्पस फंड के नाम पर होगा
शिक्षा विभाग ने पत्र में कहा है कि यह भी खुलासा हुआ है कि इन सभी शिक्षण संस्थानों में न केवल दो हजार करोड़ से अधिक की राशि पड़ी है. बल्कि 1500 करोड़ रुपये की ऐसी राशि भी है, जिसे विभिन्न मदों में खर्च किया जा सकता था. लेकिन विश्वविद्यालय का शीर्ष नेतृत्व वित्तीय प्रशासनिक निर्णय लेने में झिझक रहा है,
जिसके कारण इतनी बड़ी राशि मौजूद होने के बावजूद कक्षाओं, कमरों और छात्रावासों की स्थिति जर्जर है. ऑडिट में यह भी खुलासा हुआ है कि एक यूनिवर्सिटी में 476 निष्क्रिय खाते हैं और इन खातों की जानकारी खुद यूनिवर्सिटी को भी नहीं है. गहन ऑडिट के बाद ये सारी बातें सामने आई हैं.
वित्तीय नियमों का अनुपालन नहीं किया जा रहा है
विभाग ने कहा है कि महालेखाकार ने कुछ विश्वविद्यालयों की ऑडिट रिपोर्ट भेजी है. इससे रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि सामग्रियों की खरीद, निर्माण कार्यों के संचालन आदि मामलों में वित्तीय नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. रोकड़ पंजी को मुख्य रोकड़ पंजी के रूप में बनाए रखने और कई बैंक खाते खोलने के बजाय, राशि को चालू खाते में रखा जाता है. इसमें से कई अकाउंट निष्क्रिय हैं.
कॉर्पस फंड में जमा होगी ये राशि
यह पत्र विभाग के सचिव बैद्यनाथ यादव की ओर से कुलपतियों को भेजा गया है. विभाग ने कहा है कि यह राशि वेतन-पेंशन खाते में जमा की जाएगी, जो सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए समय-समय पर दी जाती है. इस राशि का उपयोग विश्वविद्यालय केवल वेतन और पेंशन के लिए ही खर्च कर सकेगा. इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से विकास, नवीनीकरण, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि के लिए जो भी राशि दी जाएगी, वह कॉर्पस फंड में जमा की जाएगी. पंजीकरण एवं परीक्षा संचालन, नामांकन, सीएलसी आदि शुल्क से संबंधित राशि भी इसी खाते में जमा की जायेगी.
विश्वविद्यालय के खातों का संचालन कुलसचिव व वित्त पदाधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से होगा
विभाग ने यह भी कहा है कि सभी चालू खातों को बचत खाते में बदल दिया जाए या बचत खाता खोलकर चालू खाते की रकम उसमें जमा की जाए. इसके बाद चालू खाता बंद कर देना चाहिए. विश्वविद्यालय के सभी खाते कुलसचिव एवं वित्त अधिकारी के संयुक्त हस्ताक्षर से संचालित किए जायेंगे. यदि इन दोनों में से कोई भी पद रिक्त रहता है तो कुलपति किसी वरिष्ठ प्रोफेसर को इसके लिए अधिकृत करेंगे.
कॉलेज में इनके हस्ताक्षर से होगा खाते का संचालन
कॉलेज के सभी खाते प्राचार्य एवं बर्सर के संयुक्त हस्ताक्षर से संचालित होंगे. विभाग ने कहा है कि विश्वविद्यालयों में वित्तीय प्रशासन एवं वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उक्त कार्रवाई की जा रही है.विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में इंजीनियरिंग सेल का गठन किया जाएगा. इन कोषांग में आवश्यकतानुसार आउटसोर्सिंग के माध्यम से इंजीनियरों को रखा जायेगा. बिहार राज्य उच्च शिक्षा परिषद ने ऐसी एजेंसियों को सूचीबद्ध किया है. विश्वविद्यालय और कॉलेज परिषद द्वारा निर्धारित दर पर इन एजेंसियों या अन्य से इंजीनियरों को नियुक्त कर सकेंगे.
सामग्रियों की खरीदारी के लिए तय होगी गाइडलाइन
विभाग ने तय किया है कि सिविल वर्क और अन्य सामग्रियों की खरीदारी के लिए एक गाइडलाइन तय की जाये, ताकि कुलपति और प्राचार्य अपने-अपने संस्थानों में पड़े फंड का उपयोग कर अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत कर सकें. प्रत्येक योजना के लिए स्थल का निरीक्षण कर प्राक्कलन तैयार करना और फिर आगे की कार्रवाई करना इंजीनियरिंग सेल का काम होगा. आवश्यकतानुसार यह कोषांग जिला शिक्षा पदाधिकारी के अधीन गठित अभियंत्रण कोषांग से सहयोग ले सकता है.
50 लाख रुपये तक के कार्य की तकनीकी स्वीकृति इंजीनियरिंग सेल से
5 लाख रुपये तक की आंतरिक स्रोत राशि वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में सिविल कार्य के लिए तकनीकी अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है. इसकी प्रशासनिक स्वीकृति विश्वविद्यालय में कुलपति और कॉलेज में प्राचार्य देंगे. 50 लाख रुपये तक के कार्य की तकनीकी स्वीकृति इंजीनियरिंग सेल के वरिष्ठ अभियंता द्वारा दी जायेगी. 50 लाख रुपये से अधिक के कार्यों की तकनीकी स्वीकृति राज्य उच्च शिक्षा परिषद में गठित इंजीनियरिंग सेल द्वारा दी जायेगी.
राजभवन ने मुख्य सचिव से की केके पाठक की शिकायत,क्यों?
राजभवन ने शिक्षा विभाग के कुछ विशेष आदेशों को असंवैधानिक मानते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज करायी है. राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चौंग्थू ने बिहार के मुख्य सचिव को उच्च शिक्षा को लेकर पारित कुछ आदेशों का हवाला देते हुए एक पत्र लिखा है. इस पत्र में कहा गया है कि शिक्षा विभाग के कुछ कदमों के कारण राज्य का शैक्षणिक माहौल खराब हो गया है. प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चौंग्थू ने मुख्य सचिव से कहा है कि इस संबंध में राज्यपाल ने मुझे निर्देश दिया है कि मैं आपसे इस मामले में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने का अनुरोध करूं.
राज्यपाल ने माना कि शैक्षणिक माहौल को नष्ट करने का किया जा रहा प्रयास
राज्यपाल के प्रधान सचिव ने उच्च शिक्षा के संदर्भ में जारी तीन पत्रों का हवाला देते हुए राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर तत्काल आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया है. मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा गया है कि राज्यपाल ने माना है कि शिक्षा विभाग के आदेश से ऐसा प्रतीत होता है कि विभाग राज्य के शैक्षणिक माहौल को बर्बाद करना चाहता है.
विधान परिषद सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल को सौंपा था ज्ञापन
दरअसल, राज्य विधान परिषद के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने 19 दिसंबर को राज्यपाल से मुलाकात की थी और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा था. विधान पार्षदों ने शिक्षा विभाग के फैसलों को असंवैधानिक, निरंकुश और अपने विशेषाधिकारों का हनन बताते हुए उस पर कड़ा विरोध जताया था. राज्यपाल से शिक्षा विभाग के उक्त संदर्भित पत्रों को रद्द करने के साथ-साथ संबंधित अधिकारियों पर उचित कार्रवाई करने की अपील भी की गयी थी.
21 और 28 नवंबर को जारी किये गए पत्रों का दिया गया हवाला
जानकारी के मुताबिक शिक्षा विभाग ने कुछ विशेष मामलों में कुछ एमएलसी का वेतन और पेंशन रोकने का आदेश दिया था. इसके अलावा सरकारी आदेशों की आलोचना करने वाले कुछ शिक्षक संगठनों के नेताओं का वेतन और पेंशन रोकने के आदेश भी दिए गए. राजभवन ने जिन पत्रों का हवाला देते हुए यह पत्र लिखा है, उनमें से एक 21 नवंबर को और दूसरा 28 नवंबर को जारी किया गया था.
क्या था विधान पार्षदों के ज्ञापन में
ज्ञापन के माध्यम से विधान पार्षदों ने राज्यपाल के समक्ष अपनी बात रखते हुए कहा था कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने कुछ आदेशों के जरिये अपना मनमाना रवैया जाहिर किया है. इस पर नियंत्रण लगना चाहिए. विधान पार्षदों ने अपनी शिकायत में कहा था कि शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को संघ बनाने और विभिन्न मुद्दों पर विरोध व्यक्त करने के अधिकार पर पाबंदी लगायी है. साथ ही अखबारों में विज्ञप्ति जारी करने के कारण कुछ शिक्षक संगठनों के वेतन और पेंशन पर भी रोक लगायी गई है, जो संविधान के अनुच्छेद 19, 20 और 21 के प्रावधान पर मौलिक अधिकारों का हनन है. यह रोक हटनी चाहिए.
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