जानिए वेदों में वर्णित टेस्टट्यूब बेबी का रहस्य एवं अगस्त्य मुनि के जन्म की कथा

जानिए वेदों में वर्णित टेस्टट्यूब बेबी का रहस्य एवं अगस्त्य मुनि के जन्म की कथा

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्‍क:

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भागीरथ गंगा को धरती पर ले आए. लेकिन उनके अक्षय जल को कहां रखा जाए यह समस्या थी. गंगा के समुद्र में विश्राम का प्रबंध हुआ.

समुद्र का सारा जल अगस्त्य मुनि ने पी लिया था इसलिए सागर सूख गया था. गंगा के सागर में आने से सागर भी फिर से संपन्न हो गया.

अगस्त्य मुनि ने देवताओं की प्रार्थना पर सागर का जल पीकर उसे सुखाया था. ऐसा देवताओं और ऋषियों की कालकेय दैत्यों से रक्षा के लिए जरूरी था.

अगस्त्य ऐसे तेजस्वी थे कि सूर्य व चंद्र को दक्षिण जाने के लिए उन्होंने मार्ग बनाया था. स्वयं श्रीराम ने रावण को परास्त करने के लिए अगस्त्य की सहायता ली थी.

सागर को सोखने की कथा से पहले यदि अगस्त्य के जीवन की कथा से सुनें तो रस आएगा. अगस्त्य संसार के प्रथम टेस्टट्यूब बेबी कहे जा सकते हैं.

वेदों में अगस्त्य के जन्म की कथा का मजाक उड़ा दिया जाता है लेकिन टेस्ट ट्यूब बेबी के युग में लोग ऐसा करते हैं, तो उनकी बुद्धि पर तरस आता है.

लोमश ऋषि ने युधिष्ठिर को अगस्त्य की उत्पत्ति की कथा सुनाई थी. एक यज्ञ में समस्त देवतागण आमंत्रित थे. वहां मित्रवरुण देवता भी आए.

इंद्र के साथ स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी भी आई थी. उर्वशी का रूप देखकर मित्र वरूण आसक्त हो गए. उर्वशी ने उन्हें देखने के बाद उपहास भरी मुस्कान से मुंह फेर लिया.

मित्रवरुण लज्जा से गड़ गए. उनका दिव्यतेज वीर्य के रूप में पूंजीभूत हुआ जिसे एक कुंभ यानी घड़े में संरक्षित कर लिया गया.

कुंभ यज्ञ का था. उसका स्थान, जल तथा सब अत्यंत पवित्र थे. उसी कुंभ के मध्य भाग से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य का जन्म हुआ. उर्वशी उनकी मानस जननी कही गईं.

एक बार अगस्त्य मुनि कहीं चले जा रहे थे. राह में उन्हें अपने पितर नजर आए जो एक गड्ढे में सिर उल्टा किए लटक रहे थे.

पितरों से अगस्त्य से ऐसे लटकने का कारण पूछा. पितरों ने कहा- तुम्हारे वंश न बढ़ाने के निर्णय के कारण हमारी यह दुर्दशा हो रही है क्योंकि भविष्य में हमें तर्पण नहीं मिलेगा.

पितरों की दुर्दशा देखकर अगस्त्य ने विवाह का निश्चय किया. उन्होंने अपने योग्य एक उत्तम पत्नी का विचार किया और उसकी आकृति बनाई.

उन्हीं दिनों विदर्भ नरेश संतान प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे. अगस्त्य द्वारा कल्पित शिशु को देवों ने विदर्भ नरेश की पत्नी के गर्भ में पहुंचा दिया.

रानी ने तेजस्वी कन्या लोपामुद्रा को जन्म दिया. अगस्त्य ने राजा से लोपामुद्रा का हाथ मांगा. राजा को मना करने का साहस तो नहीं था लेकिन बेटी का विवाह मुनि से करने को तैयार न थे.

लोपामुद्रा पिता की चिंता समझ गईं और उन्होंने अगस्त्य से स्वयं विवाह की इच्छा जताई. लोपामुद्रा और अगस्त्य मुनि का विवाह हो गया.

लोपामुद्रा ने एक मुनि से विवाह तो कर लिया परंतु राजसी वस्त्र और सुख त्यागना उनके लिए आसान न था. पर पति की इच्छा थी कि लोपामुद्रा साध्वी जीवन बिताएं.

 

लोपामुद्रा बुद्धिमान थीं. उन्होंने एक युक्ति निकाली जिससे पति की इच्छा भी रह जाए और सुख-सुविधाओं से वंचित भी न होना पडे.

पति की इच्छा का सम्मान करते लोपामुद्रा साध्वी वेश में आ तो गईं परंतु कुछ ही दिनों में मन उचटने लगा. बुद्धिमान लोपामुद्रा ने अगस्त्य से एक इच्छा पूरी करने का वचन ले लिया.

लोपामुद्रा ने तर्कशक्ति से अगस्त्य को वन में भी गृहस्थ सुविधाएं भोगने के लिए मना लिया. पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए एक मुनि को राजाओं के यहां याचना करनी पड़ी और इसी क्रम में वातापी दैत्य का संहार हुआ.

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